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गेहूं का नया जीन पता लगाने की कोशिश

५ सितम्बर २०१०

ब्रिटेन के बायोटेक्नोलॉजी एंड बायोलॉजिकल साइंसेज रिसर्च काउंसिल के प्रधान डोग केल का कहना है कि हाल में गेहूं के बाजार में कीमतों में आई उछाल से स्पष्ट हो गया है कि हमारी खाद्य प्रणाली कितनी भंगुर है.

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गेहूं पर रिसर्चतस्वीर: AP

ये तो सभी को पता है कि आटे दाल का भाव बढ़ता जा रहा है, खासकर आटे का. ब्रिटेन की संस्था की ओर से गेहूं के जीन्स का पता लगाने के लिए एक शोध कार्यक्रम की मदद की गई. इस शोध से जुड़े वैज्ञानिकों ने गेहूं के पहले जीनोम का विवरण पेश किया. इसमें गेहूं के जेनेटिक कोड के तथाकथित अक्षर पेश किए गए. इस परियोजना से जुड़े जॉन इनेस सेंटर के प्रोफेसर माइक बेवन ने कहा कि अभी यह कच्चे रूप में हैं और परीक्षण जारी रहेंगे. लेकिन उनका कहना है कि परीक्षणों के पांच दौर के बाद जीनोम का बिल्कुल सही विवरण प्रस्तुत किया जा सकेगा.

जीनोम का पता लगाने के लिए चाइनीज स्प्रिंग्स नाम के गेहूं की नस्ल को चुना गया. आम तौर पर खेती के लिए इस नस्ल का उपयोग नहीं किया जाता, लेकिन गेहूं की समूची नस्ल के लिए इसे आदर्श माना गया. प्रोफेसर के अनुसार यह गेहूं के जगत का गिनीपिग जैसा है.

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तस्वीर: AP

ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के कीथ एडवर्ड्स ने इस सिलसिले में सूचित किया कि गेहूं का जीनोम मनुष्य के जीनोम से पांच गुना बड़ा है. इसलिए यह वैज्ञानिकों के लिए चुनौती है.

जीनोम की जानकारी मिलने के बाद पता लगाया जा सकेगा कि सूखा, बाढ़, कीड़ों या जमीन की किस्म का गेहूं की पैदावार पर क्या असर पड़ सकता है.

सिर्फ गेहूं ही नहीं, सेब के जीनों के बारे में भी वैज्ञानिकों को उल्लेखनीय जानकारी मिली है. इनके जरिए पता चला कि सेब की आज की नस्लें लगभग पांच से साढ़े छह करोड़ साल पुरानी हैं. इस परियोजना में पांच देशों की 13 संस्थाएं जुड़ी हुई थीं. उन्हें उम्मीद है कि इस जानकारी के आधार पर सेब की नई स्वादिष्ट नस्लें तैयार की जा सकती हैं.

रिपोर्टः उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादनः ए जमाल