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समाज

कश्मीरियों को बाकी दुनिया से जोड़ती "इंटरनेट एक्सप्रेस"

१७ जनवरी २०२०

कश्मीर में पिछले पांच महीने से भी लंबे समय से इंटरनेट बंद है. ऐसे में लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करने के लिए तरह तरह के उपाय लगा रहे हैं. "इंटरनेट एक्सप्रेस" में नियमित यात्रा करना उनमें से एक है.

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Kashmir "Internet-Express"
बनिहाल स्टेशन पर टिकट की कतार में खड़े स्थानीय लोग.तस्वीर: Reuters/A.

18 वर्षीय अबरार अहमद उन हजारों कश्मीरियों में से हैं जो ठंड और बर्फ की परवाह ना करते हुए नियमित रूप से यात्रियों से भरी एक ट्रेन में घंटों यात्रा करते हैं, सिर्फ इसलिए कि वे इंटरनेट का उपयोग कर सकें. कश्मीर बीते पांच महीनों से भी ज्यादा वक्त से इंटरनेट पर बैन झेल रहा है. यह दुनिया की किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इंटरनेट पर लगी सबसे लंबी बंदिश बन चुकी है. कश्मीर में बीते 162 दिनों से इंटरनेट बंद है.

कश्मीरियों ने इस ट्रेन का नाम ही 'इंटरनेट एक्सप्रेस' रख दिया है. बनिहाल जाने वाली इस ट्रेन से उतरते ही लोग सीधे रुख करते हैं उन दुकानों का जहां इंटरनेट उपलब्ध है. वहां उन्हें एक घंटे के ब्रॉडबैंड के लिए 300 रुपये तक देने पड़ते हैं. अहमद कहते हैं, "मैं इस अवसर को खो नहीं सकता था." उन्होंने अभी अभी लोगों से भरे हुए एक इंटरनेट कैफे में नौकरी के लिए एक ऑनलाइन आवेदन पत्र भरा है. वहां उनके जैसे दर्जनों लोग उनके पीछे कतार में खड़े थे. अहमद कहते हैं, "मेरे परिवार में मेरे अलावा और कोई नहीं है जो मेरा और मेरे तीन छोटे भाई-बहनों का ख्याल रख सके." उन्होंने यह भी बताया कि पहले राजमिस्त्री का काम करने वाले उनके पिता ने पिछले साल एक सड़क हादसे में अपना एक पैर गंवा दिया.

इंटरनेट बंद करने की कीमत

पिछले पांच अगस्त को जब केंद्र सरकार ने कश्मीर का विशिष्ट संवैधानिक दर्जा समाप्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया था तब से वहां ब्रॉडबैंड और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद हैं. 14 जनवरी को इन सेवाओं को आंशिक से बहाल किया गया लेकिन अभी भी मोबाइल इंटरनेट सिर्फ जम्मू प्रांत के कुछ हिस्सों में बहाल हुआ है, कश्मीर में नहीं. कश्मीर में ब्रॉडबैंड इंटरनेट की इजाजत मिली तो है लेकिन सिर्फ अस्पतालों, होटलों और यात्रा संबंधित संस्थानों में, और वो भी सिर्फ सरकार द्वारा पारित वेबसाइटों के लिए.

Kashmir "Internet-Express"
साइबर कैफे में लंबी लंबी कतारें लगी होना आम दृश्य है. तस्वीर: Reuters/A.

2016 में संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा की थी कि इंटरनेट एक मानवाधिकार है. लेकिन इसके बावजूद, पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में इंटरनेट को बंद कर देने की घटनाओं में वृद्धि हुई है. फिलीपींस से ले कर यमन तक की सरकारों ने कहा है कि आम जनता की हिफाजत और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इंटरनेट को बंद करना जरूरी हो जाता है. भारत का भी कहना है कि उसे संचार व्यवस्था को बंद करना पड़ा ताकि कश्मीर में अशांति न फैले. कश्मीर में एक अलगाववादी विद्रोह ने 1989 से ले कर अभी तक 40,000 से भी ज्यादा जानें ले ली हैं. 

पर इस लॉकडाउन की कश्मीर को अगस्त से ले कर अभी तक 2.4 अरब डॉलर से भी ज्यादा की कीमत चुकानी पड़ी है. यहां के मुख्य व्यापार संगठन ने यह आंकड़ा देते हुए कहा कि सबसे ज्यादा नुकसान ई-कॉमर्स और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे उन क्षेत्रों का हुआ है जो इंटरनेट पर सीधे आश्रित हैं. कश्मीर चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के उपाध्यक्ष अब्दुल मजीद मीर का कहना है, "इंटरनेट के बिना व्यापार करना आज की दुनिया में अकल्पनीय है." संस्था का अनुमान है कि लगभग पांच लाख नौकरियां खत्म हो चुकी हैं. मीर कहते हैं, "अर्थव्यवस्था को अपरिवर्तनीय नुकसान हो चुका है."

सजा और घुटन का एहसास 

डिजिटल अधिकारों के लिए पूरे विश्व में काम करने वाले समूह एक्सेस नाउ के एशिया पॉलिसी डायरेक्टर रमनजीत सिंह चीमा कहते हैं कि कश्मीर के इंटरनेट बैन ने रिश्तों से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच समेत हर चीज को प्रभावित किया है. एक्सेस नाउ का कहना है कि लोकतांत्रिक दुनिया की सबसे लंबी इंटरनेट बंदिश लागू करने के अलावा भारत 2018 में पूरी दुनिया में हुए शटडाउन में दो-तिहाई की हिस्सेदारी वाला देश बन गया था. चीमा कहते हैं, "हिंसा हो सकती है या आतंकवादी घटनाएं हो सकती हैं इस आधार पर पूरी आबादी को सजा देना एक असाधारण कदम है." गृह और सूचना मंत्रालयों ने थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन द्वारा उनकी टिप्पणी के लिए भेजे गए अनुरोधों पर प्रतिक्रिया नहीं दी. 

बनिहाल में एक शोर भरे साइबर कैफे में, दानिश जैसे ही सांस लेने के लिए बाहर निकले, वैसे ही और लोग उनके बगल से होते हुए इंटरनेट का उपयोग करने कैफे में घुस गए. कैफे में जगह बेहद कम है. बिजली अकसर जाती है इसीलिए कम्प्यूटर और लैपटॉप चलते रहें यह सुनिश्चित करने के लिए डीजल का जनरेटर भी लगा हुआ है, जिसका धुंआ कैफे में फैला हुआ है. दानिश कहते हैं, "मुझे अंदर घुटन महसूस हो रही थी." वे कश्मीर यूनिवर्सिटी के छात्र हैं. कश्मीर में सरकार ने इंटरनेट के लिए कुछ बूथ खड़े किए हैं लेकिन वहां इंटरनेट की मांग ज्यादा है और बूथों की आपूर्ति कम.

और करीब लाना था विशेष दर्जा हटाने का तर्क

केंद्र सरकार ने कहा था कि जम्मू और कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा समाप्त करना इसलिए जरूरी था ताकि उसे भारत के और हिस्सों के साथ जोड़ा जा सके और वहां विकास की रफ्तार तेज की जा सके. लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. श्रीनगर में एक कूरियर कंपनी के बाहर दो डिलीवरी कर्मचारी आग सेंकते हुए बातचीत कर रहे थे और कह रहे थे कि इंटरनेट के न होने से कोई पैकेज भी नहीं आ रहा. उनमें से एक तौसीफ अहमद ने कहा, "अब तो दफ्तर आने वाले सिर्फ हम दोनों ही बचे हैं. करीब 50 लड़कों की नौकरी चली गई है." उन्होंने यह भी कहा, "अगर इंटरनेट को जल्द ही बहाल नहीं किया गया, तो मेरी भी नौकरी जा सकती है."

अंधकारमय भविष्य 

कई दशकों से इस खूबसूरत इलाके की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे पर्यटन पर बहुत बुरा असर पड़ा है. हर साल पूरे भारत से लोग कश्मीर आते हैं उसकी बर्फ से ढकी पहाड़ियां और डल झील को देखने. डल की नक्काशी वाली हाउसबोटों के मालिक पर्यटन पर ही आश्रित हैं. कश्मीर की शिकारा एसोसिएशन के अध्यक्ष बशीर अहमद सुल्तानी कहते हैं कि नाव चलाने वाले 4,000 नाविकों के लिए कोई भी काम नहीं है. नाविक मोहम्मद शफी कहते हैं, "हम बहुत बुरे वक्त से गुजर रहे हैं. हममें से कुछ तो अपने परिवारों के लिए दो वक्त की रोटी का भी इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं. हमें हमारा भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है."

प्रतिबंधों से टूर ऑपरेटरों, होटल वालों और कारीगरों को बड़ा धक्का लगा है. श्रीनगर में एक होटल के प्रबंधक घुलम जीलानी ने बताया, "मैं ज्यादातर चीजें स्थानीय दुकानदारों से उधार पर ले रहा हूं." जीलानी को डर है कि ऑनलाइन बुकिंग के अभाव में उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा. 52 वर्षीय जीलानी कहते हैं कि अक्टूबर में उनके मासिक वेतन को तीन-चौथाई के बराबर काट कर 6,000 रुपये कर दिया गया. तब से उन्हें अपनी बेटी के ट्यूशन की फीस देने में और रोज का किराने के सामान खरीदने में भी दिक्कत हो रही है. वो कहते हैं, "मुझे कह दिया गया है कि अगर कुछ हफ्तों में पर्यटकों का आना शुरू नहीं हो जाता तो मुझे यह वेतन भी नहीं मिलेगा."

नागरिक समाज और संयुक्त राष्ट्र की अपील और सुप्रीम कोर्ट के इंटरनेट के अधिकार पर जोर देने के बावजूद, भारत की केंद्र सरकार ने अभी तक यह नहीं कहा है कि इंटरनेट कब पूरी तरह से बहाल किया जाएगा. कई स्थानीय लोगों का कहना है कि बिना इंटरनेट के उन्हें निर्माण स्थलों पर मजदूरी करनी होगी या हो सकता है उन्हें सामान बांध कर कहीं और जाना पड़े. लेकिन दानिश के लिए बनिहाल तक की नियमित यात्रा फिलहाल उनका एकमात्र सहारा है. वह कहते हैं, "मैं भी किसी और शहर चला जाता लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं क्योंकि मेरे पर्यवेक्षक प्रोफेसर कश्मीर में ही हैं. इंटरनेट के बिना हम दोनों के बीच ईमेल से भी संपर्क नहीं हो पाएगा." दानिश कहते हैं, "इतनी लंबी बंदिश हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ के बराबर है. हम कीमती वक्त गंवा रहे हैं."

सीके/आरपी (थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन)

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