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क्या है संविधान का अनुच्छेद 370 और 35ए

५ अगस्त २०१९

भारत के संविधान का अनुच्छेद 370 और 35 ए जम्मू कश्मीर को विशेष अधिकार देता है. यहां जानिए कि यह क्यों और कैसे लागू हुआ इसके साथ ही यह भी कि इसे कैसे हटाया जा सकता है?

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Indien Kaschmir Srinagar
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/F. Khan

अनुच्छेद 35ए है क्या?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35 ए जम्मू कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देता है कि कि वह इलाके में स्थायी निवासियों की परिभाषा तय  कर सके. अनुच्छेद 35A जम्मू कश्मीर से बाहर के लोगों को राज्य में जमीन खरीदने या स्थायी रूप से बसने के अधिकार से वंचित करता है.   यह राज्य के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देता है.

अनुच्छेद 35 ए राज्य के बाहर के भारतीय लोगों को जम्मू कश्मीर में जमीन खरीदने, स्थायी रूप से बसने, सरकारी नौकरी हासिल करने या फिर छात्रवृत्ति पाने से रोकता है. यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर की महिलाओं को राज्य से किसी बाहर के व्यक्ति से शादी करने की स्थिति में उन्हें संपत्ति के अधिकार से भी वंचित कर देता है. ऐसी महिलाओं के बच्चे भी संपत्ति के अधिकार से वंचित हो जाते हैं.

अनुच्छेद 35ए में तो लंबे समय से कोई बदलाव नहीं हुआ लेकिन अनुच्छेद 370 के कुछ नियमों को समय समय पर बीते दशकों में बदला गया है. आलोचकों का यह भी कहना है कि अनुच्छेद 35ए को संसद से मंजूरी नहीं मिली है और यह महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण है.

अनुच्छेद 35ए कैसे लागू हुआ?

1927 में जम्मू कश्मीर राज्य के प्रशासन ने राज्य के निवासियों को विशेष आनुवांशिक अधिकार दिए. तब राज्य ब्रिटेन के अधीन था लेकिन यहां के लोग राज्य के अधीन थे औपनिवेशिक सत्ता के तहत नहीं.  1947 में भारत के आजाद होने के दो महीने बाद जम्मू कश्मीर के राजा हरी सिंह ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत भारत सरकार के साथ विलय के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए.

1952 में दिल्ली समझौते के तहत कुछ और बातों पर सहमति बनी और फिर राज्य के निवासियों को भारत की नागरिकता दे दी गई लेकिन जम्मू कश्मीर के निवासियों को मिले विशेषाधिकार को ज्यों का त्यों रहने दिया गया. 1954 में 35ए को अनुच्छेद 370 के तहत लागू किया गया. 

अनुच्छेद 370 है क्या?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक के तहत भारत राज्यों का एक संघ हैं, जिसमें अनुच्छेद 370 वाला जम्मू कश्मीर भी शामिल है. अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर राज्य का अपना संविधान और झंडा है. जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत और भारतीय जम्मू कश्मीर प्रांत का अभिन्न हिस्सा है. इसी के तहत जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लिए आरक्षित की जाती रही हैं.

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर में भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्व और मौलिक कर्तव्य लागू नहीं होंगे. युद्ध या राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति के अलावा जम्मू कश्मीर में केंद्र आपातकाल नहीं लगा सकता है.

इसी अनुच्छेद के जम्मू कश्मीर राज्य के परिसीमन या उसकी सीमा में किसी तरह के बदलाव के लिए जम्मू कश्मीर विधानसभा की मंजूरी अनिवार्य है.

भारत के गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि भारत को ब्रिटेन की गुलामी से मुक्ति मिलने के बाद 1947 में यह अनुच्छेद "अस्थायी" तौर पर लगाया गया था लेकिन यह लंबे समय तक जारी रहा. भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार इस अनुच्छेद को लंबे समय से हटाने की बात करती आ रही है.

आलोचकों का कहना है कि इस अनुच्छेद को हटाने के पीछे सरकार की मंशा राज्य में आबादी के अनुपात को बदलना है. राज्य में मुस्लिम लोगों की बहुलता है और धारा 370 हटा कर राज्य में हिंदुओं की संख्या बढ़ाने की कोशिश की जाएगी.

राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की किसी संभावित समस्या से निबटने के लिए एक हफ्ते पहले से ही बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है.

Indien Soldat in Kashmir
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Bakshi

क्या है कश्मीर का विशेष दर्जा

यह अनुच्छेद 1954 में राष्ट्रपति के विशेष आदेश के जरिए संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत शामिल किया गया था. अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को विशेष स्वायत्त राज्य का दर्जा देता है.

इसे कैसे हटाया जा सकता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370(3) में यह व्यवस्था दी गई है कि इस कानून को राष्ट्रपति के आदेश पर हटाया जा सकता है. हालांकि इसके पहले यह आदेश राज्य की संविधानिक विधानसभा में पेश किया जाना चाहिए. 1957 में यह संविधानिक विधानसभा भंग कर दी गई इसलिए विशेषज्ञों की राय इस कानून को खत्म करने के बारे में बंटी हुई है. कुछ लोगों का मानना है कि इसे राज्य की विधानसभा की मंजूरी मिलनी चाहिए जबकि दूसरे लोग मानते हैं कि केवल राष्ट्रपति का आदेश ही पर्याप्त है.

अनुच्छेद 35ए की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई है. भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों का कहना है कि अगर कोर्ट इसे वैध मानती है तो भारत सरकार राष्ट्रपति के आदेश के जरिए इसे हटाएगी.

एनआर/ओएसजे(एपी)

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