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समाज

घर के काम का सही वेतन

चारु कार्तिकेय
६ जनवरी २०२१

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घर के काम करने वालों की कल्पित आय का हिसाब लगाना आवश्यक है. कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया है कि इसके लिए श्रम के साथ साथ घर संभालने वाले ने क्या क्या त्याग किया उसका भी हिसाब लगाना चाहिए.

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Indien Energie | Kochen ohne Elektrizität in Nisarpura
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

अदालत ने यह टिप्पणी बीमा विवाद के एक मामले में सुनवाई के दौरान की. जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस सूर्य कांत की तीन जजों वाली पीठ के फैसले में जस्टिस रमना ने कहा, "घर संभालने वाले लोगों को जितना काम करना पड़ता है उसके लिए वो जिस मात्रा में समय और श्रम का योगदान करते हैं वो कोई आश्चर्य की बात नहीं है."

यह स्पष्ट करते हुए कि घर संभालने का काम अधिकतर महिलाएं ही करती हैं, जस्टिस रमना ने गिनवाया कि एक गृहिणी अक्सर पूरे परिवार के लिए खाना बनाती है, परचून के सामान और घर की जरूरत के दूसरे सामान की खरीद का प्रबंधन करती है, घर की सफाई करती है और उसका रखरखाव करती है, सजावट और मरम्मत भी करती है, बच्चों और बुजुर्गों की विशेष जरूरतों का ध्यान रखती है, बजट प्रबंधन करती है और इसके अलावा और भी बहुत कुछ करती है.

आगे उन्होंने यह भी कहा कि घर के काम करने वालों की कल्पित आय तय करना इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे उन महिलाओं के योगदान को पहचान मिलेगी जो बड़ी संख्या में या तो अपनी मर्जी से या सामाजिक/सांस्कृतिक मानकों की वजह से ये काम करती हैं. जस्टिस रमना ने यह भी कहा कि इससे समाज में भी एक संदेश जाता है कि देश की अदालतें और कानून व्यवस्था घर का काम करने वालों के श्रम, उनकी सेवाएं और उनके त्याग के मूल्य में विश्वास रखते हैं.

मामला 2014 में हुए एक हादसे का था जिसमें एक व्यक्ति और उसकी पत्नी की मौत हो गई थी. पति एक शिक्षक था जबकि उनकी पत्नी गृहिणी थी और दोनों के दो बच्चे हैं. जिस बीमा कंपनी से उन्होंने बीमा करवाया था उसे एक ट्रिब्यूनल ने बीमे के एवज में उनके बच्चों को 40.71 लाख रुपये देने का आदेश दिया था, लेकिन कंपनी ने इस आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दे दी थी.

हाई कोर्ट ने बीमे की रकम को घटा कर 22 लाख कर दिया था, लेकिन अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को आदेश दिया कि वो मृतकों के परिवार को 33.20 लाख रुपए दे और 2014 से नौ प्रतिशत ब्याज दर पर ब्याज भी दे. हर्जाने की इस रकम के आकलन में मृत महिला की बतौर गृहिणी कल्पित आय का सही हिसाब लगाने की एक बड़ी भूमिका थी. तीन जजों की पीठ ने अपने फैसले में यह भी लिखा कि कल्पित आय तय करने में हर मामले को अलग से देखा जाना चाहिए.

घर संभालने वालों की कल्पित आय पर सुप्रीम कोर्ट और देश की दूसरी अदालतें भी इससे पहले भी महत्वपूर्ण आदर्श दे चुकी हैं. दिसंबर 2020 में महाराष्ट्र में एक मोटर एक्सीडेंट्स क्लेम ट्रिब्यूनल ने सड़क हादसे में मारी गई एक महिला के परिवार को 17 लाख रुपये दिए जाने का आदेश दिया था. तब ट्रिब्यूनल ने उस महिला की कल्पित आय 7,000 रुपये प्रति माह तय की थी.

सुप्रीम कोर्ट की ताजा टिप्पणी का महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली एक्टिविस्टों ने स्वागत किया है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि इससे महिलाओं के योगदान का समाज में और सही आकलन होगा और उन्हें और सम्मान और उनके अधिकार मिलेंगे.

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