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चर्च में भी गेस्ट पादरी

१० नवम्बर २०१२

जर्मनी में इंजीनियरों और कुशल कामगारों की तो कमी है ही, देश में पादरियों की भी कमी है. कैथोलिक चर्च भारत और पोलैंड जैसे देशों से पादरी नियुक्ति कर रहा है. उन्हें भाषा और सांस्कृतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb

अक्सर फादर टिटुस कारीकासेरी दिन में दो बार प्रार्थना सभा का आयोजन करते हैं. उन्हें अपने शहर ट्रोएसडॉर्फ के चार चर्चों को संभालना पड़ता है. उनका काम है कैथोलिक समुदाय के सदस्यों से बात करना, मुश्किल परिस्थितियों में उन्हें सहारा देना और जरूरत पड़ने पर उनके साथ होना. कारीकासेरी भारत के हैं. जर्मनी के चर्चों में अब यह कोई नई बात नहीं रही. सालों से भारतीय पादरी जर्मन चर्चों में काम कर रहे हैं. कोलोन डियोसेस में ही 55 भारतीय पादरी काम कर रहे हैं. उनके अलावा पोलैंड, नाइजीरिया और दक्षिण कोरिया के 136 अन्य पादरी भी वहां काम करते हैं. जर्मन के 27 अन्य डियोसेस में भी हर सातवां पादरी विदेशी मूल का है.

फादर टिटुस कारीकासेरी कार्मेलाइट ऑर्डर के हैं. जब उनसे ऑर्डर के अधिकारियों ने पूछा तो उन्होंने जर्मनी में काम करने के लिए हामी भर दी. अपनी आय के साथ 44 वर्षीय फादर अपने इलाके में पादरी के प्रशिक्षण में मदद देना चाहते हैं. जब वे 2006 में जर्मनी आए तो उन्हें जर्मन एकदम नहीं आती थी.

Importpriester in Deutschland
तस्वीर: DW/A.Gorzewski

लॉटरी से विदेशी नौकरी

फादर चेल्सो मातेओ सांचेज रोजारियो के साथ भी ऐसा ही हुआ था. 35 वर्षीय रोजारियो डोमिनिकन रिपब्लिक में पैदा हुए. असल में वे कंप्यूटर प्रोग्रामर बनना चाहते थे, लेकिन तब उन्होंने पादरी सेमिनार में जाने का फैसला लिया. "वहां मुझसे पूछा गया कि क्या मैं दूसरे देश जाने के लिए तैयार रहूंगा, जहां कम पादरी हैं. तो मैंने हां कहा." उन्हें कहां भेजा जाएगा, इसका फैसला लॉटरी से हुआ. वे 2010 से बॉन के निकट वाख्टबर्ग में काम कर रहे हैं.

जर्मनी के डियोसेस में अब शायद ही कोई पादरी बनना चाहता है. 2011 में पूरे जर्मनी में सिर्फ 108 पुरुष चर्चों और ऑर्डर में पादरी की नौकरी में आए. 1990 के दशक में हर साल 300 लोग पादरी बनते थे. इस बीच बहुत से पादरी पेंशन की उम्र में पहुंच गए हैं. कैथोलिक धर्मावलंबियों को धार्मिक और आध्यात्मिक सेवा देने के लिए अतिरिक्त पादरियों की जरूरत है. लेकिन नए पादरी एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से आ रहे हैं. 2007 में जर्मनी में 1,312 विदेशी पादरी कार्यरत थे. उनमें सबसे ज्यादा भारत से थे जबकि वहां सिर्फ 1.7 करोड़ कैथोलिक रहते हैं.

Importpriester in Deutschland
तस्वीर: DW/A.Gorzewski

भाषा की समस्या

विदेशी पादरियों को स्थानीय कैथोलिक समुदाय के साथ काम करना आसान नहीं होता. जर्मन में प्रार्थना सभा आयोजित करने के लिए तैयारी करनी पड़ती है. आध्यामिक मुद्दों पर बातचीत में भाषा की कमजोरी तकलीफदेह होती है. व्यक्तिगत समस्याओं पर बातचीत करने के लिए अच्छा भाषाज्ञान जरूरी होता है. उसके अलावा स्थानीय परिस्थितियों, संस्कृति और मनोवृत्ति की समझ भी जरूरी होती है. हालांकि विदेशी पादरियों को इसकी तैयारी कराई जाती है, लेकिन व्यवहार में सब अलग होता है.

भाषाई और सांस्कृतिक समस्याओं के कारण विदेशी पादरियों की नियुक्ति आलोचना में है. चर्च में सक्रिय सदस्यों की शिकायत है कि विदेशी पादरियों की नियुक्ति से सुधारों का दबाव कम हुआ है. जब तक बाहर से पादरी आते रहेंगे, महिलाओं को यह पद देने या विवाहित पादरियों को स्वीकार करने के बारे में नहीं सोचा जाएगा.

फादर कारीकासेरी के लिए यह बात अस्वाभाविक थी कि वे अपने समुदाय के सदस्य से बिना समय लिए नहीं मिल सकते थे. "मेरे देश में किसी परिवार से मिलने के लिए समय लेने की जरूरत नहीं है, मैं सीधे जा सकता हूं, घंटी बजा सकता हूं और हलो बोल सकता हूं." यहां राइनलैंड में सदस्यों से मिलने के लिए उन्हें एक हफ्ते पहले बताना पड़ता है.

मिशन का देश जर्मनी

चर्च के साथ बनती दूरी और जर्मन समाज में बढ़ रहे व्यक्तिवाद को स्वाकार करने में सांचेज-रोजारियो और कारीकासेरी जैरे पादरियों को समय लगता है. वह समय जब यूरोप से कैथोलिक धर्म का प्रचार हुआ, अब गुजर चुका है. सांचेज-रोजारियो कहते हैं, "यूरोप इस बीच धर्म प्रचार करने का देश बन गया है. मैं इसे अच्छा नहीं समझता, यह बुरी स्थिति है." कार्मेलाइट ऑर्डर के कारीकासेरी उनसे सहमत हैं, लेकिन कहते हैं, "धर्म प्रचार की शर्तें भारत के मुकाबले जर्मनी में मुश्किल हैं. लोगों को भगवान का पता है, उनमें आस्था की कमी नहीं है, बल्कि इस बात की कि आस्था को किस तरह जिएं."

एक धार्मिक समुदाय का सक्रिय जीवन अब जर्मनी में नहीं जिया जाता. लेकिन फादर कारीकासेरी अगले साल यह सक्रिय धार्मिक जीवन जी पाएंगे. वे कोई आधा दर्जन भारतीय पादरियों के एक दल का हिस्सा हैं, दो ज़ीगबुर्ग शहर के मिशाएल्सबर्ग के ऐबी में रहने जा रहे हैं. वहां वे प्रार्थना सभाओं के साथ चर्च के सदस्यों के साथ आध्यात्मिक चर्चा करेंगे. 2011 में बेनेडिक्ट ऑर्डर ने सैकड़ों साल के इस्तेमाल के बाद यह ऐबी वापस कर दिया था.

रिपोर्टः आंद्रेयास गोर्जेव्स्की/एमजे

संपादनः आभा मोंढे

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