गांव हुए रोशन लेकिन घरों में नहीं पहुंची बिजली
४ जुलाई २०१८28 अप्रैल को लाइसांग भारत के लगभग छह लाख गांवों में ऐसा आखिरी गांव बन गया जहां केरोसिन से जलने वाली लालटेनों की जगह बिजली के बल्ब ने ली. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा, "भारत के हर एक गांव में अब बिजली पहुंच गई है." सरकार ने पूरे देश में विद्युतीकरण कार्यक्रम के लिए 11 अरब डॉलर का आवंटित किए थे.
बिजली पहुंचाने के चुनावी दावे की सफलता को लेकर जहां सरकार उत्साहित है, वहीं बहुत से लोग आज भी दिये की लौ पर उम्मीदें रोशन कर रहे हैं. अब भी भारत में करोड़ों लोग अंधेरे में जीवन गुजार रहे हैं.
गांव बनाम घरों का विद्युतीकरण
विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि सरकार जिस तरह गांवों में बिजली पहुंचाने का दावा कर रही है, उसका यह मतलब कतई नहीं है कि हर घर में बिजली पहुंच रही है. अगर किसी गांव के 10 फीसदी घरों या फिर स्कूल और अस्पताल आदि में बिजली पहुंच गई है तो उसे भी विद्युतीकृत गांव की श्रेणी में रखा गया है. इसका मतलब साफ है कि ग्रामीण विद्युतीकरण गांव के हर घर में बिजली आपूर्ति को सुनिश्चित नहीं करता. मोटा-मोटी किसी गांव में खंभे गाड़कर और तार जोड़कर बहुत आसानी से उसे विद्युतीकृत गांव की श्रेणी में लाया जा सकता है.
एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के फेलो शाश्वत चौधरी कहते हैं, "गांव-गांव तक बिजली पहुंचाना एक बड़ी सफलता है लेकिन अब भी ग्रामीण विद्युतीकरण के क्षेत्र में काफी काम किए जाने की जरूरत है." लेकिन शाश्वत मानते हैं कि ग्रामीण विद्युतीकरण की साफ-सुथरी एक परिभाषा होनी चाहिए, साथ ही घरों के विद्युतीकरण को भी बेहतर ढंग से आंका जाना चाहिए.
वह कहते हैं कि दुनिया भर की स्टडीज बताती हैं कि ग्रामीण विद्युतीकरण का असर सीधे तौर पर ना सिर्फ शिक्षा और स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र पर पड़ता है बल्कि इसका एक बड़ा प्रभाव जलवायु परिवर्तन से जुड़ी प्रतिबद्धताओं पर भी पड़ता है, क्योंकि लोग ऊर्जा के बेहतर साधनों और उनके इस्तेमाल पर जोर देते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ साल अहम थे क्योंकि दूर-दराज के कई गांवों तक बिजली पहुंचाना मुश्किल काम रहा है.
आसान नहीं सफर
जब नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री पद संभाला तो उस वक्त देश में करीब 30 करोड़ लोग बिना बिजली के रह रहे थे. नवंबर 2015 में उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा करते हुए कहा था कि 1000 दिनों के अंदर देश के करीब 18 हजार गांवों मतलब भारत के 3 फीसदी गांवों में बिजली पहुंच जाएंगी.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय को अपनी आलोचनाओं के बाद यह साफ करना पड़ा कि ग्रामीण विद्युतीकरण का मतलब "घरेलू विद्युतीकरण को केवल 10 प्रतिशत तक सीमित करना नहीं है." मंत्रालय के मुताबिक, "राज्यों से आ रही रिपोर्टें बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू विद्युतीकरण स्तर 82 प्रतिशत से अधिक है. विभिन्न राज्यों में 47 से 100 प्रतिशत तक घरेलू विद्युतीकरण है." सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तीन करोड़ लोगों तक अब भी बिजली नहीं पहुंची है और सरकार की योजना 2018 के अंत तक उनके घरों में बिजली पहुंचाने की है.हर गांव में बिजली लेकिन चिराग तले अंधेरा
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह एक कठिन काम होगा, क्योंकि इसके लिए प्रशासन को तेजी से काम करना होगा. साथ ही हर महीने तीन लाख से लेकर 30 लाख घरों को बिजली से जोड़ना होगा.
कहां तक असली पहुंच?
भारत में बिजली की आपूर्ति का जिम्मा राज्य सरकारों के पास है, जो अपने राजनीतिक फायदों के लिए कई बार ऐसी सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं. थिंक टैंक, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वॉटर के प्रमुख कार्यकारी अरुनाभ घोष कहते हैं, "यह एक अहम सफलता है और हमें इसे देश की बड़ी सफलता के तौर पर जरूर मनाना चाहिए. लेकिन यही काफी नहीं है, क्योंकि ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा घरों तक बिजली की पहुंच को सुनिश्चित नहीं करती."
घोष कहते हैं, "हालिया सफलता बताती है कि विद्युतीकरण का पहला चरण पूरा हो गया है. लेकिन दूसरे चरण में हमें भारत के हर घर तक बिजली की पहुंच को सुनिश्चित करना होगा. इसके बाद तीसरे चरण में इसकी गुणवत्ता, किफायत और इसे टिकाऊ बनाने पर जोर देना होगा. इन सारे चरणों के बाद ही हम कह सकेंगे कि अब बिजली सब लोगों तक पहुंच गई हैं."