1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

घटने लगी पीएम इमरान खान की लोकप्रियता?

शामिल शम्स
१७ अक्टूबर २०१८

सत्ता में आने के महज दो महीने बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की लोकप्रियता का बुलबुला फूटता नजर आ रहा है. इसका सबूत हैं हालिया उप चुनावों के नतीजे जिनमें उनकी पार्टी को कई सीटें गंवानी पड़ी.

https://p.dw.com/p/36fWE
Pakistan Wahlkampf Unfall von Imran Khan
तस्वीर: ASIF HASSAN/AFP/Getty Images

14 अक्टूबर को हुए उपचुनावों में इमरान खान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद कर रही थी. लेकिन उम्मीद पूरी नहीं हो सकी. उपचुनावों में सबसे ज्यादा फायदा पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) को हुआ.

इस उपचुनाव में राष्ट्रीय संसद की 11 सीटों के अलावा प्रांतीय असेंबलियों की 24 सीटों के लिए वोट पड़े. 25 जुलाई को हुए आम चुनावों में जीत दर्ज करने वाले इमरान खान के लिए उपचुनावों को एक शुरुआती इम्तिहान माना जा रहा था.

जिन सीटों पर चुनाव हुआ, उनमें से ज्यादातर ऐसी थी जिन्हें आम चुनावों में एक से ज्यादा सीटें जीतने वाले उम्मीदवारों ने खाली किया. खुद इमरान खान ने पांच सीटों से चुनाव लड़ा था और सभी सीटें उन्होंने जीतीं. इस तरह उन्हें चार सीटें खाली करनी पड़ीं.

शुरुआती परिणामों के मुताबिक राष्ट्रीय संसद की 11 सीटों में से पीटीआई और पीएमएल (एन) को चार चार सीटें मिली हैं. प्रांतीय सीटों के उपचुनाव में नौ सीटों के साथ पीटीआई सबसे ऊपर है जबकि पीएमएल (एन) को छह सीटें मिली हैं.

अहम बात यह है कि पीएमएल (एन) को कुछ ऐसी सीटों पर जीत मिली है जिन्हें आम चुनावों में पीटीआई ने जीता था. इनमें इमरान खान की छोड़ी एक सीट भी शामिल है. पीएमएल (एन) ना सिर्फ अपनी सीटों को बरकरार रखने में कामयाब रही, बल्कि उसने पीटीआई से दो सीटें भी झलट ली हैं.

पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद चौधरी का कहना है कि इमरान खान ने उपचुनाव में प्रचार नहीं किया, इसलिए पार्टी को यह नुकसान उठाना पड़ा है. वह कहते हैं, "अगर इमरान खान प्रचार करते तो पार्टी को 11 में से कम से कम नौ सीटें मिलतीं."

इमरान के विदेश दौरे में होगी अड़चन?

वहीं जानकार इन नतीजों को इमरान खान की घटती लोकप्रियता का संकेत मानते हैं. आम चुनावों में इमरान ने देश में तब्दीली लाने और अर्थव्यवस्था को ठीक करने का वादा किया था. लेकिन सत्ता संभालने के बाद वह अभी तक इन वादों पर खरे उतरते नहीं दिख रहे हैं.

इमरान खान की सरकार ने सत्ता संभालते ही तेल और गैस के दाम बढ़ा दिए हैं. देश को चलाने के लिए आखिरकार नई सरकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा है जबकि चुनाव प्रचार के दौरान इमरान खान जोर शोर से कहते थे कि वह आईएमएफ से 'भीख' नहीं मांगेंगे.

जानकार मानते हैं कि इमरान खान ने चुनाव प्रचार में ऐसे वादे कर दिए जिन्हें शायद वह पूरा ही नहीं कर सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद जियाउद्दीन कहते हैं, "पाकिस्तान एक सुरक्षा राज्य है जिसकी संसद कभी रक्षा बजट पर बात नहीं करती. सेना पर खर्च होने वाली रकम का कभी संसद ऑडिट नहीं करती."

जियाउद्दीन कहते हैं, "सैन्य जनरल देश में सैकड़ों कपनियां चला रहे हैं जबकि टैक्स बहुत ही कम देते हैं. फिर इमरान खान इन जनरलों की ऐशो आराम वाली जिंदगी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा रहे हैं. अगर इमरान खान वाकई देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करना चाहते हैं तो उन्हें सेना पर होने वाले बड़े खर्च को घटाना होगा."

जीत के बाद क्या बोले इमरान?

अनुमान है कि पाकिस्तान का मौजूदा वित्तीय कर्ज इस वक्त 95.097 अरब डॉलर है. यही नहीं, पाकिस्तान को अपने कर्ज चुकाने के लिए हर साल 24 अरब डॉलर की जरूरत है. देश का व्यापार घाटा तेजी से बढ़ रहा है जो वित्तीय वर्ष 2018 में 37.7 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है.

इस दौरान पाकिस्तान ने आयात पर 60.9 अरब डॉलर की बड़ी रकम खर्च की. इसमें से बड़ा हिस्सा चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर परियोजना के लिए मंगाई गई मशीनों पर खर्च किया गया. मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में असिस्टेंट प्रोफेसर मदीहा अफजल का कहना है, "सरकार के कुछ बयान और काम बहुत ही सतही हैं, जिससे उनकी सोच में आत्मविश्वास नजर नहीं आता."

वहीं, सीनेटर फैसल जावेद खान कहते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती सरकार में लोगों का भरोसा बहाल करना है. वह कहते हैं, "पाकिस्तानी लोग बहुत ही दयालु हैं. उन्होंने कैंसर अस्पताल बनाने के लिए इमरान खान को बहुत चंदा दिया था. इसकी वजह यह है कि उन्हें इमरान पर भरोसा है. चूंकि उन्हें इमरान पर भरोसा है, इसलिए मुझे उम्मीद है कि वे टैक्स भी चुकाएंगे."

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी