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चुपचाप 70 का हुआ इप्टा

३१ मई २०१३

सांस्कृतिक माध्यमों से आम आदमी तक जुड़ाव के मकसद से बने इप्टा ने सात दशक पिछले दिनों चुपचाप पूरे कर लिए. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सांस्कृतिक इकाई भारतीय जन नाट्य मंच यानि इप्टा ने 25 मई 1943 को मुंबई में आकार लिया.

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तस्वीर: Suhail Waheed

इन 70 सालों में इप्टा ने आम आदमी के मानस को झकझोरा और सामाजिक सरोकारों से जोड़ा. उत्तर प्रदेश में इप्टा की सांस्कृतिक यात्राएं और उनमें कैफी आजमी की सक्रियता को उसकी विशेष उपलब्धि माना जाता है.

कैफी आजमी की 11वीं बरसी पर लखनऊ में इप्टा ने कैफी और उनकी पत्नी शौकत की जिंदगी से रूबरू कराता जावेद अख्तर का नाटक "कैफी और मैं" प्रस्तुत कर एक तरह से अपनी 70वीं सालगिरह मनाने की रस्म पूरी की. इस नाटक में शौकत की जिंदगी के किस्से शबाना आजमी ने सुनाए और कैफी के किरदार को जावेद अख्तर ने अपनी आवाज दी. कैफी के गीतों और गजलों को जसविंदर सिंह ने पुरकशिश अंदाज में पेश किया. इप्टा की कैफी को ये एक भावभीनी श्रद्धांजलि भी थी.

नुक्कड़ नाटकों से लेकर मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और लखनऊ से लंदन तक के सुसज्जित ऑडीटोरिमों में अपने नाटकों से नसों में आवेश भर देने वाले इप्टा के नाटकों का लोहा सभी ने माना. इप्टा के प्रांतीय सचिव राकेश पिछले 35 वर्षों से इससे जुड़े हैं. कहते हैं कि अस्सी के दशक के आखिर में जब अयोध्या विवाद ने जन्म लिया तो इप्टा ने भी अंगड़ाई ली और सांस्कृतिक यात्राएं शुरु कीं.

Shabana Azmi Indien Bollywood
कैफी आजमी और उनकी पत्नी शौकत की जिंदगी से रूबरू कराता जावेद अख्तर का नाटक "कैफी और मैं"तस्वीर: Suhail Waheed

1989 की लखनऊ से अयोध्या यात्रा में कैफी के साथ बड़ी संख्या में साहित्यकार और सामाजिक रुझान रखने वाले लोग शामिल पूरे देश की निगाहें इस पर पड़ीं, सभी ने इसको सराहा. 1993 में जब सांप्रदायिकता ज्वालामुखी की तरह फूटी तो बनारस से मगहर तक पदचीन्ह कबीर यात्रा के दौरान ही कैफी की मशहूर नज़्म दूसरा बनवास का सृजन हुआ. राकेश बताते हैं, "तब हम लोग वास्तव में कबीर के पदचिह्नों पर चलें." उसी दौरान इप्टा के विख्यात नाटक पर्दाफाश ने भी अपनी धाक जमाई. 1995 में आगरा से दिल्ली तक पहचान नजीर में भी नजीर अकबराबादी के गीतों को गुनगुनाते हुए लोगों का काफिला देखने लायक था.

दूसरे विश्व युद्ध का दंश झेल रहे माहौल की ही देन थी कि 1940 में कोलकाता यूथ कल्चरल इंस्टीटयूट की स्थापना हुई. 1941 में बैंगलोर में पीपुल्स थियेटर ने बाकायदा शक्ल अख्तियार की और 1942 में बंगाल के अकाल पीडितों के लिए विनय राय के नेतृत्व में अभियान चलने को 1943 में मुंबई में इप्टा की नींव पड़ने की वजह माना गया.

इप्टा के पहले दौर का ये सामाजिक जुड़ाव धीरे धीरे खत्म हो गया. हालांकि इप्टा की उप शाखाओं के रूप में एक खास शैली में हबीब तनवीर और शंभू मिश्र भी खूब सक्रिय रहे. जबलपुर में विवेचना, लखनऊ में कलम, मेघदूत, नीपा, इलाहाबाद में कई समानांतर नाट्य संस्थाओं ने इप्टा के आंदोलन को आगे बढ़ाया लेकिन सीधा जनजुड़ाव बाकी न रहा.

रिपोर्टः सुहेल वहीद, लखनऊ

संपादनः ए जमाल

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