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कानून और न्याय

छह अगस्त से हर दिन अयोध्या मामले की सुनवाई

समीरात्मज मिश्र
२ अगस्त २०१९

अयोध्या विवाद में मध्यस्थता से समाधान की कोशिशें नाकाम हो गई हैं. अब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की नियमित सुनवाई होगी.

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1990 Unruhen vor der Babri-Moschee vor der Zerstörung 1992
तस्वीर: AP

भारत की सर्वोच्च अदालत छह अगस्त से हर दिन अयोध्या के राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद भूमि विवाद की सुनवाई करेगी. शुक्रवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट की समीक्षा की और रोज सुनवाई करने का फैसला किया. 

इससे पहले मध्यस्थता समिति ने 18 जुलाई को स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी लेकिन उस वक्त मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि गोपनीयता के चलते इसे अभी रिकॉर्ड पर नहीं लिया जा सकता है. समिति ने कोर्ट से कुछ और समय की मांग की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने समिति को एक अगस्त तक का समय अपनी अंतिम रिपोर्ट देने के लिए दे दिया. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि यदि इस रिपोर्ट के कोई सार्थक परिणाम न निकले तो दो अगस्त को इस मामले की रोजाना सुनवाई पर विचार किया जाएगा. शुक्रवार को यही हुआ.

सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल आठ मार्च को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसे इस मामले के सभी पक्षों से बातचीत करके समाधान निकालना था. मध्यस्थता समिति में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू भी शामिल थे.

मध्यस्थता समिति ने संबंधित पक्षों से बंद कमरे में बातचीत की. ये बातचीत अयोध्या, दिल्ली और लखनऊ में हुईं. कई बार सभी संबंधित पक्षों को एक साथ इकट्ठा करके बातचीत करने की कोशिश की गई लेकिन बताया जा रहा है कि ऐसा महज एक ही बार संभव हो पाया और उसमें भी किसी सर्वमान्य हल पर एकराय नहीं बन पाई.

Sri Sri Ravi Shankar Guru Spiritueller Führer
मध्यस्थता पैनल में श्रीश्री रविशंकर भीतस्वीर: Getty Images/AFP/P. Richards

मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार से सुनवाई होगी जिसे मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर की संवैधानिक पीठ करेगी.

वहीं, 11 जुलाई को एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि मध्यस्थता पैनल से कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिल रहा है, इसलिए कोर्ट को जल्द फैसले के लिए रोज सुनवाई पर विचार करना चाहिए. अयोध्या विवाद में पक्षकार गोपाल सिंह विशारद की इस याचिका का निर्मोही अखाड़ा ने भी समर्थन किया.

मध्यस्थता समिति ने यूं तो अपनी पूरी कार्यवाही और बातचीत को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार गोपनीय रखा था लेकिन जानकारों के मुताबिक वो किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या फिर विवाद को बातचीत से सुलझाने में शायद कामयाब नहीं हो पाई है. हालांकि बताया ये भी जा रहा है कि समझौते के कुछ तरीकों पर विभिन्न पक्षों पर बातचीत काफी सार्थक भी रही लेकिन इस हद तक नहीं कि सभी उसे मान लें.

बताया जा रहा है कि मध्‍यस्‍थता समिति के सदस्यों ने तमाम कोशिशों के बावजूद सभी पक्षों को एक साथ लाने में सफल नहीं हुए. खबरों के मुताबिक समिति के सदस्य विभिन्न पक्षों के उदारवादी समूहों को तो एक साथ ले आए लेकिन कट्टरपंथी तबके को साथ लाने में नाकाम रहे और इसी वजह से मध्यस्थता के जरिए किसी आम सहमति पर कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरी प्रक्रिया को गोपनीय रखने को कहा था. यहां तक मध्यस्थता की प्रक्रिया से मीडिया को भी दूर रखा था और बातचीत के दौरान उसकी रिपोर्टिंग करने की भी मनाही थी.

साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच में बांट दिया था. सभी पक्षों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

इससे पहले, आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने अपनी ओर से भी सभी पक्षों से बातचीत की पहल की थी लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. रविशंकर की पहल का कई लोगों ने विरोध भी किया था और उनकी पहल की कोशिशों पर सवाल भी उठाए थे. मध्यस्थता समिति के तीनों ही सदस्य दक्षिण भारत से ताल्लुक रखते हैं.

दो साल पहले श्रीश्री रविशंकर ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि यदि अयोध्या विवाद नहीं सुलझा तो भारत में सीरिया जैसे हालात हो जाएंगे. एनडीटीवी के दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ''अगर कोर्ट कहता है कि ये जगह बाबरी मस्जिद की है तो क्या लोग इस बात को आसानी और खुशी से मान लेंगे? ये बात पांच सौ वर्षों से मंदिर की लड़ाई लड़ रहे बहुसंख्यकों के लिए कड़वी गोली की तरह होगी. ऐसी स्थिति में खून-खराबा भी हो सकता है.''

एक अन्य इंटरव्यू में रविशंकर ने ये भी कहा था कि इस विवाद का हल अदालत की बजाय इससे बाहर निकाला जाना चाहिए. उन्होंने उस वक्त मुस्लिम समुदाय से ये भी अपील की थी कि वो इस जमीन पर अपना दावा छोड़ दे और इसके बदले में उन्हें अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए जमीन दे दी जाएगी.

रविशंकर की इन बातों का तब काफी विरोध हुआ था. इसीलिए जब वो अपनी ओर से अयोध्या में मध्यस्थता की राह तलाशने आए तो मुस्लिम पक्ष के कई लोगों ने उनसे बातचीत भी नहीं की. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी उनके नाम को मध्यस्थता पैनल में शामिल करने को लेकर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई थी.

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