1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

घायल साथियों के लिए नर्स बनती हैं चीटियां

१६ फ़रवरी २०१८

अफ्रीकी चींटियां हमले में घायल अपने साथियों को उठा कर सुरक्षित ठिकानों तक लाती हैं, उनके जख्मों की सफाई करती हैं और उनकी देखभाल कर फिर से सेहतमंद बनाती हैं. वैज्ञानिकों की एक रिसर्च में यह जानकारी सामने आई है.

https://p.dw.com/p/2snly
Ameise trägt verletzte Ameise fort
तस्वीर: Erik Frank

वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान के अलावा और किसी जीव में इस तरह के व्यवहार का यह पहला उदाहरण है. रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों ने देखा कि चींटियां लड़ाई के मैदान में घायल अपने साथियों को उठाकर घर में वापस लाती हैं. बांबियों में साथ रहने वाली चीटियां अपने साथियों के लिए नर्स बन जाती हैं. विज्ञान पत्रिका प्रोसिडिंग्स ऑफ रॉयल सोसायटी बी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मरीजों के खुले जख्मों को गहराई से चाट कर साफ किया जाता है. चींटियों का यह व्यवहार घायल होने वाले सैनिको में मौत की तादाद को 80 फीसदी से घटा कर महज 10 फीसदी तक सीमित कर देता है.

रिसर्च के सह लेखक एरिक फ्रांक ने बताया, "यह जानवरों की स्वचिकित्सा के जरिये नहीं होता है जिसके बारे में सब जानते हैं बल्कि बांबी में साथ रहने वाले साथियों के जरिए होता है. गहराई तक जख्मों को चाटने से संक्रमण को रोकने में मदद मिलती है."

फ्रांक पहले भी इसी तरह की एक रिसर्च में शामिल थे जिसके नतीजे बीते साल आए और जिसमें युद्ध के मैदान के मैदान में चींटियों के बचाव अभियान की पड़ताल की गई थी. नई रिसर्च में इस पर ध्यान दिया गया कि बचा कर लाने के बाद घायलों के साथ क्या किया जाता है.

अफ्रीका की माटाबेला दुनिया में चींटियों की सबसे बड़ी प्रजाति है और यह बहुत खूंखार मानी जाती हैं. यह इंसानों को भी अपने दंश का शिकार बनाती हैं. दक्षिण अफ्रीका के माटाबेले जनजाति पर रखे अपने नाम को इन्होंने अपने से बड़े आकार के कीट पतंगों पर हमला करके सच साबित किया है. अकसर यह अपने शिकार पर 200-600 की तादाद में हमला बोलती हैं. शिकार के इस तरीके में कई चीटियां घायल हो जाती हैं और उनके पांवों को कीट पतंगे नुकसान पहुंचाते हैं.

Ameise wird von anderer Ameise weggetragen
घायल चींटी को उठाकर ले जाती चींटीतस्वीर: Frank et al. Sci. Adv. 2017

शिकार की जंग के बाद कुछ चीटियां मरे हुए शिकार के साथ अपने घर लौटती जबकि दूसरी चीटियां इस दौरान घायल हुए साथियों की तलाश करती हैं. फ्रांक ने बताया, "लड़ाई के बाद घायल चीटियां मदद के लिए फेरोमोंस के जरिए पुकार लगाते हैं." यह एक रासायनिक संकेत है जो एक उनमें मौजूद विशेष ग्रंथि से निकलता है.

बचावकर्मी अपने मजबूत जबड़ों का इस्तेमाल कर घायलों को उठा लेते हैं और फिर बांबी में इलाज के लिए ले जाते हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि गंभीर रूप से घायल सैनिक जैसे जिसकी छह में से पांच टांगे कट गई हो वो बचावकर्मियों को संकेत देते हैं कि उन्हें उठाने की फिक्र ना करें. जबकि कम घायल साथी चुपचाप पड़े रहते हैं और अपने रक्षक के लिए काम आसान बनाते हैं. दूसरी तरफ गंभीर रूप से जख्मी बचावकर्मी को खुद से तब तक दूर भगाते हैं जब तक कि वह उन्हें मरने के लिए छोड़ कर आगे नहीं बढ़ जाता.

इस खोज ने वैज्ञानिकों के लिए कई सवाल पैदा कर दिए हैं. चींटियां कैसे पहचान करती हैं कि उनका साथी वास्तव में कहां घायल हुआ है? उन्हें यह पता कैसे चलता है कि जख्मों की मरहमपट्टी अब नहीं करनी है? इलाज केवल संक्रमण को रोकने के लिए है या फिर बीमारी को ठीक करने के लिए? आने वाले समय में शायद इनके जवाब भी मिल जाएं.

एनआर/एके (एएफपी)