क्या है अलग-अलग चुनावों में खर्च की सीमा
लोकसभा में चुनाव खर्च की सीमा अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग है. ऐसा ही विधानसभा चुनावों के लिए भी है.
लोकसभा चुनाव
लोकसभा चुनावों में एक सीट पर होने वाले चुनाव खर्च की सीमा अलग-अलग राज्य के हिसाब से अलग-अलग है. 2014 से पहले यह चुनाव खर्च सीमा 40 लाख थी. 2014 में इसे बढ़ाकर कुछ राज्यों में 54 लाख और बाकी जगह 70 लाख कर दिया गया.
54 लाख खर्च सीमा
तीन राज्य - अरुणाचल प्रदेश, गोवा, सिक्किम और संघ शासित प्रदेश - अंडमान निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा नगर हवेली, दमण द्वीप, लक्ष्यद्वीप और पांडिचेरी.
70 लाख खर्च सीमा
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, ओडिशा, केरल, झारखंड, असम, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड और संघ शासित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली.
विधानसभा चुनाव
विधानसभा चुनावों में एक सीट पर होने वाले खर्च की राशि भी राज्यों की जनसंख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से अलग-अलग है. कुछ राज्यों में 20 लाख और बाकी राज्यों में 28 लाख है.
20 लाख खर्च सीमा
तीन राज्य - अरुणाचल प्रदेश, गोवा, सिक्किम और संघ शासित प्रदेश - अंडमान निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा नगर हवेली, दमण द्वीप, लक्ष्यद्वीप और पांडिचेरी.
28 लाख खर्च सीमा
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, ओडिशा, केरल, झारखंड, असम, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, जम्मू एवं कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड और संघ शासित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली.
दो स्थानीय निकाय
भारत में दो स्थानीय निकाय होते हैं. शहरी स्थानीय निकाय जैसे नगर पालिका, नगर परिषद, नगर निगम हैं और ग्रामीण स्थानीय निकायों में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद होते हैं. हर राज्य के हिसाब से इनकी अलग-अलग खर्च सीमा होती है. यह सीमा राज्य निर्वाचन आयोग तय करते हैं.
शहरों में खर्च की सीमा
इन चुनावों में खर्च की सीमा वार्डों की संख्या के हिसाब से तय की जाती है. जहां सभापति का चुनाव सीधे होता है वहां वार्ड की संख्या के हिसाब से खर्च तय होता है. जैसे 2018 में उत्तराखंड में हुए नगरीय निकायों के चुनावों में मेयर अपने चुनाव प्रचार में अधिकतम 16 लाख रुपये खर्च कर सकते थे जबकि डिप्टी मेयर पद के लिए खर्च की सीमा 2 लाख रुपये रखी गई है.
ऐसे होता है खर्च
इन्हीं चुनावों में नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद के लिए 10 वार्ड तक चार लाख और 10 से अधिक वार्ड पर छह लाख रुपये की सीमा तय थी. नगर पालिका परिषद के सभासदों के लिए खर्च की अधितम सीमा 60 हजार रुपये थी. नगर पंचायत अध्यक्ष पद के उम्मीदवार अपने चुनाव प्रचार में अधिकतम 2 लाख रुपये थी. वहीं नगर पंचायत सदस्यों के लिए खर्च की सीमा 30 हजार रुपये थी.
गांवों में खर्च की सीमा
ग्रामीण निकायों में भी वार्ड संख्या के हिसाब से खर्च तय किया जाता है. राजस्थान में हुए ग्रामीण निकायों के चुनाव में जिला परिषद सदस्य उम्मीदवार 80 हजार, पंचायत समिति सदस्य उम्मीदवार 40 हजार, सरपंच उम्मीदवार 20 हजार रुपये खर्च कर सकते थे. ये सीमा हर राज्य में अलग-अलग होती है.
चुनाव आयोग तय करता है दाम
चुनावों में काम आने वाली हर चीज का एक दाम चुनाव आयोग तय करता है. पोस्टर, बैनर से लेकर चाय, समोसा तक के दाम चुनाव आयोग द्वारा तय होते हैं. हर प्रत्याशी को चुनाव के दौरान हुए पूरे खर्च का ब्योरा चुनाव आयोग को देना होता है. निश्चित सीमा से ज्यादा खर्च करने पर नामांकन रद्द हो जाता है.
भारत में लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं. हर साल कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होते रहते हैं. इसके अलावा स्थानीय निकायों के चुनाव भी होते हैं. हर चुनाव का अपना महत्व है. हर चुनाव में क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से चुनाव खर्च की सीमा तय होती है. किस चुनाव में कितनी होती है चुनाव खर्च की सीमा, आइए जानते हैं.