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क्या समाज में लड़के पूरी तरह सुरक्षित हैं?

९ मई २०१८

भारत में लड़कियों के साथ यौन दुर्व्यवहार के कई मामले सामने आते हैं. लेकिन लड़कों के साथ होने वाले यौन अपराधों को लेकर कभी आवाज नहीं उठती. तो क्या यह माना जा सकता है कि लड़कों के साथ यौन अपराध की घटनाएं ही नहीं होती.

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Protest gegen sexuelle Gewalt in Indien
तस्वीर: Reuters/R. de Chowdhuri

मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती एक 14 साल के लड़के ने अपनी मां को बताया कि कैसे उसका बलात्कार किया गया. लड़के के माता-पिता और पुलिस के मुताबिक इस घटना के बाद लड़के ने चूहे मारने की दवा खाकर अपनी जान दे दी. लेकिन आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी. मुंबई पुलिस कहती है कि अगर उसे इस मामले से जुड़े कोई भी सुराग मिलेंगे तो वह मामले की पड़ताल फिर से शुरू करेगी. लेकिन फिलहाल तो मामला ठंडे बस्ते में चला गया है. लेकिन ये कहानी किसी एक पीड़ित नहीं है, बल्कि समाज में ऐसे कई लड़के हैं जिनके साथ हुए यौन अपराधों को इसलिए अपराध नहीं माना जाता क्योंकि वह लड़के हैं. 

पिछले दिनों भारत में बलात्कार को लेकर नया कानून बना है. नए कानून के मुताबिक 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के बलात्कार की सजा फांसी कर दी गई है. लेकिन अध्यादेश के जरिए बने इस कानून में लड़कों का जिक्र भी नहीं है. हालांकि यह भी सच है कि देश में लड़कियां, लड़कों के मुकाबले यौन उत्पीड़न का शिकार अधिक होती हैं. अध्यादेश के जरिए बना यह कानून छह महीने के भीतर समाप्त हो जाएगा. इसलिए इस कानून को कायम रखने के लिए सरकार को संसदीय प्रक्रिया से गुजरना होगा. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक सरकार की योजना इस कानून के दायरे को और भी विस्तृत करने की है. और, जो कानून लड़कियों के लिए लागू होता है, वह लड़कों पर भी लागू होगा. लेकिन सरकार के प्रवक्ता इस मसले पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं.

लड़कों का यौन शोषण

वर्तमान में किसी लड़के के साथ बलात्कार की न्यूनतम सजा 10 साल कैद है. लेकिन 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ यौन अपराध की न्यूनतम सजा 20 साल कैद है. अपना बेटा गवां चुके पिता इस तरह के भेदभाव पर सवाल उठाते हैं. बच्चे की मां भी अपने बेटे की हालत को याद कर सिहर उठती है और आखिर में न्याय की बात करती हैं. रॉयटर्स ने बच्चे की मेडिकल रिपोर्ट की पड़ताल की जिसके मुताबिक वह बच्चा सोडोमी का शिकार हुआ था.

पुलिस की भूमिका

बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों पर काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता इनसिया दरीवाला लड़कों के साथ होने वाले यौन अपराधों में पुलिस की भूमिका को भी असंवेदनशील मानती हैं. दरीवाला के मुताबिक, "आमतौर पर लड़कों के साथ यौन अपराधों की घटनाओं पर अविश्वास जताया जाता है. साथ ही कुछ मामलों में तो यह भी मान लिया जाता है कि उन्होंने अपने साथ हुई सेक्स संबंधी घटना का आनंद लिया होगा." हालांकि पुलिस ऐसा नहीं मानती. रेप पीड़ित लड़के के मामले की जांच कर रही मुंबई पुलिस कहती है कि अधिकारियों को खास तौर पर ट्रेनिंग दी जा रही है. ताकि वे इन मामलों में पूरी संवेदनशीलता बरतें. 

Afghanistan - Afghanischer Junge der als Sex-Sklave Missbraucht wurde
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Karimi

सरकार की कोशिश

बच्चों से जुड़ी नीतियों में सलाह देने वाली सरकारी संस्था राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष स्तुति कक्कड़ कहती हैं कि सरकार भी पुलिस अधिकारियों के लिए ऐसे वर्कशॉप चलाती हैं. साल 2007 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से कराए सर्वे में करीब 12,447 बच्चों को शामिल किया गया था. इस सर्वे मुताबिक करीब आधे से अधिक बच्चे कभी न कभी यौन उत्पीड़न का शिकार हुए है. इसमें भी यौन उत्पीड़न का शिकार होने वाले करीब 53 फीसदी बच्चे लड़के हैं. दिल्ली के लिए आंकड़ा 60 फीसदी के लगभग था.

हैरानी की बात है कि सरकार ने इसके बाद ऐसा कोई भी सर्वे नहीं कराया. पुलिस कहती है कि कई मामलों मे परिवारों को समलैंगिकता की खबरें सामने आने का भी डर सताता है. हालांकि तमाम मसलों के बीच हाल में सरकार ने लड़कों के साथ होने वाले यौन अपराधों से जुड़ी स्टडी कराने के आदेश दिए हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने अपने एक बयान में इसे गंभीर समस्या कहा था. 

आदमी की तरह आएं पेश

पुणे में रहने वाले एक 22 वर्षीय युवक ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि पांच साल की उम्र से ही लगातार एक व्यक्ति उसका रेप कर रहा था. लेकिन करीब एक साल पहले ही वह अपनी आपबीती मां-बाप को बता सका. क्योंकि उसे डर था कि कही उसे गलत न समझा जाए. फिलहाल एक गैर लाभकारी संस्था पीड़ित के साथ काम कर रही है. रिसर्चर मानते हैं कि अगर मां-बाप ऐसी घटनाओं की शिकायतें करेंगे तो उम्मीद है कि बच्चे मनोवैज्ञानिक परेशानियों से उबर सकेंगे. 

साइंस पत्रिका, इंडियन जनरल ऑफ साइकेट्री में इस तरह के व्यवहार की बात की गई है. पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में एक अन्य पीड़ित लड़के के पिता ने कहा, "उसका न तो हाइमन टूटा है और न ही उसका गर्भ ठहरा है. उसे एक आदमी की तरह व्यवहार करना चाहिए न कि डरपोक की तरह."

वरिष्ठ मनोचिकित्सक वैजयंती केएस सुब्रमण्यम कहती हैं, "देश के पितृसत्तामक ढांचे में लड़कों को कभी पीड़ित ही नहीं माना जाता. उनसे उम्मीद की जाती है कि वह अपना रास्ता बना ही लेंगे. और, यही सोच उनके मस्तिष्क पर बुरा असर डालती है."

कुछ पुलिस अधिकारी ये भी कहते हैं कि शिकायत दर्ज करते वक्त लिंग भेदभाव नहीं किया जाता. लेकिन इन मामलों में लोग घटना के बढ़ जाने के बाद पुलिस के पास आते हैं. लेकिन इसी यौन अपराध के चलते अपने बेटा खो चुके पिता मानते हैं कि वह पुलिस के पास पहले नहीं गए. वह कहते हैं कि मां-बाप को अपने बेटे के साथ होने वाले यौन-अपराधों के बारे में भी खुलाकर सामने आना चाहिए.   

एए/ओएसजे (रॉयटर्स)