चीन की ताइवान में सैन्य दखल की धमकी
२ जनवरी २०१९ताइवान की आजादी एक "त्रासदी" होगी, इन्हीं शब्दों के साथ चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान और चीन के शांतिपूर्ण एकीकरण की बात दोहराई है. शी ने ताइवान को एक हाथ से पुचकारा तो दूसरे हाथ से थप्पड़ भी दिखाया. चीनी राष्ट्रपति ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि एकीकरण के लिए वह सेना का इस्तेमाल न करने का वादा नहीं कर सकते.
बीजिंग के ग्रेट हॉल ऑफ पीपल में ताइवान नीति से जुड़े कार्यक्रम के दौरान चीनी राष्ट्रपति ने कहा, ताइवान के सभी लोगों को "साफ तौर पर इस बात का अहसास होना चाहिए कि ताइवान की आजादी ताइवान के लिए सिर्फ गंभीर त्रासदी लाएगी. हम शांतिपूर्ण एकीकरण के लिए व्यापक स्थान बनाने को तैयार है, लेकिन हम अलगाववादी गतिविधियों के लिए कोई जगह नहीं छोड़ेंगे."
चेतावनी भरे लहजे में शी ने यह भी कहा, "हम ताकत इस्तेमाल न करने का कोई वादा नहीं करते हैं और सभी जरूरी विकल्प को सुरक्षित रखते हैं." चीन ने ताइवान के साथ साथ अमेरिका को भी आंखें दिखाई है. शी ने कहा कि ताइवान चीन का अंदरूनी मामला है और उनका देश "बाहरी दखल" को मंजूरी नहीं देगा.
शी जिनपिंग के बयान से एक दिन पहले ही ताइवान की राष्ट्रपति तसाई इंग-वेन ने कहा था कि बीजिंग को ताइवान के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए और शांतिपूर्ण ढंग से मतभेद सुलझाने चाहिए. तसाई ने कहा, चीन को "आजादी और लोकतंत्र में रह रहे 2.3 करोड़ लोगों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और हमारे आपसी मतभेदों को सुलझाने के लिए शांति और बराबरी का रास्ता अपनाना चाहिए."
चीन में दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1946 से 1949 तक राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्ट पीपुल्स आर्मी के बीच गृह युद्ध हुआ था. 1949 में खत्म हुए इस युद्ध में राष्ट्रवादी हारे और चीन की मुख्यभूमि से भागकर ताइवान नाम के द्वीप पर चले गए. उन्होंने ताइवान को एक स्वतंत्र देश घोषित किया और उसका आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना रखा. वहीं चीन का आधिकारिक नाम पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है. दोनों पक्षों के बीच गहरे कारोबारी, सांस्कृतिक और निजी व्यक्तिगत संबंध हैं. लेकिन लोकतंत्र के मुद्दे पर चीन और ताइवान में जमीन आसमान का फासला है. लोकतांत्रिक शासन पर चलने वाले ताइवान को एकपार्टी शासन वाले चीन के शासन में कोई रुचि नहीं है.
लेकिन चीन किसी तरह ताइवान को खुद में मिलाना चाहता है. 1951 में तिब्बत पर हमला करने के बाद के बाद चीन ने 1959 में ल्हासा को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया. आज वह तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग कहता है. बीजिंग ताइवान पर भी दावा जताता है और पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के द्वीपों पर भी. दक्षिण चीन सागर समुद्री सीमा को लेकर बीजिंग पर छोटे द्वीपीय देशों को डराने के आरोप लगते हैं.
हाल के बरसों में चीन अपनी संप्रभुता को लेकर आक्रामक रुख दिखा रहा है. वह अन्य देशों को इस बात के लिए बाध्य भी करता है कि वे या तो चीन के साथ कूटनीतिक रिश्ते रखें या ताइवान के साथ. 2018 में चीन ने अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन कंपनियों और होटल कंपनियों को भी अपनी वेबसाइट पर ताइवान को चीन का हिस्सा बताने के लिए बाध्य किया.
चीन को लगातार अमेरिका और ताइवान की नजदीकी परेशान करती है. अमेरिका, ताइवान को अपना करीबी साझेदार मानता है. चीन की चिंताओं के बावजूद वॉशिंगटन ताइपे को हथियार और अत्याधुनिक लड़ाकू विमान भी मुहैया कराता है. 2018 में अमेरिका ने ताइवान रिलेशंस एक्ट और ताइवान ट्रैवल एक्ट भी पास किए. इन एक्टों के तहत दोनों देशों के आम नागरिक और उच्च अधिकारी एक दूसरे के यहां आसानी से आ जा सकते हैं.
आधिकारिक रूप से अमेरिका वन चाइना पॉलिसी को मानता है और कहता है कि वह ताइवान की आजादी का समर्थन नहीं करता है. लेकिन डब्ल्यूटीओ, एपेक, एशियाई विकास बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में ताइवान की सदस्यता का समर्थन करता है. हालांकि ऐसी संस्थाओं का सदस्य बनने के लिए अलग देश होना अनिवार्य नहीं है.
असल में चीन सुपरपावर के रूप में अमेरिका के दबदबे को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है. सेना के आधुनिकीकरण, नौसैनिक बेड़े का विस्तार, नए इलाकों में सैन्य अड्डे बनाना, ये सब इन्हीं कोशिशों का हिस्सा है. चीन के बढ़ते सैन्य प्रभाव से पड़ोसी देश सकते में हैं और वे अमेरिका की तरफ उम्मीद टिकाए बैठे हैं.
(चीन के पांच सिर दर्द)
ओएसजे/आरपी (रॉयटर्स, एएफपी)