चोटी पर धावा
ये महिलाएं चोटी पर जाना चाहती हैं. बोलिविया की आदिवासी महिलाएं पर्वतारोही के रूप में एंडीज की चोटी पर पहुंच रही हैं. और माचो संस्कृति के खिलाफ संघर्ष कर रही हैं. उनका विद्रोह पूरे समाज को अपने आगोश में ले रहा है.
अनवरत चढ़ाई
कुछ समय पहले तक वे बेस कैंप में रहती थीं और पर्वतारोहियों के लिए खाना पकाती थीं. अब वे चोटी पर पहुंचना चाहती हैं. आयमारा जनजाति की महिलाएं सैलानियों को बोलिविया में एंडीज की पहाड़ियों की चोटी तक ले जाती हैं. लोकप्रिय लक्ष्य है 6,088 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हुआयना पोटोसी जो राजधानी ला पास से 25 किलोमीटर दूर है.
सौंदर्य और ताकत
आयमारा जनजाति की बैर्था वेडिया, डोरा मागुएनो और हुआयलास सामान ढोने वाली मजदूर नहीं बने रहना चाहती थीं. इसलिए चोला कहलाने वाली परंपरागत लिबास पहनने वाली ये आदिवासी महिलाएं महिला पहाड़ी गाइडों के एक ग्रुप में शामिल हो गईं. अब वे शेरपा की भूमिका में अपने पुरुष साथियों को टक्कर दे रही हैं.
जरूरत का बदलाव
पहाड़ों में स्थित कैंप में वे परंपरागत हैट की जगह हेलमेट पहन लेती हैं, लेकिन परंपरागत स्कर्ट पोलेरा पहने रहती हैं. पहाड़ चढ़ने के लिए जरूरी स्टील का रॉड वे पोलेरा के नीचे बांध लेती हैं. पोलेरा छह से आठ मीटर कपड़े से बना लहंगा है जिसकी दस परतें हो सकती हैं. परंपरागत पोशाक के साथ कंधे पर डालने वाली चादर मंटा और सिर पर रखा जाने वाले हैट भी होता है.
उकसावा था पोलेरा
लंबे समय तक चोला महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला लहंगा पोलेरो पुरातनपंथ का प्रतीक माना जाता था. यहां तक कि पोलेरो पहने महिलाओं को सार्वजनिक इमारतों में घुसने भी नहीं दिया जाता था. इस बीच स्पेन से औपनिवेशिक शासकों द्वारा बोलिविया लाया गया ये लिबास देश में आदिवासियों के बढ़ते आत्मविश्वास का प्रतीक बन गया है.
परंपरा की कीमत
इस बीच वे दिन लद चुके जब पोलेरो को गरीब आदिवासी लोगों को पहनावा समझा जाता था. इस बीच ये ड्रेस राष्ट्रीय ड्रेस जैसा हो गया है और उसे कार्निवाल, जुलूस और लोक महोत्सवों में पहना जाता है. पोलेरो अब फायदेमंद कारोबार का हिस्सा बन गया है. लहंगा, चादर और हैट वाले पूरे ड्रेस की कीमत 300 यूरो यानि करीब 20,000 रुपये है.
समता के लिए पर्वतारोहण
बोलिविया के आयमारा जनजाति की महिलाओं के साथ न सिर्फ आदिवासी होने के कारण बल्कि महिला होने के कारण भी भेदभाव होता है. हालांकि आयमारा जनजाति के इवो मोरालेस के राष्ट्रपति बनने के बाद लोगों में आत्मविश्वास बढ़ा है लेकिन पहाड़ों में रहने वाली ये महिलाएं देश की माचो संस्कृति के खिलाफ भी लड़ रही हैं.
पर्वत पुकारे
नया पेशा, नया आत्मविश्वास. 48 वर्षीया लिडिया हुआयलास और 50 वर्षीया डोरा मागुएनो गर्व के साथ पर्वतारोहण का साजोसामान दिखा रही हैं. बर्फ तोड़ने वाले हथौड़े, लोहे की छड़, बेल्ट और हेलमेट के साथ ये महिलाएं दो साल से पर्यटकों को पहाड़ की चढ़ाई पर और ग्लेशियर की गहरी फांकों में ले जा रही हैं.
एंडीज की परी
लंबे बाल उनकी पहचान हैं. सुबह तड़के आयमारा महिलाएं अपने लंबे काले बालों को कंघी करती हैं और लटों को गूंथ कर चोटी बनाती हैं. उसके बाद शुरू होता है पहाड़ पर चढ़ने का सिलसिला. मसलन 6,439 मीटर ऊंटी इलिमानी पहाड़ की चोटी पर. बोलिविया का दूसरा सबसे ऊंचा पहाड़ आयमारा जनजाति के लोगों का तीर्थ है. उनका मानना है कि वहां सूरज का जन्म हुआ है.
भारी बोझ अच्छी कमाई
इलिमानी पहाड़ की तलचटी पर कूच करने को तैयार खड़ी एक महिला शेरपा. ये काम आयमारा महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता में मदद कर रहा है. सैलानियों के साथ पर्वतारोहण पर जाने वाले शेरपा के रूप में ये महिलाएं हर रोज 35 डॉलर कमाती हैं, जबकि किसी के घर काम करने पर महीने में सिर्फ 175 डॉलर की कमाई होती है.
साथ की ताकत
एक दूसरे के साथ रस्सी में बंधी चोला महिलाएं हुआयना पोटोसी की ढलान पर उतरने का अभ्यास कर रही हैं. घाटी में भी ये आदिवासी महिलाएं बोलिविया के समाज में बदलाव का झंडा लहरा रही हैं. होलिविया की लोकप्रिय आयमारा टीवी एंकर युस्टा एलेना कहती हैं कि चोला महिलाएं कारोबार करती हैं और उन्होंने श्वेत उच्चवर्गीय महिलाओं से पहले आर्थिक आजादी हासिल कर ली है.