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समाजएशिया

क्या होगा कोरोना महामारी में मां-पिता को गवां चुके बच्चों का

मनीष कुमार
२८ मई २०२१

कोरोना संक्रमण की वजह से कई बच्चों ने अपने मां-पिता या फिर दोनों को खो दिया है. हालात ऐसे बन गए हैं कि कई घरों में बच्चे अकेले रह गए हैं. कुछ बच्चों की परवरिश का तो जिम्मा किशोर भाई-बहनों पर आ गया है.

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कोरोना के असर से जूझ रहे हैं बच्चेतस्वीर: Getty Images/Y. Nazir

कई बच्चों को तो खुद के बूते अपने मां-बाप का अंतिम संस्कार भी करना पड़ा है. संक्रमण के खौफ से गांव के लोग उनसे दूर ही रहे. बिहार के अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड के एक गांव की ऐसी ही तस्वीर सामने आई, जिसने जनमानस को झकझोर कर रख दिया. चार दिन के अंतराल पर मां-पिता दोनों की मौत हो गई. तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी सोनी ने घर के पीछे खुद ही गड्ढा खोदकर मां का शव दफनाया. किसी ने साथ नहीं दिया. अब सोनी के समक्ष छोटे भाई और बहन को पालने का संकट है. पटना के नौबतपुर निवासी कुमार आर्यन के माता-पिता की भी मौत चार दिनों के अंतराल में हो गई. अनाथ हो चुके आर्यन और उसके भाइयों की पढ़ाई तो छूट ही गई, अब उसके समक्ष भुखमरी की स्थिति है. इसी तरह गया के एक 12 साल के बच्चे अजीत पर अपने आठ साल के छोटे भाई को पालने का जिम्मा आ गया है. उसके पिता की मौत काफी पहले हो गई थी. घर चलाने के लिए वह गांव के कुछ लोगों के साथ जयपुर चला गया और वहां एक फैक्टरी में काम करने लगा. बाल श्रम उन्मूलन अभियान के तहत छुड़ाए जाने पर 2019 में वह गांव लौट आया. इस बार कोरोना की वजह से मां की भी मौत हो गई. चाचा या कोई रिश्तेदार अब उसे रखने को तैयार नहीं हैं. अब संकट ये है कि आखिर ये बच्चे कहां जाएं, क्या करें.

चाइल्ड ट्रैफिकिंग का खतरा बढ़ा

बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था डीआईआरईसीटी के बिहार केंद्र के कार्यकारी निदेशक सुरेश कुमार कहते हैं, "ऐसे कई बच्चे हैं जो विभिन्न जगहों से छुड़ाकर लाए गए हैं. अकेले जयपुर की चूड़ी फैक्टरी से पिछले साल कोरोना काल में वहां काम कर रहे 400 बच्चों को छुड़ाकर बिहार लाया गया था. इनमें से कई के मां-पिता की मौत हो गई है या फिर पूरा कुनबा ही उजड़ चुका है. अनाथ हुए ऐसे बच्चों पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो ये चाइल्ड ट्रैफिकिंग के शिकार हो सकते हैं."

बच्चों की तस्करी के लिए कुख्यात कोसी, पूर्व बिहार व सीमांचल के इलाकों में वाकई इसकी संभावना बढ़ गई है. पहले से ही ये बच्चे गरीबी या फिर बेरोजगारी के शिकार थे. बालश्रम या बाल वेश्यावृति के लिए ट्रैफिकिंग की घटनाएं इन इलाकों में आम हैं. ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं, जिनमें पिता की मौत के बाद घर चलाने में असमर्थ मां ने थक-हारकर खुद ही बच्चे को अनाथालय में छोड़ दिया.

कैलाश सत्यार्थी ने की ठोस कार्रवाई की अपील

नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के 74वीं सम्मेलन में कोरोना से प्रभावित बच्चों की सुरक्षा के लिए तत्काल आर्थिक सहायता और ठोस कार्रवाई करने की अपील की. उन्होंने स्वास्थ्य मंत्रियों से अपने-अपने देश में बच्चों के लिए विशेष बजट आवंटित करने तथा विशेष कार्ययोजना बनाने के साथ-साथ टास्क फोर्स के गठन की भी मांग की. जेनेवा में वर्चुअल तौर पर आयोजित 194 देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों तथा अन्य वैश्विक नेताओं की मौजूदगी में सत्यार्थी ने कहा कि कोरोना महज स्वास्थ्य व आर्थिक संकट नहीं है, बल्कि यह न्याय, सभ्यता और मानवता का संकट है. महामारी ने दुनिया में जो तबाही मचाई है, उससे बच्चों को बचाने के लिए हमें उन्हें साथ में लेना ही होगा.

Manthan in Lindau
सत्यार्थी ने कहा कोरोना मानवता का संकटतस्वीर: DW

ऐसा नहीं है कि सरकारों को अनाथ हुए बच्चों की चिंता नहीं है. महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इस साल अप्रैल महीने से मई के आखिरी हफ्ते तक राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि अब तक कम से कम 577 बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने कोविड के कारण अपने माता-पिता को खो दिया. आज वे अनाथ हैं. अपने एक ट्वीट में उन्होंने कहा है, "सरकार ऐसे बच्चों की सहायता व सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. इन बच्चों को यूं ही नहीं छोड़ा गया है, ये जिला प्रशासन के संरक्षण व निगरानी में हैं."

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहा है कि कोविड के कारण अनाथ हो चुके बच्चों के भविष्य को संवारने की जिम्मेदारी हमारी है. उन्होंने बच्चों के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाने की जरूरत पर जोर दिया है. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनाथ बच्चों की नवोदय विद्यालयों में मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करने का आग्रह किया है. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ट्वीट कर इस आग्रह का समर्थन किया है.

परवरिश योजना से जोड़े जाएंगे बच्चे

बिहार सरकार ने कोविड संक्रमण के कारण मां-पिता दोनों को खो चुके ऐसे बच्चों को, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं हैं, चाइल्ड होम केयर होम में रखने का निर्देश दिया है. समाज कल्याण विभाग के निदेशक राजकुमार ने जिलाधिकारियों को लिखे पत्र में कहा है कि अनाथ बच्चों को अविलंब चाइल्ड केयर होम में रखे जाने की व्यवस्था की जाए. इन बच्चे-बच्चियों की ट्रैफिकिंग की संभावना है इसलिए इनकी नियमित मॉनिटरिंग भी की जाए. सरकार इस बात की भी जांच कर रही है अनाथ बच्चों को रखने के लिए तैयार परिजन सही तरीके से देखभाल में सक्षम हैं या नहीं. कोविड की दूसरी लहर के दौरान मई के आखिरी हफ्ते के प्रारंभ तक बिहार सरकार ने 43 बच्चों को परवरिश योजना से जोड़ा है. कोरोना काल से पहले राज्य सरकार परवरिश योजना के तहत बेसहारा व असाध्य रोग से ग्रस्त 14000 से अधिक बच्चों को आर्थिक सहायता दे रही है.

Indien | Coronakrise: Wanderarbeiter kehren zurück
तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार में ऐसे बच्चों को समाज कल्याण विभाग की तरफ से परवरिश योजना के तहत 18 साल का होने तक प्रति माह एक हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी. आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए अनाथ बच्चों के आवेदन लिए जाने का प्रावधान है. छह साल की उम्र वाले बच्चे को भरण-पोषण के लिए प्रति माह 900 रुपये दिए जाएंगे, जबकि इससे अधिक आयु के बच्चे को 18 साल तक 1000 रुपये मिलेंगे. इस योजना पर टिप्पणी करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता रणविजय कहते हैं, "मान लिया कि इनकी पढ़ाई-लिखाई सरकारी स्कूलों में हो जाएगी. भला एक हजार रुपये से बच्चों का लालन-पोषण कैसे संभव है." उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री वात्सल्य योजना की तरह ही बिहार सरकार को भी इसकी राशि बढ़ाकर कम से कम तीन हजार रुपये और आयु सीमा 21 साल करने की मांग की.

पुनर्वास के लिए गाइडलाइन जारी

माता-पिता को खो चुके बच्चों के पुनर्वास के लिए महिला व बाल विकास मंत्रालय ने गाइडलाइन जारी कर दी है. सोशल मीडिया में ऐसे बच्चों को गोद लेने वाले संदेशों के प्रसारण के आलोक में सरकार ने सख्त रुख अख्तियार किया है. कहा गया है कि जिन बच्चों ने कोरोना के कारण माता-पिता, दोनों को खो दिया है उन्हें जिला बाल कल्याण समिति के समक्ष 24 घंटे में पेश करना होगा. समिति पूरी पड़ताल करेगी और फिर पुर्नवास के लिए उचित आदेश पारित करेगी. जहां तक संभव हो बच्चों को उनके परिवार व सामुदायिक वातावरण में पलने-बढ़ने का मौका दिया जाएगा. यदि किसी परिजन को बच्चे को सौंपा जाता है तो समिति बच्चे की परवरिश की नियमित तौर पर मॉनिटरिंग करती रहेगी.
कोरोना की दूसरी लहर में जान गंवाने वाले बहुत से लोग 30 से 40 आयु वर्ग के हैं, जिनके छोटे-छोटे बच्चे थे. सरकारें अपनी ओर से ऐसे बच्चों की संख्या का पता लगाने और उनतक पहुंचने में जुटी हैं. कोविड के चुनौतीपूर्ण समय में ऐसे बच्चों के लिए चाइल्ड ट्रैफिकिंग, यौन शोषण या बाल श्रम जैसे खतरे बढ़ गए हैं. समाज व सरकार के स्तर पर पूर्ण सामंजस्य से ही ह्दयविदारक त्रासदी झेल चुके इन अनाथ बच्चों को बचाना संभव होगा.