1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्लिंटन की भारत से बाजार खोलने की मांग

१९ जुलाई २०११

अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भारत को अपने बाजारों को तेजी से खोलने और नागरिक परमाणु समझौते से जुड़े सवालों को शीघ्र निबटाने को कहा है. अमेरिकी कंपनियों को भारत से अरबों का नया व्यापार करने की उम्मीद है.

https://p.dw.com/p/11zBH
तस्वीर: AP

नई दिल्ली में अमेरिका और भारत के बीच दूसरी सामरिक वार्ता की शुरुआत में हिलेरी क्लिंटन ने विनम्र लेकिन मजबूत लहजे में भारत से आर्थिक मामलों पर आगे बढ़ने की अपील की. दोनों देश अपने आर्थिक रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उसने अब तक नतीजों से ज्यादा उम्मीदें जगाई हैं.

बैठक की शुरुआती टिप्पणी में क्लिंटन ने कहा, "दांव बड़ा है. इसलिए जरूरी है कि यह संवाद हमारी सरकारों द्वारा असली नतीजों के लिए ठोस और समन्वित कदम तय करे." विश्व भर में आए आर्थिक धीमेपन के कारण अमेरिका और यूरोपीय कंपनियों को भारत जैसे उभरते बाजारों में बाजार देखने को मजबूर होना पड़ा है.

भारत और अमेरिका के बीच हो रही बातचीत में कई द्विपक्षीय मुद्दों पर भी चर्चा होगी जिसमें आतंकवाद विरोधी संघर्ष में सहयोग भी शामिल होगा. यह बातचीत ऐसे समय में हो रही है जब पिछले ही सप्ताह मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 19 लोग मारे गए हैं. हिलेरी क्लिंटन आज भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी मिलेंगी. वे भारतीय नेताओं को अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों में कटौती के बारे में जानकारी देंगी. भारत को डर है कि अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की तेज वापसी हो सकती है.

अपनी टिप्पणी में क्लिंटन ने पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया लेकिन कहा कि कट्टरपंथी हिंसा का मुकाबला भारत और अमेरिका की साझा चुनौती है.उन्होंने कहा, "हम हिंसक कट्टरपंथी नेटवर्क के खिलाफ संघर्ष में सहयोगी हैं. आंतरिक सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है और बढ़ते सहयोग का स्रोत भी."

अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि वे भारत के साथ सुरक्षा सहयोग से आम तौर पर संतुष्ट हैं लेकिन भारत लंबे समय से पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भारत पर हमले की योजना बनाने वाले इस्लामी कट्टरपंथियों के बारे में तुरंत सूचना न देने से नाराज है.

क्लिंटन ने दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में रुकावटों का जिक्र किया. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि भारत की 1600 अरब डॉलर की अर्थव्यस्था के कारण उसे तेजी से बढ़ना चाहिए.दोनों देशों के बीच परमाणु समझौते को अभी भी कानूनी बाधाएं पार करनी है ताकि अमेरिकी कंपनियों के लिए कारोबार का रास्ता खुल सके. साल के आरंभ में भारत ने चेतावनी दी थी कि वह उन देशों से परमाणु रिएक्टर नहीं खरीदेगा जो उसे संवेदनशील परमाणु तकनीकी देने से मना करेगा. न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप ने पिछले महीने भारत जैसे देशों के साथ व्यापार में कड़ाई का फैसला किया था.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: ए जमाल

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी