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गड्ढों को नापने की मशीन

२२ जुलाई २०१४

एक जर्मन कंपनी सड़कों की मैपिंग कर रही है और हर गड्ढे को नैविगेशन और पोज़ीशनिंग मशीन से नाप रही है. इसके बाद सड़कों की कायाकल्प की प्रक्रिया शुरू होगी.

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Symbolbild Blaumann
तस्वीर: imago/McPHOTO

भारत की सड़कों की हालत किसी से छिपी नहीं. सड़कों पर इतने गड्ढे हैं कि गाड़ी चलाना भी दूभर है. उन्हें भरने और स्थिति ठीक करने के लिए इस जर्मन कंपनी ने कमर कसी है.

जर्मन कंपनी भारत के प्रमुख सड़कों का थ्रीडी मॉडल तैयार कर रहा है. उसके बाद दूसरी प्रमुख सड़कों के साथ भी ऐसा किया जाएगा. जर्मन कंपनी लेहमान+पार्टनर इस काम को अंजाम देने की कोशिश कर रही है. इसके लिए उसके पास खास उपकरणों से लैस गाड़ी है, जो सड़कों के लगातार फोटो खींचता है. कंपनी के प्रमुख इंजीनियर डीटर क्लासेन बताते हैं, "इस गाड़ी के साथ हम सड़क की मौजूदा हालत और क्षमता नाप सकते हैं. इन आंकड़ों की मदद से और सड़क में निवेश को देखते हुए हम सड़क के टिकाऊपन और उसका मूल्य पता कर सकते हैं."

भारत दुनिया में सबसे ज्यादा सड़क नेटवर्क वाले देशों में शामिल है. लेकिन इसकी सिर्फ आधी सड़कें ही पक्की हैं. इनमें भी कई ऊबड़ खाबड़ और मरम्मत का इंतजार कर रही हैं. जर्मन तकनीक अति आधुनिक तरीके से सड़क की पड़ताल करता है. नेवीगेशन और पोजीशनिंग सिस्टम से एक एक सेंटीमीटर का हिसाब करता है और आंकड़ों को जमा करता है.

इसके लिए हाइ रिजॉल्यूशन वाले औद्योगिक कैमरों से तस्वीर ली जाती है, जिनमें बहुत रोशनी की जरूरत पड़ती है. ऐसा कैमरा, जिसमें स्ट्रोबोस्कोप सेकंड के 20हजारवें सेकंड में फ्लैश हो सकता है. इंजीनियर क्लासेन कहते हैं, "तारकोल बहुत काला होता है और यह बहुत कम रोशनी परावर्तित करता है. हमें एक सौ किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलते हुए एक एक मिलिमीटर की पड़ताल करनी है. इसके लिए आपको बहुत रोशनी और बहुत तेज काम करने वाला कैमरा शटर चाहिए. इस स्ट्रोबोस्कोप लाइट से जो फ्लैश होता है, वह सूरज से भी तेज चमकता है. इसलिए हम धूप में भी काम कर सकते हैं."

सारे आंकड़ों को जर्मनी में कंपनी के हेडक्वार्टर में जमा किया जाता है और उनकी स्थिति के आधार पर सड़कों को पांच अलग अलग श्रेणियों में बांटा जाता है. पांचवीं श्रेणी वाली सड़क सबसे खस्ता हाल होती है. फिर शहर के अधिकारियों से मिल कर उसे सुधारने की प्रक्रिया शुरू होती है.

हालांकि अभी तो सिर्फ शुरुआत है. भारत की करीब 50 लाख किलोमीटर लंबी सड़कों के लिए सफर बहुत लंबा होगा.

एजेए/ओएसजे