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चुनाव आते ही बिहार में उछलने लगे घोटाले

मनीष कुमार, पटना
७ अगस्त २०२०

एक ओर निर्वाचन आयोग बिहार में समय पर चुनाव कराने की बात कर रहा है तो दूसरी ओर कोरोना महामारी अपने पैर पसार रही है. सत्ताधारी गठबंधन सहित सभी राजनीतिक दल महामारी की चिंता छोड़ चुनाव की चिंता में फंसे हैं.

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वर्चुअल रैलियांतस्वीर: DW/P. Tewari

भारत का दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रांत बिहार अपने अपने इतिहास में कई ऐसे घटनाक्रमों का गवाह रहा है जिसने देशव्यापी प्रभाव डाला है. कुछ उपलब्धियों व घटनाओं ने वैश्विक स्तर पर इस राज्य को प्रतिष्ठा दिलाई तो कुछ ने मान-मर्दन भी किया. दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में कालांतर में यह प्रदेश बीमारू राज्य की श्रेणी में शामिल हो गया वहीं राजनेता-अधिकारी गठजोड़ ने स्थिति को बदतर बना दिया. इसी गठजोड़ ने राज्य में कई ऐसे घोटालों को जन्म दिया जिसकी कल्पना भी बेमानी थी. हालांकि ऐसा नहीं है इन्हें अंजाम देने वाले कानून की गिरफ्त से बाहर रहे. कई नेताओं-अफसरों को सजा मिली और कई अन्य पर कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई चल रही है. अब जब विधानसभा चुनाव सिर पर है तो प्रदेश की सियासत में ये घोटाले एक बार फिर उछाले जाने लगे हैं. आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है और दिनोंदिन यह तेज ही होता जाएगा. वजह साफ है, आम जनता की नजर में स्वयं को और अपनी पार्टी को पाक-साफ घोषित करना व उनका सबसे बड़ा हितैषी साबित करना.

कोविड-19 के कारण इस बार जाहिर है वर्चुअल रैलियों का दौर जारी रहेगा. साथ ही सोशल मीडिया के टूल्स यथा वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टा्रग्राम व ट्विटर आदि की प्रमुख भूमिका रहेगी. सोशल मीडिया के इन कथित दिव्यास्त्रों का उपयोग शुरू भी हो गया है. बिहार की भाजपा नीत गठबंधन वाली एनडीए सरकार के घटक दलों के नेता राज्य की प्रमुख व मुखर विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पर निशाना साधते रहते हैं. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इनके टारगेट पर राजद के युवा नेता, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री व संप्रति बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव व उनका परिवार होता है. हर वार में उन्हें उनके पिता लालू प्रसाद व माता राबड़ी देवी के शासन काल के दौरान हुए घोटाले व अन्य अनियमितताओं की याद दिलाई जाती है तो उसी अंदाज में तेजस्वी यादव भी सत्ता पक्ष को जवाब देते नजर आते हैं.

Patna Bihar Minister Nitish Kumar
फिर सत्ता में आना चाहते हैं नीतीशतस्वीर: IANS

तेजस्वी ने बाढ़ के दौरान सरकार की नाकामी की चर्चा भर क्या की, प्रदेश के उपमुख्यमंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी अपने अगले ट्वीट में उनको सीधा जवाब देते हैं. वे कहते हैं, "जिनके माता-पिता के राज में करोड़ों का बाढ़ राहत घोटाला हुआ, वे कुछ बाढ़ पीड़ितों को एक शाम का भोजन कराते हुए फोटो खिंचवा कर पाप धोने की कोशिश कर रहे हैं." उनका आरोप है कि 1996-99 के बीच उस वक्त की लालू-राबड़ी सरकार ने चारा घोटाला की तर्ज पर बाढ़ राहत घोटाला किया था. साफ है प्रहार का केंद्र घोटाला ही रहता है. हालांकि तेजस्वी यादव भी उसी अंदाज में जवाब देने से पीछे नहीं रहते. उन्होंने भी नीतीश शासन के पंद्रह साल के दरम्यान 55 घोटाले किए जाने का आरोप लगा दिया. वे कहते हैं, "अगर नीतीश जी में हिम्मत है तो वे कहें कि लाखों करोड़ के ये 55 घोटाले उनके संरक्षण में नहीं हुए. तेजस्वी ने इन पचपन घोटालों में सृजन घोटाला, छात्रवृत्ति घोटाला, धान घोटाला व दवा घोटाले का जिक्र किया है. सच है कि ये घोटाले अपने-अपने समय पर सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बने रहे थे."

घोटालों का राज्य है बिहार

चारा घोटाला, बाढ़ राहत घोटाला, अलकतरा घोटाला, मेधा घोटाला, गर्भाशय घोटाला, सृजन घोटाला, शौचालय घोटाला, सोलर प्लेट घोटाला, धान घोटाला, मिट्टी घोटाला, जमीन घोटाला जैसे घोटालों की लंबी फेहरिश्त समय-समय पर प्रदेशवासियों के लिए शर्मिंदगी का कारण बनती रही है. राजनीतिक पार्टियां इसके लिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करती रहती है. खासकर चुनावों के समय में इन घोटालों की अहमियत बढ़ जाती है. महादलित विकास मिशन घोटाले में बिहार के निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (विजिलेंस) द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी एसएम राजू एवं तीन रिटायर्ड आइएएस अफसरों समेत छह लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराए जाने की घटना ने इन घोटालों की याद ताजा कर दी है. प्रकारांतर में होने वाले इन घोटालों ने प्रदेश के आर्थिक-सामाजिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला है.

Indien Poster Lalu Prasad Yadav und Tejashwi Yadav in Patna
शुरू हो गई पोस्टरबाजीतस्वीर: IANS

ताजा घटनाक्रम नौ साल पहले महादलित विकास मिशन में हुए 17 करोड़ रुपये के गबन से जुड़ा है. नीतीश सरकार द्वारा महादलित युवाओं के उत्थान के उद्देश्य से 2011 में गठित महादलित विकास मिशन के जरिए उन्हें स्पोकेन इंग्लिश कोर्स समेत कम्प्यूटर आधारित एमएस ऑफिस, टैली आदि समेत 22 तरह के कोर्स कराने का निर्णय लिया गया ताकि वे अपनी रोजी-रोटी चला सकें. इस योजना के लिए केंद्र सरकार ने भी धनराशि दी. मिशन द्वारा 15000 छात्रों को प्रशिक्षित करने के दावे के विपरीत कई छात्रों द्वारा विजिलेंस से शिकायत की गई कि जिन छात्रों का नाम प्रशिक्षितों की सूची में शामिल है उन्हें वास्तव में प्रशिक्षण ही नहीं दिया गया. जांच के दौरान छात्रों की शिकायत सही पाई. आरोप सही पाए जाने के बाद अंतत: आइएएस अधिकारी एसएम राजू , तीन पूर्व आइएएस अफसर व ब्रिटिश लिंगुआ संस्थान के निदेशक के समेत छह लोगों के खिलाफ विजिलेंस ने एफआइआर दर्ज कराई. मिशन में यह घोटाला वर्ष 2016 तक चला और 17 करोड़ की कुल राशि का गबन किया गया.

लालू-राबड़ी के शासन काल में यूं तो कई घोटाले हुए किंतु उनमें सबसे ज्यादा चर्चा चारा घोटाले की रही जिसकी वजह से लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी और जेल जाना पड़ा. इस घोटाले के पूरे मामले में लालू प्रसाद के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, विद्यासागर निषाद, जगदीश शर्मा, ध्रुव भगत और भारतीय प्रशासनिक सेवा के तीन अधिकारी बेक जूलियस, महेश प्रसाद और फूलचंद सिंह समेत कुल 38 आरोपी थे जिनमें कई लोगों की मौत हो चुकी है. करीब 960 करोड़ के इस घोटाले में 53 मामले दर्ज किए गए थे. वहीं नीतीश कुमार के शासन काल में हुए जिस घोटाले की गूंज सबसे ज्यादा सुनाई दी, वह सृजन घोटाला रहा. यह घोटाला भागलपुर के सबौर के सृजन नामक संस्था से जुड़ा है. इस घोटाले की मास्टरमाइंड मनोरमा देवी नामक महिला थी जिनका निधन हो गया. उनके बेटे अमित व बहू प्रिया इस घोटाले के सूत्रधार बने. घोटाले की जांच के दौरान यह पाया गया था कि सरकारी राशि को सरकारी बैंक में जमा करने के बाद सृजन के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता था. इस साजिश में सरकारी अधिकारी व बैंक के कर्मचारी भी शामिल थे. बाद में इन पैसों को या तो ऊंचे सूद पर बाजार में या फिर अन्य को व्यापार, निवेश या अन्य धंधों के लिए दिया जाता था. जब सरकार के चेक बाउंस होने लगे तब इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ और फिर एक-एक करके परत-दर-परत उघड़ती चली गई. यह घोटाला चारा घोटाले से लगभग दोगुनी रकम का बताया जाता है.

Indien Bihar | Coronavirus | Coronatest
प्रांत में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैंतस्वीर: DW/M. Kumar

घोटालों का राजा चारा घोटाला

जाहिर है, इन घोटालों की जांच चलती रहती है और समय-समय पर घोटाले सामने आते रहते हैं. अभी हाल में ही धान घोटाला या राइस मिल घोटाला में ईडी ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए देवेश नाम के शख्स को गिरफ्तार किया है. इस घोटाले को बिहार के दूसरे चारा घोटाले के रूप में देखा जा रहा है और यह मामला इतना बड़ा हो गया है कि इस संबंध में हजार से ज्यादा एफआइआर दर्ज किए जा चुके हैं. जिस तरह चारा घोटाले में स्कूटर पर सैकड़ों टन चारा ढोया गया, उसी तरह फर्जी राइस मिल व नकली ट्रांसपोर्टर बनकर करीब छह सौ करोड़ से ज्यादा के इस घोटाले को अंजाम दिया गया. यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि राजनीति व घोटाले का चोली-दामन का साथ रहा है. कई ऐसे उदाहरण दुनियाभर के तमाम देशों में मिल जाएंगे जहां विपक्ष को सत्तारूढ़ पार्टी के हर काम में भ्रष्टाचार या साजिश की बू आती है. शायद यही वजह है कि सत्ता से हटने के बाद कई दिग्गजों को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ती है जिसे वे अपनी सरकार के दिनों में लोकोपयोगी बताते रहे. राजधानी पटना स्थित सूबे की लाइफलाइन कहे जाने वाले महात्मा गांधी सेतु की पश्चिमी लेन के बदले गए सुपर स्ट्रक्चर का केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने शुक्रवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग कर लोकार्पण किया. वास्तव में उत्तर बिहार के लोगों को इससे काफी राहत मिलेगी किंतु कांग्रेस के विधान पार्षद प्रेमचंद मिश्रा को इसमें भ्रष्टाचार की बू आ रही है.

प्रेमचंद मिश्रा कहते हैं, "चुनाव को देखते हुए आनन-फानन इसका उद्घाटन किया गया. मैंने सदन के बाहर व भीतर भी कई बार कहा है कि अनुबंध के विपरीत इस सुपर स्ट्रक्चर के निर्माण में जंगरोधी स्टील की जगह घटिया गुणवत्ता वाले स्टील का उपयोग किया. सरकार ने इस ओर ध्यान देने की बजाए मामले को दबाया जो अपने आप में कमजोर निर्माण व भ्रष्टाचार को प्रमाणित करने को पर्याप्त है. मेरे पास ऐसे प्रमाण हैं जो यह साबित करते हैं कि जंगरोधी स्टील का उपयोग नहीं के बराबर हुआ है. बिहार में महागठबंधन की सरकार बनते ही इस मामले की जांच कराई जाएगी तथा भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को दंडित किया जाएगा." सरकार ने इस स्ट्रक्चर की अवधि सौ साल बताई है. अब यह तो समय बताएगा या फिर सत्ता में आई कोई दूसरी सरकार बताएगी कि भ्रष्टाचार हुआ या नहीं किंतु यह भी सच है कि किसी भी घोटाले का बीजारोपण ऐसे ही तरीकों से होता है. वाकई, यह सच है कि समय के साथ घोटाले भी स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत चलते रहेंगे तथा चुनावी आरोप-प्रत्यारोप का हिस्सा बनते रहेंगे. हां, आम जनता किस पर कितना भरोसा करेगी यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा. घोटाले हैं, वे तो उछलते ही रहेंगे.

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