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क्यों खास है पुतिन और ओरबान का रिश्ता?

२० सितम्बर २०१८

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान जैसे एक दूजे के लिए ही बने हैं. दोनों कट्टर राष्ट्रवादी हैं और दोनों को ही उदारवादी बर्दाश्त नहीं. लेकिन इनके रिश्ते को समझना इतना आसान भी नहीं है.

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Ungarn Budapest Putin Orban
तस्वीर: Reuters/Laszlo Balogh

"अगर आप चाहते हैं कि आपको एक अच्छा यूरोपीय समझा जाए, तो आपको पुतिन की ऐसे बुराई करनी होगी जैसे वो कोई शैतान हों." ये हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान के शब्द हैं. जनवरी 2008 में इटली के अखबार 'ला रिपुब्लिका' को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने यह बात कही.

ओरबान हमेशा ही पुतिन के साथ अपने अच्छे संबंधों का बखान करते रहे हैं. उनका कहना है कि यूरोपीय संघ के अधिकारी पुतिन को ऐसे पेश करते हैं जैसे उनके सर पर सींग लगे हों और वे इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि पुतिन एक महान और प्राचीन साम्राज्य की हुकूमत को संभाल रहे हैं.

इतिहास में झांके तो पता चलता है कि ऐसा नहीं है कि हंगरी और रूस के रिश्ते हमेशा से ही अच्छे रहे हों. ओरबान इस बात को मानते भी हैं लेकिन फिर भी वे पुतिन की तारीफ करने से नहीं चूकते, "अतीत में हंगरी के लोगों को रूस के कारण काफी कष्ट उठाना पड़ा है लेकिन आपको ये बात तो माननी ही होगी कि पुतिन ने अपने देश को फिर से महान बना दिया है. रूस एक बार फिर दुनिया के सामने एक अहम देश के रूप में उभरा है."

वैसे, यूरोपीय संघ के अधिकारी जिन्हें पुतिन नापसंद हैं, वे ओरबान के बारे में भी बहुत अच्छी राय नहीं रखते. 2010 में सत्ता में लौटने के बाद से उन्होंने अपने देश को बिलकुल वैसे ही बदला है जैसे कि पुतिन ने रूस को. उन्होंने मीडिया को अपने काबू में कर लिया है और अपने इर्द गिर्द कुछ रईस लोगों का धनिकतंत्र खड़ा कर लिया है.

रूस पर लगाए गए यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों की ओरबान खुल कर निंदा करते रहे हैं. इतना ही नहीं, 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया इलाके पर रूसी कब्जे के बाद जब ईयू ने रूस के साथ राजनयिक संबंधों को रोकने का फैसला लिया, तब भी ओरबान ने पुतिन को बुडापेस्ट आने का न्योता दे डाला. और ऐसा उन्होंने सिर्फ एक बार ही नहीं किया.

अजीब बात यह है कि इस सब के बावजूद हंगरी नाटो का एक प्रतिबद्ध सदस्य है. पूर्व रूसी जासूस सेर्गेई स्क्रिपाल की ब्रिटेन में नर्व एजेंट से हत्या की कोशिश के बाद जब नाटो सदस्यों ने अपने देशों से रूसी राजनयिकों को निकालना शुरू किया, तो हंगरी ने भी ऐसा ही किया.

दोनों के बीच इस अंतर की एक बड़ी वजह यह हो सकती है कि शीत युद्ध के दौरान पुतिन और ओरबान ने दो अलग अलग दिशाओं से अपने करियर की शुरुआत की. जहां पुतिन सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी के लिए जर्मनी में तैनात थे, वहीं ओरबान सोवियत सेना को देश से हटाए जाने की मांग कर रहे थे. 1989 में बुडापेस्ट में छात्र ओरबान के जोशीले भाषण को आज भी याद किया जाता है.

जुलाई 1998 में ओरबान ने हंगरी के प्रधानमंत्री का पद संभाला, इसके कुछ ही हफ्तों बाद पुतिन रूस की खुफिया एजेंसी एफएसबी के अध्यक्ष चुने गए और दो साल बाद उनके नाम के आगे राष्ट्रपति लग चुका था. दोनों शख्सियतों में फर्क इतना है कि जहां पुतिन ने तब से अब तक देश की कमान को अपने हाथों से निकलने नहीं दिया है, वहीं ओरबान को 2002 से 2010 के बीच का वक्त विपक्ष में बिताना पड़ा है.

विपक्षी नेता के रूप में वे रूस के खिलाफ आवाज उठाते रहते थे लेकिन 2010 में दोबारा सत्ता में आने के बाद से रूस को लेकर उनका रवैया बिलकुल ही बदल गया. 2011 में ओरबान ने अपनी "ईस्टर्न ओपनिंग" नीति की घोषणा की जिसके तहत रूस, चीन, तुर्की और अन्य पूर्वी देशों के साथ व्यापार को बढ़ाने पर काम शुरू किया गया. इतना ही नहीं, जनवरी 2014 में उन्होंने रूस की सरकारी कंपनी रोसाटोम को अपने एकमात्र परमाणु केंद्र "पाक्स" की मरम्मत का काम सौंप दिया. हालांकि ईयू ने कई कारण बताते हुए इस प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी.

वर्तमान में हंगरी आर्थिक रूप से यूरोपीय संघ के अधीन है. उसका 80 फीसदी निर्यात ईयू के देशों में ही होता है. लेकिन ईंधन के लिए उसे रूस पर निर्भर करना पड़ता है. देश में आयत होने वाला 89 फीसदी कच्चा तेल और 57 फीसदी प्राकृतिक गैस रूस से ही आते हैं. तो क्या आर्थिक निर्भरता के कारण ही ओरबान पुतिन के पक्ष में खड़े दिखते हैं?

देखा जाए तो सैद्धांतिक रूप से भी ओरबान पुतिन से काफी मेल खाते हैं. 2014 में उन्होंने "इललिबरल डेमोक्रेसी" यानी अनुदारवादी लोकतंत्र का सिद्धांत दुनिया के सामने रखा और एक सफल अनुदारवादी देश के रूप में रूस की मिसाल भी दी. पुतिन की ही तरह ओरबान भी उदारवाद की जगह पारंपरिक ईसाई मूल्यों को तवज्जो देते हैं और देश में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देते हैं. रूस और हंगरी दोनों ही पश्चिमी ताकतों को अपने देश के खिलाफ काम करने के लिए जिम्मेदार बताते रहे हैं. दोनों ने ही विदेशी एक्टिविस्ट को खदेड़ा भी है.

तो क्या इन समानताओं का मतलब यह है कि दोनों नेता करीबी दोस्त भी हैं? ओरबान इससे साफ इंकार करते हैं. 2015 में एक अमेरिकी अखबार "पोलिटको" को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि पुतिन के दिल में नेताओं के लिए कोई भावनाएं नहीं हैं. उन्होंने बताया था कि जहां पश्चिमी जगत में नेता एक दूसरे के साथ अच्छे निजी संबंध बनाने पर ध्यान देते हैं और एक दूसरे को पहले नाम से पुकारते हैं, वहीं रूसियों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती.

उस इंटरव्यू में ओरबान ने सवाल किया था, "क्या किसी ने पुतिन की शख्सियत देखी है? इसलिए, निजी रिश्तों की कतई भूमिका नहीं है - ना ही मेरे मन में ऐसा कुछ है और ना ही पुतिन के."

रिपोर्ट: डार्को जांजेविक/आईबी

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