चीन में कारोबार पर भारी पड़ती राजनीति
१९ जनवरी २०१८बीते हफ्ते इसकी बानगी तब देखने को मिली जब होटल मैरियट और दूसरी कंपनियों ने स्वशासित ताइवान को अपनी वेबसाइट पर एक देश के रूप में दिखाया. हालांकि कंपनियों पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के प्रखर राष्ट्रवादी रुख का दबाव कई तरफ से पड़ रहा है. राष्ट्रपति के चलाए अभियानों का सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के राजनीतिक नियंत्रण और कारोबारी मामलों में सीधी भूमिका पर साफ असर दिख रहा है.
कारोबारी शिकायत कर रहे हैं कि उनके कामकाज में इंटरनेट की बाधा आ रही है. चीन ने पिछले साल से सेंसर को ज्यादा सख्त कर दिया है. इसका मकसद यह तय करना है कि चीन के लोग इंटरनेट पर क्या देखें और क्या नहीं. कंपनियों पर इसके लिए भी दबाव बनाया जा रहा है कि वो स्थानीय प्रतिद्वंद्वी को तकनीकी रूप से विकसित होने में मदद करने वाली पहल को बढ़ावा दें.
पिछले साल चीन की सरकार ने दक्षिण कोरियाई रिटेलर लोट्टे का कारोबार चीन में बंद कर दिया. इस कंपनी ने दक्षिण कोरिया की सरकार को जमीन बेची थी जिसका इस्तेमाल एंटी मिसाइल सिस्टम लगाने के लिए होना है. चीन की सरकार इस मिसाइल सिस्टम का विरोध कर रही है.
चीन में अमेरिकन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष जेम्स जिमरमान का कहना है, "शी जिनपिंग राजनीति को और ऊंचे स्तर पर ले गए हैं." विदेशी कंपनियों को चिंता है कि "राजनीतिक संस्थाओं की सनक" निर्णय लेने की क्षमता खत्म कर देगी. जिमरमान ने समाचार एजेंसी एपी के सवालों के जवाब में लिखा है, "राजनीतिक संस्थाएं ताकत की भूखी होती हैं और ताकत बरकरार रखने के लिए नई खोज और उद्यमशीलता के जोखिम पर कुछ चुनिंदा कंपनियों को ही बार बार मौके देती हैं."
कंपनियों को सबसे ज्यादा परेशानी इस बात से हो रही है कि बीजिंग चीनी साझीदारों के साथ संयुक्त उपक्रमों का फिर से गठन करा रहा है ताकि सत्ताधारी दल को निवेश, नियुक्ति और दूसरे फैसलों में सीधे दखल देने का औपचारिक मौका मिल सके.
चीन की अर्थव्यवस्था पर सरकार का मजबूत नियंत्रण है और यहां राजनीति बहुत पहले से ही बड़ी भूमिका निभाती रही है. बीते कुछ दशकों से उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए की कुछ ढील दी गयी थी जिससे देश में नौकरियों और संपत्तियों में इजाफा हुआ. नेता ऐसे संकेत दे रहे थे कि देश में मुक्त बाजार को बढ़ावा दिया जाएगा हालांकि इसके साथ ही सरकारी कंपनियों को भी खूब मजबूत किया गया. इन कंपनियों का बैंकिंग, तेल, टेलिकॉम और दूसरे उद्योगों पर एक तरह से कब्जा है.
2012 में शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद पार्टी ने कारोबार पर अपनी पकड़ को फिर से मजबूत करना चालू कर दिया. 2013 में पार्टी ने पहली बार कहा कि बाजार की शक्तियां संसाधनों के बंटवारे में "निर्णायक भूमिका" निभाएंगी. इस फैसले का कारोबारियों ने स्वागत किया. हालांकि इसके साथ ही पारर्टी ने यह भी कहा कि वह सरकार नियंत्रित उद्योगों का नियंत्रण अब सीधे अपने हाथों में लेंगी. बहुत से लोगों का कहना है कि यह नुकसान और भ्रष्टाचार को देखते हुए उपजी निराशा का परिणाम है.
कम्युनिस्ट पार्टी की वेबसाइट के मुताबिक दिसंबर में पोलित ब्यूरो की बैठक में शी जिनपिंग ने "आर्थिक कामों में पार्टी के नेतृत्व को मजबूत" करने की मांग रखी. पार्टी की नीतियों के प्रमुख जर्नल कियुशी में एक ब्लॉग भी छपा जिसमें विकास की रणनीति में उद्योगों के निजीकरण की आलोचना की गई.
पिछले हफ्ते मैरियट होटल, फैशन ब्रांड जारा, डेल्टा एयरलाइंस और मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनी मेडट्रॉनिक ने सरकारी गुस्से का सामना किया. मैरियट को एक हफ्ते तक अपनी वेबसाइट बंद रखनी पड़ी और दूसरी कंपनियों को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के लिए कहा गया. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने जानकारी दी है कि तिब्बत के बारे में ट्वीट को लाइक करने वाले मैरियट के कर्मचारी को बर्खास्त किया जाएगा. हालांकि इन कंपनियों को जो झेलना पड़ा वो लोट्टे की तुलना में कुछ नहीं है.
अधिकारियों ने दक्षिण कोरियाई कंपनी लोट्टे के 99 सुपरमार्केट और दूसरे स्टोर बंद कर दिए हैं. लोट्टे का कसूर सिर्फ इतना है कि उसने अमेरिका से आ रहे थाड एंटी मिसाइल सिस्टम को लगाने के लिए जमीन बेची. चीन को चिंता है कि अमेरिका इसके जरिए चीन की निगरानी करेगा.
दक्षिण कोरिया और चीन के बीच बाद में इस मामले को लेकर सुलह हो गई लेकिन लोट्टे को करोड़ों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा. दक्षिण कोरियाई मीडिया का कहना है कि कंपनी ने चीन को विदा कहने का फैसला किया है और अपने स्टोर बेचने की फिराक में है.
कंपनियों को पिछले साल से चल रहे कम्युनिस्ट पार्टी के खास अभियान का असर महसूस हो रहा है. पार्टी कंपनियों के आर्टिकल ऑफ एसोसिेशन फिर से लिखवा रही है. यह वो दस्तावेज है जिसमें कंपनी की संरचना, लक्ष्य का विस्तृत ब्यौरा रहता है इसके साथ ही कंपनी के बोर्ड में सलाहकारों की कुर्सी पार्टी के सदस्यों को दी जा रही है. कारोबारी लोग निजी बातचीत में शिकायत कर रहे है कि पार्टी अपने उद्देश्यों को कंपनियों को खर्च पर पूरा करने की कोशिश में है.
2006 में पार्टी के नेता व राष्ट्रपति रहे हू जिंताओ ने विदेशी कंपनियों में कर्मचारी संघ बनाने के लिए अभियान चलाया. इसमें सफलता तो मिली लेकिन संघों ने कर्मचारियों के लिए कुछ खास नहीं किया और उन पर कंपनी के प्रबंधकों के साथ मिल जाने के आरोप ही लगते रहे.
इसके उलट इस बार के अभियान से सीधे संयुक्त उपक्रमों की संरचना और नेतृत्व में परिवर्तन होगा. चीन में यूरोपीयन यूनियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने नवंबर में चेतावनी दी कि अगर इस तरह के बदलाव होते हैं तो कंपनियां नए संयुक्त उपक्रमों में निवेश करने से बचेंगी, साथ ही वे मौजूदा कारोबारों में भी अपनी प्रतिबद्धता पर भी दोबारा सोचने के लिए विवश होंगी. यूरोपीयन कारोबारियों का यह भी कहना है कि उन्हें अपने देश में इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है क्योंकि बहुत से लोगों के जेहन में पूर्वी यूरोप के सोवियत जमाने की व्यवस्था की यादें अभी ताजा हैं.
एनआर/ (एपी)