गांधी जी धरोहर देश में रखने की कोशिश
२८ फ़रवरी २००९भारत सरकार ने फ़ैसला लिया है कि मार्च की चार और पांच तारीख को न्यूयॉर्क में महात्मा गाँधी के पांच स्मृति-चिह्नों की नीलामी को रोकने के लिए सभी विकल्प अपनाए जाएँ.
गांधी जी की भतीजी ने जर्मन संग्रहकर्ता को अधिकृत किया था कि वे गांधी जी कुछ वस्तुएं नीलामी के लिये दें. भारत की संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी ने कहा है कि ये वस्तुएं नीलामी में न जाएं इसकी हर संभव कोशिश की जा रही है.
अमेरिका में अपने दूतावास के ज़रिये भारत नीलामी करने वाली कंपनी से सीधे संपर्क करेगा और उसे इसके लिए मनाने की कोशिश करेगा.
वह इन स्मृति-चिह्नों के मालिकों से भी अनुरोध करेगा कि वे इन्हें भारत सरकार को सौंप दें. यदि ये कोशिशें सफल न हुईं, तो वह किसी अनिवासी भारतीय या अनिवासी भारतीयों की किसी एसोसिएशन के ज़रिये इन्हें खरीदवाने का प्रयास करेगा.
सरकार पर गांधीवादियों की तरफ से भारी दबाव डाला जा रहा था कि राष्ट्रपिता के स्मृति-चिह्नों की नीलामी नहीं होनी चाहिए और उन्हें भारत लाने की कोशिश की जानी चाहिए. महात्मा गाँधी के प्रपौत्र तुषार गाँधी ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया है और कहा है कि गांधीजी की सभी चीज़ें देशवासियों की हैं और देश में ही रहनी चाहियें.
लेकिन सभी इस राय के नहीं हैं. प्रसिद्द गांधीवादी-समाजवादी नेता विजयप्रताप का इस बारे में कहना है कि "यह काम देश के नागरिक समाज का है कि वह अपनी प्रिय चीज़ों का संरक्षण करे. हर काम को सरकार पर छोड़ना राज्यवादी सोच है" और इसलिए वह सरकार के इस निर्णय के प्रति बहुत उत्साहित नहीं हैं. भारतीय मीडिया में इस नीलामी को लेकर लंबे समय से चर्चा हो रही है