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भारत ने सेना को तैयार रहने को कहा

चारु कार्तिकेय
१८ जून २०२०

लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर सेना की भारी तैनाती कर दी गई है. भारतीय वायु सेना ने भी कुछ विमान महत्वपूर्ण ठिकानों पर तैनात कर दिए हैं. नौसेना को भी हिन्द महासागर के इलाके में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए कहा गया है.

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Indische Armee Lastwagen auf dem Weg nach Ladakh
तस्वीर: Reuters/D. Ismail

भारतीय सेना के 20 सिपाहियों के मारे जाने पर देश के राजनीतिक नेतृत्व की तीखी प्रतिक्रिया के बाद अब भारत में सेना को उच्च स्तर पर सतर्क कर दिया गया है. लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर सिपाहियों, हथियारों, सेना के वाहनों और अन्य उपकरणों की भारी तैनाती कर दी गई है. बुधवार को कई तस्वीरें जारी की गईं जिनमें भारतीय सेना के ट्रकों को कश्मीर से गुजरते हुए लद्दाख की तरफ जाने वाले राज्यमार्ग पर बढ़ते हुए देखा गया.

मीडिया में आई खबरों के अनुसार, भारत-चीन सीमा के तीनों सेक्टरों में सेना की टुकड़ियों को वास्तविक नियंत्रण रेखा के और पास मई में ही भेजा जा चुका था. खबर है कि अब वायु सेना ने भी अपने कुछ विमान महत्वपूर्ण ठिकानों पर तैनात कर दिए हैं. नौसेना को भी हिन्द महासागर के इलाके में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए कहा गया है. सीमा पर स्थानीय सैन्य कमांडरों को किसी भी संभावना की लिए तैयार रहने को कहा गया है.

चीन की तरफ से भी चीनी सेना के आगे बढ़ने की खबर है. कुछ पत्रकारों का दावा है कि गलवान-श्योक नदियों के संगम और दौलत बेग ओल्डी इलाके के बीच डेपसांग समतल क्षेत्र में चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण के पार भारत के इलाके में कई किलोमीटर तक अंदर चली गई है. हालांकि इस पर सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.

Luftbild vom Galwan Tal in Ladakh
लद्दाख में गलवान घाटी का सैटलाइट चित्र. कुछ मीडिया संस्थानों का दावा है कि इस चित्र में चीनी सेना की लामबंदी को साफ देखा जा सकता है.तस्वीर: Reuters/PLANET LABS INC

कई मीडिया रिपोर्टों में ऐसी खबरें हैं कि भारत चीन के खिलाफ आर्थिक प्रतिक्रिया की तैयारी कर रहा है, जिसके तहत संभव है कि कुछ महत्वपूर्ण सरकारी कार्यों के टेंडरों में चीनी कंपनियों को भागीदारी की इजाजत ना मिले. कुछ भारतीय कंपनियों में चीनी कंपनियों के निवेश की समीक्षा की भी संभावना है. बुधवार को कई जगहों पर चीनी सामान को बहिष्कार करने के नारे लगे और प्रदर्शन भी हुए, जिनमें चीनी सामान को, चीनी झंडे को और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तस्वीरों और पुतलों को जलाया गया. 

इस बीच, गलवान घाटी की हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच बने हुए तनाव को कम करने के लिए सीमा पर दोनों तरफ के मेजर जनरलों के बीच हुई पहले दौर की बातचीत बेनतीजा रही. बताया जा रहा है कि दूसरे दौर की बातचीत गुरूवार को होगी. कूटनीतिक स्तर पर दोनों देश अपने अपने बयानों और अपनी अपनी स्थिति पर अड़े हुए हैं. चीन के गलवान घाटी के स्वामित्व के दावे पर बुधवार देर रात विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया आई. चीन के दावे को खारिज करते हुए मंत्रालय ने कहा कि चीन को "अतिशयोक्तिपूर्ण" और "असमर्थनीय" दावे नहीं करने चाहिए.

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि "जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा" और "भारत शांति चाहता है, लेकिन भारत उकसाने पर यथोचित जवाब देने में सक्षम है". विदेश-मंत्री एस जयशंकर ने चीन के विदेश-मंत्री वांग यी से भी बातचीत के दौरान दो-टूक कहा था कि गलवान घाटी में जो भी हुआ उसके लिए चीन "सीधे तौर पर जिम्मेदार" है और यह "पहले से सोची-समझी और नियोजित कार्यवाई" थी. दोनों नेताओं ने जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी स्थिति का न्यायपूर्ण ढंग से समाधान निकालने और गतिरोध की तीव्रता को कम करने पर सहमति जताई.

अमेरिका: मध्यस्थता की कोई योजना नहीं

उधर अमेरिका ने कहा है कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की भारत और चीन के बीच मध्यस्थता की अभी कोई औपचारिक योजना नहीं है. यह बात मीडिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में व्हाइट हाउस प्रेस सचिव ने कही. उन्होंने भारतीय सैनिकों के  मारे जाने पर शोक भी व्यक्त किया. उन्होंने यह भी कहा कि इस विषय पर राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी की आखिरी बार बातचीत दो जून को हुई थी.

Deutschland Covid-19 Graffiti Trump und Xi in Berlin
बर्लिन में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर बनी एक ग्राफिटी.तस्वीर: picture-alliance/AA/A. Hosbas

दो जून को प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय ने एक वकतव्य में कहा था की दोनों नेताओं के बीच कई विषयों पर चर्चा हुई, जिनमें भारत-चीन सीमा पर स्थिति भी शामिल थी. इस वक्तव्य को महत्वपूर्ण माना जा रहा तहत कि क्योंकि ये दर्शाता है कि भारत ने चीन के साथ सीमा पर गतिरोध के समाधान के लिए दूसरे देशों से बातचीत शुरू कर दी थी. उसके कुछ ही दिनों पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद ही प्रस्ताव दिया था कि वो भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को "सुलझाने और उसमें मध्यस्थता करने के लिए तैयार और सक्षम हैं."

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने भी कहा थे कि चीन ने अपने सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास उत्तरी भारत के अंदर भेज दिया है और ये इस तरह का कदम है जिसे कोई तानाशाह ही उठाएगा. उसके बाद अमेरिकी संसद के हाउस ऑफ रेप्रेजेन्टेटिव्स की विदेशी मामलों की समिति ने कहा कि वो भारत के खिलाफ चीन के आक्रामक रवैये को लेकर बहुत चिंतित है और वो चीन से बातचीत के जरिए इस गतिरोध का समाधान खोजने की अपील करती है.

समिति के अध्यक्ष एलियट एंगेल ने कहा, "मैं बहुत चिंतित हूं...चीन एक बार फिर दिखा रहा है कि वो मतभेदों को अंतर्राष्ट्रीय कानून से सुलझाने की जगह अपने पड़ोसी देशों को धौंस दिखाने में विश्वास रखता है."

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