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गणतंत्र के निर्माता- गांधी से राजेंद्र प्रसाद तक

रिपोर्टः महेश झा २५ जनवरी २०१०

भारत के गणतंत्र को बनाने वाले मशहूर नामों में सिर्फ़ आज़ादी के लिए लड़ने वाले नेताओं के ही नाम नहीं बल्कि प्रांतीय और स्थानीय स्तर के कार्यकर्ता भी शामिल हैं.

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तस्वीर: AP

बचपन में पूर्णियां में एक बूढ़े आदमी को शहर में घूम घूमकर चिल्ला चिल्लाकर स्थानीय अखबार चिराग बेचते हुए देखता था. ज़िले के छोटे से कसबे कसबा से महावीर लाठ द्वारा प्रकाशित यह अखबार उस जागरूकता का प्रतीक था जिसे महात्मा गांधी ने आज़ादी के अपने आंदोलन के ज़रिए भारत के दूर दराज़ के इलाक़े तक पहुंचाया था. और अखबार बेचने वाला वह बूढ़ा कभी स्वयं ज़िले का नामी स्वतंत्रता सेनानी हुआ करता था.

गांधीजी के राजनीतिक दर्शन के तीन अहम पहलू थे – राष्ट्रवादी संघर्ष के लिए विभिन्न समुदायों के लोगों को लामबंद करना, आंदोलन के ज़रिए उनमें राष्ट्रवाद का बीज़ बोना और अहिंसक आंदोलन के ज़रिए समाज में समतामूलक विकास लाना. गांधीजी लोगों को सत्य और अहिंसा के रास्ते का कायल न भी बना पाए हों लेकिन राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सत्याग्रह का उनका हथियार गांव गांव तक पहुंचा और उसने आनेवाले दशकों में भी भारत में लोकतंत्र के विकास को प्रभावित किया.

महात्मा गांधी स्वयं संविधान सभा के सदस्य नहीं थे लेकिन उनका राजनीतिक संदेश संविधान बनाने के दौरान लगातार सदस्यों के दिलो दिमाग पर हावी रहा. 299 सदस्यों वाले संविधान सभा ने स्वतंत्र भारत का संविधान बनाने में तीन साल लिए और इसके दौरान 165 दिनों के ग्यारह अधिवेशन हुए जिनमें से 114 दिन संविधान के प्रारूप पर बहस में लगाए गए.

संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद थे जो बाद में भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गए. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा की 17 समितियों में से चार के अध्यक्ष थे लेकिन संविधान का प्रारूप बनाने की समति के प्रमुख भीम राव अंबेडकर थे. आज़ादी के 14 दिन बाद 29 अगस्त 1947 को संविधान का मसौदा बनाने के लिए अंबेडकर ने नेतृत्व में सात सदस्यों वाली समिति बनाई गई. समिति ने 4 नवम्बर को मसौदा पेश कर दिया. संविधान के मसौदे पर संविधान सभा में हुई बहस में 7,635 संशोधन पेश किए गए जिनमें से 2473 पर बहस हुई और उनका निबटारा किया गया. 26 नवम्बर 1949 को भारत के नए संविधान का अनुमोदन हुआ और 24 जनवरी 1950 को उस पर संविधान सभा के 284 सदस्यों ने दस्तख़त किए.

Präsident Rajendra Prasad
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संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों में राजेंद्र प्रसाद और जवाहर लाल नेहरू के अलावा जो आज़ादी के पहले ही देश के प्रधानमंत्री बन चुके थे, सी. राजगोपालाचारी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, शरत चंद्र बोस, कामराज और श्री कृष्ण सिंह जैसे नेता थे तो अलादी कृष्णस्वामी आयंगर, बी.आर अंबेदकर, के. एम मुंशी और गणेश मावलंकर जैसे कानूनविद. प्रमुख महिला सदस्यों में सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी, राजकुमारी अमृत कौर, हंसा मेहता और दुर्गाबाई देशमुख शामिल थीं.

अन्य लोकतंत्रों की तरह भारतीय लोकतंत्र भी पिछले छह दशकों में आज़ादी की चाहत और उसकी राह में आनेवाली बाधाओं से जूझता रहा है. देश में लोकतंत्र की सफलता का श्रेय एक ओर ब्रिटिश राज से मिले संस्थानों को जाता है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान विकसित नागरिक समाज ने उसे विफल नहीं होने देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.