गरीब को और गरीब बनाता है जलवायु परिवर्तन
रिसर्चरों का दावा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था, ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते अपनी क्षमता से 31 फीसदी छोटी रह गई. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने साइंस पत्रिका पीएनएएस में छपी एक स्टडी में ऐसी और बातें बताई हैं.
गरीब-अमीर की खाई
स्टडी में कहा गया है कि साल 1961 से 2010 के दौरान मानवीय गतिविधियों से पैदा हुई ग्लोबल वॉर्मिंग ने गरीब और अमीर के बीच की खाई को 25 फीसदी तक बढ़ाया है. नतीजतन अमीर देश और भी अमीर होते गए और गरीब देश पहले से भी गरीब.
नफा-नुकसान
स्टडी बताती है कि साल 1961 से 2010 के बीच तापमान में हुई बढ़ोतरी ने भारत, नाइजीरिया जैसे उष्ण कटिबंधीय देशों में आर्थिक वृद्धि दर को काफी धीमा किया है. वहीं इसका लाभ कनाडा, ब्रिटेन जैसे ठंडे देशों को मिला है.
165 देशों पर रिसर्च
इस स्टडी में रिसर्चरों ने 165 देशों में पिछले 50 सालों के तापमान के बदलावों का विश्लेषण किया. साथ ही आर्थिक वृद्धि दर के की डाटा भी पड़ताल की गई ताकि जलवायु परिवर्तन का आर्थिक असर समझा जा सके. रिसर्चरों ने पाया कि साल 1961 से 2010 के बीच अमेरिका की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर इसके कारण महज 0.2 फीसदी ही कम रह गई.
सबसे ज्यादा नुकसान
जिस देश पर सबसे ज्यादा असर हुआ है वह है सूडान. रिसर्चरों का अनुमान है कि देश की जीडीपी अपनी क्षमता से 36 फीसदी तक कम रह गई. भारत में यह असर 31 फीसदी तक है. वहीं नाइजीरिया में इसका असर 29 फीसदी तक हुआ है.
इन्हें हुआ लाभ
वहीं जिन देशों को फायदा हुआ है उनमें दुनिया के सबसे खुशहाल देशों में शुमार नार्वे का नंबर आता है. रिसर्चर बताते हैं कि नार्वे की जीडीपी को जलवायु परिवर्तन से 34 फीसदी लाभ हुआ है. उसके बाद 32 फीसदी के साथ कनाडा का नंबर आता है. यह भी देखा गया कि पिछले कुछ सालों में रूसी अर्थव्यवस्था को भी ग्लोबल वॉर्मिंग से लाभ हुआ है.