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गूगल पर बच्चे सर्च कर रहे हैं "मरने के तरीके"

२७ अगस्त २०१८

शरणार्थी समस्या का समाधान दुनिया के कई देश खोज रहे हैं. इस समस्या का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है. ऑस्ट्रेलिया में नाउरू द्वीप में रहने वाले ऐसे ही बच्चे अब गूगल सर्च पर मरने के तरीके ढूंढ रहे हैं.

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Australien schließt umstrittene Asyl-Heime auf Pazifik-Inseln
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Rural Australians For Refugees

जून 2018 में ऑस्ट्रेलिया के नाउरू अप्रवासन केंद्र में रह रहे 14 वर्षीय रिफ्यूजी बच्चे ने खुद पर पेट्रोल छिड़क कर जान देने की कोशिश की. एक अन्य मामले में एक 10 साल के रिफ्यूजी बच्चे ने खुद को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी नुकीली धातु को निगल लिया. इस तरह की बातें सुनकर शायद एक पल आपको भरोसा न हो, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई व्हिसल ब्लोअर से मिली जानकारी पर भरोसा किया जाए तो यही सच्चाई है.

बतौर स्वास्थकर्मी काम कर चुके वेरनॉन रिनॉल्ड्स ने ऑस्ट्रेलियाई प्रसारणकर्ता एबीसी को दी जानकारी में बताया कि नाउरू आप्रवासन केंद्र में रहने वाले बच्चे खुद को मारने और नुकसान पहुंचाने के तरीके गूगल पर सर्च कर रहे हैं. एबीसी के हाथ लगे डॉक्यूमेंट्स ऐसी ही कई घटनाओं का चिट्ठा पेश करते हैं.   

रिनॉल्ड्स अगस्त 2016 से लेकर अप्रैल 2018 तक इस द्वीप पर बतौर बाल मनोचिकित्सक काम कर चुके हैं. वह इंटरनेशनल हेल्थ एंड मेडिकल सर्विसेज (आईएचएमएस) से जुड़े थे. यह एजेंसी ऑस्ट्रेलिया सरकार के लिए एक करार के तहत काम करती है. रिनॉल्ड्स ने एबीसी से कहा कि वह बच्चों के लिए "चिंतित" हैं, उन्हें डर है कि बच्चे मर भी सकते हैं. रिनॉल्ड्स की मानें तो बच्चों में गंभीर आघात के संकेत मिलते हैं. हाल के हफ्तों में नाउरू में ये चिंताएं और बढ़ी हैं यहां बच्चों में सब कुछ छोड़ने की प्रवृत्ति घर कर रही है. यह सिंड्रोम बच्चों को बेहोशी की हालत तक ले जा सकता है.

Papua-Neuginea Manus Insel Polizei dringt in australisches Flüchtlingslager ein
तस्वीर: Reuters/D. Gray

इस आप्रवासन केंद्र में तकरीबन 900 रिफ्यूजी और शरणार्थी रहते हैं. इसमें से 120 बच्चे भी हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक तकरीबन 40 बच्चों ने नाउरू के इस केंद्र में अपनी जिंदगी गुजार दी, वहीं अन्य 60 ने अपनी आधी जिंदगी यहां काटी है. इस मसले पर ऑस्ट्रेलियाई सरकार के आप्रवासन और सीमा सुरक्षा के लिए जिम्मेदार, डिपार्टमेंट ऑफ होम अफेयर्स की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

आईएचएमएस की ओर से नियुक्त एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता फियोना ओवेन्स भी कुछ ऐसी ही चिंताएं प्रकट करती हैं. फियोना मई से जुलाई 2018 के दौरान यहां चाइल्ड मेंटल हेल्थ टीम का नेतृत्व कर रहीं थीं. उन्होंने भी रिफ्यूजी बच्चों में खुद को नुकसान पहुंचाने की उभरती प्रवृत्तियों को देखा. उन्होंने एबीसी को बताया, "जिस एक चीज के बारे में वहां अधिकतर बच्चे सोचते हैं, वह है कि कैसे मरा जाए."

समुद्री रास्ते से ऑस्ट्रेलिया आने वाले शरणार्थियों के खिलाफ बेहद ही कड़ी नीति का पालन करता है. वह जुलाई 2013 से ऑफशोर इमीग्रेशन की नीति को अपनाते हुए इन शरणार्थियों को पापुआ न्यू गिनी के मानुस द्वीप और दक्षिणी प्रशांत के नाउरू द्वीप में बसा रहा है. साल 2016 में ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत नाउरू और मानुस द्वीप के 1250 रिफ्यूजियों को बसाया जाएगा. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ओर से सात मुस्लिम देशों पर लगाए गए यात्रा प्रतिबंध ने इन रिफ्यूजियों के लिए स्थिति खराब कर दी. इसके चलते ईरान, सूडान जैसे देशों से आने वाले कई परिवारों को यहां स्वीकार ही नहीं किया गया है.

एए/आईबी (डीपीए)