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क्यों होते हैं रौंगटे खड़े

८ अप्रैल २००९

दिल्ली में लोग गर्मी से परेशान हैं तो कैलिफॉर्निया में लोग सागर किनारे धूप सेक रहे हैं. भारत में सर्दियों का इंतज़ार रहता है तो जर्मनी में लोग ठंड से पीछा छुड़ाना चाहते हैं. किसका शरीर किस हद तक किस तापमान के लिए बना है.

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सर्दियों में आग की गर्मीतस्वीर: AP

सर्दियां तो बीत गईं और बढ़ती गर्मी के ख़याल से रूह कांपती है. फिर शुरु होती है गर्मी से निबटने की बात, किसको कितनी गर्मी लगती है, सुबह कितने बजे घर से बाहर निकलें ताकि लू के चलने से पहले आदमी अपनी मंज़िल पर पहुंच जाए. और साल के ख़त्म होते होते फिर बातें होंगी सर्दियों की, कितने कंबल, कौन से हीटर या फिर अंगीठी. कहने का मतलब यह है कि दुनिया भर में मौसम ने लोगों की ज़िंदगी पर एक तरह से कब्ज़ा कर रखा है. और जहां दिल्ली के आस पास लोगों ने कूलर और एसी या इस तरह के जुगाड़ करने शुरु कर दिये होंगे, ठीक उसी तरह जर्मनी और पश्चिमी देशों में भी लोग अक़सर ठंड से जूझने की तैयारी करते रहते हैं. कुछ जर्मन वैज्ञानिक ठंड को लेकर लोगों की शारीरिक प्रतिक्रियाओं पर अनुसंधान कर रहे हैं.

Strand in Bournemouth Südengland
सागर किनारे धूप का मज़ातस्वीर: picture-alliance/dpa

ठंड या गर्मी-क्यों और कैसे

कभी नाक ठंड से पत्थर हो जाए तो कभी पैर. फिर धीरे धीरे जो शीत लहर पूरे शरीर से होते हुए जाती है. कभी किसी के पैर पहले जम जाते हैं तो किसी के कान. सोचने वाली बात है - ठंड लगने का मतलब नहीं कि सब लोगों को एक ही तरह से ठंड लगे. हर एक व्यक्ति अपनी तरह से ठंड को महसूस करता है और उसका शरीर ख़ास तरह से इससे निबटता है. कोलोन के खेल विश्वविद्यालय के चिकित्सक डा. योआख़िम लाट्श बताते हैं कि हर व्यक्ति के शरीर में गर्मी और सर्दी को महसूस करने वाली ख़ास तरह की कोशिकाएं होती हैं. और सब लोगों के शरीर में इनका विभाजन एक ही तरह से नहीं होता है, इसलिए कुछ लोगों को पहले पैरों में ठंड लगती है, या पहले हाथों में पसीना आता है. डा. लाट्श कहते हैं कि गर्मी और सर्दी को महसूस करने वाली कोशिकाएं अलग होती हैं. यानी जिसके शरीर में गर्मी वाली कोशिकाएं ज़्यादा हों, उसे गर्मी ज़्यादा लगेगी, और जिसके शरीर में ठंड महसूस करने वाली कोशिकाएं ज़्यादा हों, उसे ठंड ज़्यादा लगेगी. जिस तरह लोगों के जूतों का नाप अलग अलग होता है, वैसे ही गर्मी और सर्दी को लोग अलग अलग तरह से महसूस करते हैं.

BDT Deutschland Sonnentanz aus Hawaii
धूप-गर्मी या उजाला?तस्वीर: AP
Hitzewelle in Südeuropa, hier Rumänien
गर्मी से राहततस्वीर: AP

ठंड या गर्मी को महसूस करने वाली ये कोशिकाएं फिर ख़ून के ज़रिए दिमाग तक संदेश पहुंचाती हैं और दिमाग अपने हिसाब से शरीर को मौसम के लिए तैयार करता है. हमारा शरीर भी प्राकृतिक रूप से 25 से 30 डिग्री के बीच तापमान के लिए बनाया गया है. मतलब कि 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान में अगर आप पेड़ की छांव में खड़े रहेंगे तो आपको शीतलता का अनुभव होगा. अगर आप धूप में आएंगे तो धूप की गर्मी भी आपको अच्छी लगेगी. इसके पीछे क्या राज़ है? डा. योआख़िम लाट्श कहते हैं कि हवा की इसमें बड़ी भूमिका है. अगर धूप चली जाती है और हवा चल रही हो, तो शरीर इस तेज़ गति से चलने वाली हवा को गर्म नहीं कर पाता. दूसरी तरफ, अगर आप किसी गर्म जगह में खड़े हैं जहां हवा भी नहीं चल रही हो तो आपके शरीर के आस पास का तापमान भी ज़्यादा होता है. इसलिए, जब हम कुर्सी पर बैठते हैं तो कुर्सी गरम हो जाती है.

तापमान-शरीर के अंदर और शरीर के बाहर

एक तंदरुस्त व्यक्ति के शरीर का तापमान 36.5 डिग्री सेल्सियस होता है, हर व्यक्ति के हिसाब से, थोड़ा आगे पीछे. अगर यह तापमान 42 डिग्री तक चला जाए या 30 डिग्री से कम हो जाए, तो यह जानलेवा बन सकता है. अनियमित तापमान में दिल और दिमाग दोनों ठीक तरीके से काम नहीं कर पाते और अगर हालत बहुत बुरी हो जाए तो मौत भी हो सकती है. शरीर के अंदरूनी तापमान के मुक़ाबले मनुष्य अपने आप को बहुत सर्दी या बहुत गर्मी के अनुकूल कर लेता है, चाहे वो सहारा मरुस्थल के आदिवासी हों या उत्तरी ध्रुव के एस्कीमो. और ज़्यादा ठंड लगने पर जो रौंगटे खड़े हो जाते हैं, डा. योआख़िम लाट्श का मानना है कि यह आदिमानव के ज़माने की प्रवृत्ति हमें विरासत में मिली है. हमारे पूर्वजों के शरीर पर बहुत बाल होते थे, और रौंगटे खड़े होने से इन बालों के बीच हवा की एक परत बन जाती है जो ठंड से बचाती है. और ठंड से बचाने के लिए हमारे दांत भी चटकने लगते हैं और सिहरन होने लगती है. शरीर को लगता है कि उसे ठंड लग रही है और उसे कुछ करना चाहिए. छोटे बच्चों और शिशुओं में भी ठंड से जूझने की क्षमता होती है. वह अपने शरीर को अपने मोटापे की परत से गर्म रखते हैं. फिर क्या मोटे लोगों को कम ठंड लगती है? डा. योआख़िम लाट्श का मानना है कि इस बात को साबित नहीं किया गया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मोटे लोग सर्दियों में बिना कपड़ों के घूम सकते हैं!

रिपोर्ट-डॉयचे वेले/मानसी गोपालकृष्णन

संपादन-महेश झा