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जनरल एलन ने संभाली अफगानिस्तान में कमान

१८ जुलाई २०११

अमेरिकी जनरल डेविड पेट्रेयस के स्थान पर मरीन कोर के जनरल जॉन एलन ने नाटो नेतृत्व वाली अंतरराष्ट्रीय टुकड़ी आईसैफ की कमान संभाल ली है. अंतरराष्ट्रीय टुकड़ियों ने सुरक्षा जिम्मेदारी अफगान सैनिकों को देना शुरू कर दिया है.

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तस्वीर: DW/F. Zahir

पेट्रेयस ने एलन को काबुल में भारी सुरक्षा के बीच हुए समारोह में जिम्मेदारी सौंपी. समारोह में अफगानिस्तान और नाटो के वरिष्ठ सेनाधिकारियों ने भाग लिया. वहां अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री अब्दुल रहीम वारदाक, जर्मन सेना के जनरल वोल्फ लांगहेल्ड और अमेरिकी सेना प्रमुख एडमिरल माइक मलेन भी थे.

जॉन एलन को दरअसल शांत व्यक्ति समझा जाता है, लेकिन इराक में उनकी तैनाती के बाद से उन्हें खास तौर पर मुश्किल परिस्थितियों से निबटने वाला माना जाता है. मास्टर्स की तीन तीन डिग्रियां हासिल करने वाले एलन उत्कृष्ट विश्लेषक और चतुर रणनीतिकार हैं, जो कूटनीतिक क्षमता के भी माहिर हैं. अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो की फौजों के भावी कमांडर के रूप में उनका परिचय कराते हुए सर्वोच्च कमांडर और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, "एलन लड़ाई के लिए युद्धक अनुभव वाले नेता हैं. अमेरिका की केंद्रीय कमान के उप कमांडर के रूप में इलाके में उनका आदर है और अफगानिस्तान की सामरिक योजना के साथ गहरे रूप से जुड़े रहे हैं."

इराक अनुभवों के कारण पदोन्नति

स्वयं ओबामा भी इस बात पर पर्दा नहीं डाल सकते कि उच्च पदस्थ जनरल का अफगानिस्तान में कोई अनुभव नहीं है. उनका यश इराक में तैनाती के समय से है. अल अनबर प्रांत के कमांडर की हैसियत से उन्हें 2007-2008 में उस इलाके में खासकर सक्रिय अल कायदा नेटवर्क के खिलाफ सुन्नी लड़ाकों का समर्थन जीतने में सफलता मिली. इस सामरिक गठबंधन ने इराक में स्थिति को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसमें एलन ने सैनिक ताकत के बदले अपने कूटनीतिक हुनर का इस्तेमाल किया. अपनी रणनीति के बारे में एलन ने उस समय कहा था, "विद्रोहियों को लड़ाई में मार कर सिर्फ एक जगह तक पहुंचा जा सकता है, हम उसे बहुत पहले ही पार कर चुके हैं." एलन उस समय पूरे प्रांत में घूमे और इलाके के शेखों के अलावा पड़ोसी देशों के प्रभावशाली राजनीतिज्ञों से भी बातचीत की.

विद्रोह के खिलाफ संघर्ष की सीमाएं

अपनी तैनाती के इलाके की सांस्कृतिक परंपराओं के आदर के साथ उन्होंने इस्लाम की विशेष बातों के लिए संवेदनशीलता भी दिखाई. उनका कहना है, "हमने उस समय अरब आबादी को खुद कुछ करने की हिम्मत दिलाने कोशिश की. उन्हें अल कायदा की बर्बरता का विरोध करना था." यह अनुभव अफगानिस्तान में उनके काम आएगा. वे अपने सैनिकों के साथ मुख्यतः देश के दक्षिण और पूर्वी हिस्से को सुरक्षा देंगे जबकि पृष्ठभूमि में तालिबान के साथ राजनीतिक हल पर चर्चा होगी. यदि यह दोहरी रणनीति सफल हो जाती है तो एलन के सैनिक विद्रोहियों का सामना करने के बदले अपना ध्यान अफगान सैनिकों और विशेष टुकड़ियों की ट्रेनिंग में लगा सकते हैं.

Afghanistan Kämpfer Polizei NO FLASH
तस्वीर: AP

ओबामा की वापसी योजना को समर्थन

जॉन एलन ने फिलहाल 1,40,000 सैनिकों का नेतृत्व संभाला है. लेकिन यह संख्या लगातार घटती जाएगी. अमेरिका के अलावा जर्मनी, ब्रिटेन और अन्य देश अपने आईसैफ सैनिकों को आने वाले महीनों में कम कर रहे हैं. जबकि पैट्रेयस ओबामा की वापसी योजना के आलोचक थे और मुश्किल परिस्थिति की बात करते थे. नए कमांडर ने ओबामा की योजना का अब तक समर्थन किया है. एलन ने सीनेट में हुई पूछताछ में कहा था कि अगले साल सितंबर तक 30,000 सैनिकों की वापसी से अफगान नेतृत्व को स्वीकार करना होगा कि उसे अपने सैनिकों की संख्या बढ़ानी होगी.

सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस के सुरक्षा विशेषज्ञ लॉरेंस कॉर्ब का मानना है कि एलन की कठिनाई इस बात पर निर्भर करेगी कि कौन से सैनिक अफगानिस्तान छोड़ेंगे. "थल सैनिक या विशेष टुकड़ी के जवान - यह जनरल एलन के लिए निर्णायक होगा."

तीस हजार से अधिक अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बावजूद अफगानिस्तान में ओबामा के पद ग्रहण के समय से ज्यादा सैनिक तैनात रहेंगे. सेनाधिकारी के रूप में जनरल एलन को अपने बॉस द्वारा तैयार दायरे में काम करने की आदत है. लेकिन तैनाती का बोझ भविष्य में कम कंधों पर होगा, यह बात उनके काम को आसान नहीं बनाती.

लेख: डानिएल शेश्केवित्स/मझा

संपादन: ए जमाल

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