1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

खूब भाया करामाती लैपटॉप

१६ अगस्त २०१०

हमारे श्रोताओं को खोज कार्यक्रम में करामाती लैपटॉप के बारे में दी गई जानकारी बेहद पसंद आई. साथ ही हैलो जिंदगी कार्यक्रम और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित कई खबरों पर भी उनकी टिप्पणियां आई हैं.

https://p.dw.com/p/OorA
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

हैलो जिंदगी, आपका यह हल्का फुल्का कार्यक्रम है, जो धीर गंभीर विषयों के बाद की थकान मिटा देता है. इसमें दुनिया के अजीबो गरीब रीति रिवाजों की भी चर्चा समय समय पर कीजिए तो आनंद दुगुना हो जाएगा.

प्रमोद महेश्वरी, शेखावाटी रेडियो और इन्टरनेट यूज़र्स क्लब, फतेहपुर-शेखावाटी (राजस्थान)

***

खोज में करामती लैपटॉप के बारे में यह पढ़कर बहुत अच्छा लगा कि प्राकृतिक आपदाओं में मूल्यवान रूप से काम आने वाले उपकरण को बनाया गया. इसकी विशेषताएं निश्चय ही बहुत बहुत उपयोगी हैं. आपने यह नहीं बताया कि यह लैपटॉप मार्केट में आ चुका है या नहीं, यदि नहीं, तो कब तक यह मार्केट में उपलब्ध होगा. बेशकीमती जानकारी के लिए शुक्रिया.

विभा मालू, शेखावाटी रेडियो और इन्टरनेट यूज़र्स क्लब, फतेहपुर-शेखावाटी (राजस्थान)

***

आज़ादी और भारतीय फिल्मों पर दी गई जानकारी अच्छी लगी. लेकिन अपने देश की मानसिकता पर अफ़सोस भी होता है. किससे करें गिला शिकवा, शिकायत कौन सुनता है. हमारे शहर में यारो हरेक कुर्सी शिकायत है! कहीं पर वोटो का जलवा, कहीं पर नोटों का जादू. कहीं पर लत-जूतों से यहां होती इबादत है.

Indien Unabhängigkeitstag
कश्मीर में भी दिखे आजादी के रंगतस्वीर: AP

वीरेंदर कुमार, पोस्ट कतरा, जिला मंडला (मध्य प्रदेश)

***

मेरा अनुरोध है कि सुबह का हिंदी रेडियो समाचार बुलेटिन, जो कुछ समय पहले बंद कर दिया गया था, उसे वापस आरंभ कर दिया जाना चाहिए. रेडियो ही तो खबरें सुनने का सबसे सस्ता साधन है. इसके अलावा रेडियो का इस्तेमाल हर जगह किया जा सकता है, जैसे कमरे में बैठे, बगीचे में, लॉन में बैठे या फिर रसोई में काम करते हुए भी. वहीं कंप्यूटर का इस्तेमाल केवल एक स्थान पर मेज़ पर बैठ कर ही किया जा सकता है. भारत में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पास अब भी कंप्यूटर की सुविधा नहीं है. लाखों लोग ऐसे है जो डॉयचे वेले से हिंदी समाचार सुनना पसंद करते हैं, हालांकि उन्होंने आपको लिखा भी होगा. उनमें से मैं भी एक हूं. मैं पिछले कई वर्षों से आपके हिन्दी समाचार बुलेटिन का शौकीन रहा हूं. आपसे मेरा विन्रम अनुरोध है कि सुबह का हिंदी समाचार बुलेटिन तुरंत बहाल किया जाना चाहिए. धन्यवाद.

बीपी गुप्ता, जयपुर (राजस्थान)

***

14 अगस्त को हैलो ज़िन्दगी में देशभक्ति के मायने समझाने वाली फिल्मों की चर्चा बेहद अच्छी और सार्थक लगी.

सुरेश अग्रवाल, केसिंगा (ओडिशा)

***

सबसे पहले तो मैं आपकी वेबसाइट के बारे में कहना चाहूंगा कि उसमें कोई चुम्बकीय आकर्षण है, जहां सरफ़र खिचें चले जाते हैं. आज शोले फिल्म के बारे में छोटा सा लेख पढ़ा. सचमुच शोले जैसी फिल्म यदा कदा ही बनती है, जो बच्चे से लेकर बूढ़े तक की जबान पर आ जाए. शोले के डायलॉग आज भी लोगों की जबान में वैसे के वैसे ही ताज़ा हैं.

के. के. मिश्र, शेखावाटी क्लब, फतेहपुर-शेखावाटी (राजस्थान)

***

बहुत खुशी की बात है कि जूलिया रॉबर्ट्स जैसी अमेरिकी अदाकारा ने भारत के सनातन हिन्दू धर्म को अपनाया. काश, मैं उनको बधाई दे पाता. इससे यह साबित होता है कि हिन्दू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जहां शांति और प्रेम की बरसात होती है. हमारे देश में धर्म बदल रहे लोगों को उनसे यह सीख़ लेनी चाहिए कि हिन्दू धर्म ही एकमात्र धर्म है.

Indien Julia Roberts Eat Pray Love
हिन्दू बनीं जूलियातस्वीर: AP

निर्मल सिंह राणा, जिला किशनगंज (बिहार)

***

डायचे वेले हिन्दी सेवा की वेबसाइट पर आर्टिकल पढ़ने को मिला जिसमें चीन से जारी एक वर्ल्ड रैंकिंग में हावर्ड विश्वविद्यालय को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी घोषित किया गया. भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों की बात करें, तो ये अब भी देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में सक्षम नहीं हैं. अगर हम अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों से तुलना करें तो पाएंगे कि उनका रिसर्च-लेवेल बहुत अच्छा है. वे इनका सीधा उपयोग अपने देशों में नई तकनीकी सुविधाएं पैदा करने में लगाते हैं. हमारे देश में शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान और परीक्षाएं पास करने तक ही सीमित है. देश के विकास के लिए ज़रूरी नई तकनीक पैदा करने में इनका कोई योगदान नहीं है. आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों ने पूरी दुनिया में भारतीय उच्च शिक्षा के झंडे गाड़े हैं. लेकिन जब पारंपरिक उच्च शिक्षा संस्थानों की बात होती है, तो भारत विश्व मापदंडों पर नही दिखता .भारतीय शिक्षा का बुनियादी स्तर काफ़ी खराब है. अमेरिका जैसे देशों में अधिकतर स्कूलों का संचालन सरकार की ओर से किया जाता है. वहीं भारत में सरकारी स्कूलों में सिर्फ़ गरीब लोग ही अपने बच्चों को भेजते हैं. अगर भारत उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहता है तो, इसके लिए ज़रूरी है कि शिक्षा मातृभाषा में दी जाए. फ्रांस, रूस, जापान और जर्मनी जैसे देशों में अधिक गुणवत्ता वाले शोध और अच्छे वैज्ञानिक केवल इसलिए होते हैं क्योंकि वहां पढ़ाई-लिखाई उनकी मातृभाषा में होती है.

रवि शंकर तिवारी, स्टुडेंट टी.वी. जॉर्नालिस्म, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी (नई दिल्ली)


रिपोर्टः विनोद चढ्डा

संपादनः ए कुमार