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चुनाव तो आसान था, आगे और बड़ी चुनौती

बारबरा वेजेल
८ मई २०१७

फ्रांस में इमानुएल माक्रों ने ले पेन को राष्ट्रपति बनने से रोक दिया है. लेकिन ये उनकी चुनौतियों का सबसे आसान हिस्सा था.

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Frankreich Präsident Emmanuel Macron spricht vor dem Louvre in Paris
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler

वे हमेशा से अपनी क्लास के सबसे अच्छे स्टूडेंट हुआ करते थे और एक तरह से वंडर चाइल्ड थे. इमानुएल माक्रों ने अपनी छोटी सी जिंदगी में सब कुछ पाया है जो उन्होंने चाहा है. कंसर्ट पियानोवादक से लेकर इंवेस्टमेंट बैंकर, वाणिज्य मंत्री और आखिरकार देश के राष्ट्रपति तक. ये फ्रांस की राजनीति में अब तक की सबसे तेज चढ़ाई है. और उन्होंने मुश्किल परिस्थितियों में उग्र दक्षिणपंथियों की लड़ाकू मशीन मारीन ले पेन को मात देने में कामयाबी पाई है. बहुत से मतदाताओं के वोट न देने या वोट को अवैध कर देने के बावजूद उनके पास सरकार चलाने का अच्छा मतादेश है, भले ही जीत भारी न रही हो. 

बाल बाल बचा यूरोप

चुनाव जीतने के बाद नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने सबसे पहले जिन लोगों को टेलिफोन किया उनमें जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल भी थीं. मैर्केल और दूसरे यूरोपीय नेताओं ने रविवार शाम राहत की सांस ली होगी. यह डर बुरी तरह बैठा था कि यूरोप की दुश्मन मारीन ले पेन जीत की स्थिति में पूरी इमारत को ढहा सकती है. लेकिन एक बार फिर हम बाल बाल बचे हैं. इमानुएल माक्रों ने साबित कर दिया है कि यूरोप में पॉपुलिज्म और उग्र दक्षिणपंथ को रोका जा सकता है.

लेकिन नये राष्ट्रपति के पास जश्न मनाने का समय ज्यादा नहीं है. समस्या की शुरुआत संसद में बहुमत की तलाश के साथ शुरू हो जाती है. चार हफ्ते के अंदर जब फ्रांस की नई संसद का चुनाव होगा तब तक उन्हें अपने आँ मार्श आंदोलन को एक राजनीतिक पार्टी में तब्दील करना होगा. मौजूदा राष्ट्रपति फ्रासोआ ओलांद की सोशलिस्ट पार्टी के बहुत से नेता माक्रों की मदद करना चाहते हैं ताकि वे भी संसद की सीट जीत सकें, लेकिन राष्ट्रपति चुनावों ने दिखाया है कि सोशलिस्ट पार्टी बुरी तरह हार गये हैं. और अति वामपंथियों ने बधाई के फौरन बाद चुनाव अभियान वाले हमलों को जारी रखा है, उनसे मदद की कोई उम्मीद नहीं है.

Barbara Wesel Kommentarbild App *PROVISORISCH*
बारबरा वेजेल

कंजरवेटिव रिपब्लिकन पार्टी भी संसदीय चुनावों में बहुमत पाने की उम्मीद कर रही है, हालांकि उसका राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बुरी तरह विफल रहा था. फ्रांस के कंजरवेटिव भी बंटे हुए हैं. एक नरमपंथी धरा है जो माक्रों के साथ सहयोग करना चाहता है तो दूसरा दक्षिणपंथी धरा है जो उन्हें सिद्धांतवश जल्द से जल्द नष्ट कर देना चाहता है. उनका रवैया भी वैसा ही आत्मघाती है जैसा वामपंथियों का. ऐसे में जो बहुमत बनेगा और इमानुएल माक्रों शासन चला पायेंगे, ये साफ नहीं है.

महती चुनौती

नये राष्ट्रपति को दिखाना होगा कि क्या उनका धैर्य, उनकी तीखी समझ और मोर्चा बनाने की उनकी क्षमता फ्रांस को आगे बढ़ने के लिए जरूरी गति दे पायेगी. 6.6 करोड़ लोगों का अड़ियल, सुधारों के लिए अनिच्छुक, सिद्धांतों का गुलाम और अतीत में जकड़ा हुआ देश. माक्रों को इस देश को अपने आँ मार्श आंदोलन के नाम की ही तरह मार्च कराना होगा, सामाजिक मतभेदों को पाटना होगा, गांव के लोगों को प्रोत्साहन देना होगा, गरीब उत्तरी इलाकों में रोजबार बनाना होगा, अर्थव्यवस्था को प्रतिस्पर्धी बनाना होगा, और ये सब देश में अति वामपंथियों और उग्र दक्षिणपंथियों के विरोध के बावजूद. नये को दरअसल चमत्कार करना होगा ताकि असंतोष को उत्साह के माहौल में बदला जा सके.

उग्र दक्षिणपंथी अपना नाम बदल रहे हैं. पुरानी बोतल में नई शराब. और यदि उन्हें पर्याप्त संख्या में जीत मिलती है तो वे नये राष्ट्रपति का जीना दूभर कर सकते हैं. शायद चुनावी हार के बाद नेशनल फ्रंट पार्टी में बदलाव का फैसला होता है, लेकिन ले पेन और उनके साथी भविष्य में भी आंदोलन करते रहेंगे, घृणा फैलाते रहेंगे और डर फैलाते रहेंगे. माक्रों को अपनी जनता के इन विध्वंसक विचारों के साथ बहस करनी होगी और विभाजित मुल्क को जोड़ना होगा. ये कहना आसान है, करना मुश्किल. क्योंकि मामला सिर्फ बेरोजगारी और गरीबी का नहीं बल्कि सामाजिक वर्ग से बाहर निकलने और मानवीय चरित्र के बुरे पहलू का भी है.

इमानुएल माक्रों के कंधे पर बहुत बड़ा बोझ है. उन्हें फ्रांस को बचाना है और उसके साथ यूरोप को भी.