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समाज

जन्म के समय घटता लैंगिक अनुपात

२० फ़रवरी २०१८

केंद्र सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा जरूर दिया है, लेकिन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में भी बेटियों की स्थिति बेहद गंभीर है.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki

नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक लड़कों व लड़कियों की जन्म के समय लिंगानुपात दर में गिरावट के मामले में गुजरात ने हरियाणा व राजस्थान जैसे बदनाम राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है. यहां 1000 लड़कों के मुकाबले महज 848 लड़कियां पैदा हो रही हैं. वर्ष 2011-13 के दौरान यह दर 911 थी. लेकिन बीते दो साल के दौरान जन्म के समय लिंगानुपात में भारी गिरावट दर्ज की गई है और यह 848 तक पहुंच गई है. जन्म के समय लिंगानुपात एक महत्वपूर्ण संकेत है. इससे पता चलता है कि भ्रूण के लिंग परीक्षण के बाद होने वाले गर्भपात के चलते लड़कियों की तादाद में कितनी गिरावट आई है.

रिपोर्ट

नीति आयोग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. ‘हेल्दी स्टेट्स प्रोग्रेसिव इंडिया' यानी ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत' शीर्षक 104 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 21 बड़े राज्यों में से 17 में जन्म के समय लैंगिक अनुपात में भारी गिरावट दर्ज की गई है. इस मामले में गुजरात में सबसे ज्यादा 53 अंकों की गिरावट आई है. यानी यहां प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की तादाद में 53 की कमी आई है. वर्ष 2012-14 के दौरान राज्य में प्रति एक हजार लड़कों पर लड़कियों की जन्म दर जहां 907 थी वहीं वर्ष 2013-15 के दौरान यह घट कर 854 तक पहुंच गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा स्थिति पर अंकुश लगाने के लिए भ्रूण का लिंग परीक्षण कराने के बाद होने वाले गर्भपात के मामलों के प्रति कड़ा रुख अख्तियार करना जरूरी है.

जन्म के समय लैंगिक अनुपात में गिरावट के मामले में गुजरात के बाद हरियाणा है. वहां 35 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है यानी प्रति हजार पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की तादाद में 35 की कमी आई है. हरियाणा के बाद राजस्थान (32) और उत्तराखंड (27) है. हालांकि पंजाब, उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों में इस अनुपात में सुधार हुआ है. आयोग ने कहा है कि मौजूदा हालात में सुधार के लिए प्री कंसेप्शन एंड प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (पीसीपीएनडीटी) अधिनियम, 1994 के प्रावधानों को कड़ाई से लागू करना जरूरी है ताकि कन्या भ्रूण की हत्या के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाया जा सके. इसके साथ ही लड़कियों के महत्व के बारे में बड़े पैमाने पर प्रचार किया जाना चाहिए.

गुजरात के मामले में जन्म के समय लिंगानुपात में आई गिरावट आश्चर्यजनक है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य में प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं की तादाद 919 थी. उस समय भी यह आंकड़ा 940 प्रति हजार के राष्ट्रीय औसत से नीचे था. लेकिन उसके बाद अब आई इस गिरावट ने सरकार को भी चिंता में डाल दिया है.

वजह

लेकिन आखिर जन्म के समय लिंगानुपात में बीते कुछ वर्षों के दौरान तेजी से होने वाली इस गिरावट की वजह क्या है? आयोग की रिपोर्ट में मोटे तौर पर इसके लिए भ्रूण हत्या को ही जिम्मेदार ठहराया गया है. समाजशास्त्री भी इसी को मौजूदा स्थिति की प्रमुख वजह मानते हैं. समाजशास्त्र की प्रोफेसर डॉ. शकुंतला माइती कहती हैं, "21वीं सदी में महिलाओं के तमाम क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने के बावजूद कम से कम जन्म के समय उनको बराबरी की निगाह से नहीं देखा जाता." डॉ. शकुंतला ने यह भी कहा, "देश में लिंग परीक्षण के खिलाफ कानून होने के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में चोरी-छिपे यह काम जारी है. विभिन्न क्लीनिकों की सहायता से भ्रूण के लिंग परीक्षण के बाद गर्भ में लड़की का पता चलने पर ज्यादातर मामलों में लोग बेहिचक गर्भपात करा देते हैं."

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Solanki

सामाजिक कार्यकर्ता निर्मला जाना कहती हैं, "ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी इलाकों में भी लड़के-लड़की में भेदभाव कम नहीं हुआ है. आयोग की रिपोर्ट से समाज की इसी मानसिकता का संकेत मिलता है." विशेषज्ञों का कहना है कि जन्म के समय लड़कों के मुकाबले लड़कियों की तादाद में आने वाली भारी गिरावट से साफ है कि लोगों की मानसिकता में खास बदलाव नहीं आया है. इससे इस बात का भी पता चलता है कि कन्या भ्रूण की हत्या के मामलों में भी कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आई है.

उपाय

आखिर जन्म के समय बढ़ती लैंगिक असमानता की इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है ? इस पर विशेषज्ञों में आम राय है. उनका कहना है कि सरकार को पहले तो लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण की हत्या से संबंधित कानूनों को कड़ाई से लागू करने पर ध्यान देना होगा. इसके साथ ही सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाना जरूरी है. निर्मला कहती हैं, "लोगों की मानसिकता नहीं बदलने तक यह समस्या जस की तस रहेगी."

वह बताती हैं कि ज्यादातर भारतीय दंपत्ति एक बेटा और एक बेटी की चाह रखते हैं. ऐसे में अगर पहली संतान बेटी हो गई तो बेटे की चाह में अगली बार लिंग परीक्षण और गर्भपात का अंदेशा बढ़ जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि कड़े कानूनों की वजह से लिंग परीक्षण व भ्रूण हत्या के मामले अब पहले की तरह सार्वजनिक रूप से तो नहीं होते, लेकिन देश के विभिन्न हिस्सों में अब भी यह काम धड़ल्ले से चल रहा है. इस पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल नहीं होने की स्थिति में अगले 10-15 वर्षों में परिस्थिति भयावह होने का अंदेशा है.

रिपोर्टः प्रभाकर