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समाज

क्या वाकई मर्दों के लिए खतरनाक वक्त चल रहा है?

ईशा भाटिया सानन
४ अक्टूबर २०१८

भारत में महाराष्ट्र के गृह मंत्री को यकीन है कि नाना पाटेकर कुछ बुरा नहीं कर सकते, तो अमेरिका में ऐसा ही भरोसा राष्ट्रपति ट्रंप को अपने जज पर भी है. क्या रुतबे वाले पुरुष कभी कुछ गलत नहीं करते?

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USA Präsident Trump in Virginia
तस्वीर: picture alliance/Zuma/B. Cahn

मर्दों के लिए बेहद खतरनाक वक्त चल रहा है. ऐसा कहना है अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का. महिलाओं के लिए वक्त कैसा चल रहा है, इस पर तो उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन "युवा पुरुषों" के लिए उन्होंने काफी चिंता जताई. आधी अधूरी बात से अर्थ का अनर्थ हो जाता है, इसलिए आइए, पहले उनके शब्दों को ही साफ साफ पढ़ लेते हैं.

"30-35 साल तक आप प्रतिष्ठित काम करते हैं और फिर अचानक ही कोई आता है और कहता है कि आपने ये किया था या वो किया था और वो अपने साथ तीन गवाह भी ले आता है.. मैं अपनी पूरी जिंदगी यही सुनता आया हूं कि जब तक आप पर दोष साबित नहीं हो जाता, आप निर्दोष हैं लेकिन अब आप जब तक खुद को निर्दोष साबित नहीं कर देते हैं, आप गुनहगार हैं.. अमेरिका में युवा पुरुषों के लिए बहुत ही खतरनाक वक्त चल रहा है. आप निर्दोष हो कर भी दोषी करार दिए जा सकते हैं. हो सकता है कि आप जिंदगी भर 'परफेक्ट' रहे हों लेकिन कोई भी आ कर आप पर आरोप लगा सकता है."

जज का मामला

अब यह भी समझ लेते हैं कि ट्रंप ने किस संदर्भ में ये बातें कहीं. मामला अमेरिका के एक जज ब्रेट केवेनॉ से जुड़ा है. डॉनल्ड ट्रंप ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नामांकित किया था. लेकिन वे नियुक्त किए जाते, इससे पहले ही क्रिस्टीन फोर्ड नाम की एक महिला ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया. महिला के अनुसार ब्रेट केवेनॉ ने 80 के दशक में उनके साथ जोर जबरदस्ती की. उस समय वे दोनों हाई स्कूल में थे. इसके बाद दो और महिलाओं ने उन पर आरोप लगाए. केवेनॉ खुद को बेकसूर बताते हैं. उन्हें राष्ट्रपति का समर्थन भी हासिल है. ट्रंप का कहना है कि यह विपक्ष की साजिश है, नहीं तो किसी महिला को शिकायत करने में तीन दशक क्यों लग जाते.

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ईशा भाटिया सानन

मतलब यह हुआ कि अगर कोई पुरुष एक ऊंचे ओहदे तक पहुंच चुका है, समाज की नजरों में "इज्जत" कमा चुका है, तो वो कोई गलत काम नहीं कर सकता. और अगर कोई महिला सालों बाद अपने साथ हुई गलत हरकत के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत करती है, तो वो झूठ बोल रही है. वैसे आरोप लगाने वाली क्रिस्टीन फोर्ड का लाई डिटेक्टर टेस्ट भी किया जा चुका है. बहरहाल मामला अदालत में चल रहा है.

ग्रैब देम बाय द पुसी

डॉनल्ड ट्रंप के शब्द हैरान नहीं करते क्योंकि यह वही शख्स है जिसने कहा था "ग्रैब देम बाय द पुसी". अक्टूबर 2016 को अमेरिका के अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने ट्रंप का वीडियो अपनी वेबसाइट पर पोस्ट किया था. ट्रंप टीवी एंकर बिली बुश के साथ अपनी वैनिटी बस में एक टीवी शो की शूटिंग के लिए जा रहे थे. उनके कोट में माइक लगा था. उस दौरान ट्रंप की आवाज में कुछ ऐसे शब्द रिकॉर्ड हुए..

"वो शादीशुदा थी. मैंने उसके साथ हमबिस्तर होने की खूब कोशिश की. मैं उसे फर्नीचर खरीदवाने ले गया. उसने कहा, उसे कुछ फर्नीचर खरीदना है. मैंने कहा, आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि अच्छा फर्नीचर कहां मिलता है.. मैं खूबसूरत औरतों की तरफ खिंचा चला जाता हूं, मैं उन्हें चूमने लगता हूं. चुंबक की तरह. मुझसे रुका ही नहीं जाता.. अगर आप मशहूर हैं, तो वो आपको कुछ भी करने देती हैं. आप जो चाहें कर सकते हैं. ग्रैब देम बाय द पुसी."

ये रिकॉर्डिंग 2005 की थी जब ट्रंप सेलेब्रिटी होने के नाते टीवी पर काफी नजर आते थे. जाहिर है इसे चुनाव के मद्देनजर 2016 में रिलीज किया गया था. लेकिन राजनीतिक मंशा चाहे कुछ भी रही हो, ट्रंप की भाषा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. चुनाव सिर पर थे, इसलिए उन्होंने माफी भी मांगी थी लेकिन जो कहा, वह और भी शर्मनाक था. एक बार फिर ट्रंप के शब्द.. "ये एक निजी संवाद था, लॉकर रूम में होने वाला हंसी मजाक, जो कई साल पहले हुआ. बिल क्लिंटन ने गोल्फ कोर्स पर मुझसे इससे बदतर चीजें कहीं हैं, ये तो कुछ भी नहीं है. अगर किसी को बुरा लगा, तो उसके लिए मैं माफी मांगता हूं."

यानी बुरा लगने वाली बात तो नहीं है लेकिन "अगर" लग गया, तो सॉरी! ट्रंप की "लॉकर रूम" वाली बात को उनकी पत्नी मेलानिया ट्रंप ने कुछ दिन बाद सीएनएन को दिए इंटरव्यू में दोहराया भी. मेलानिया ने कहा कि उनके पति को शायद पता नहीं था कि माइक ऑन है. वो "बॉय टॉक" यानी लड़कपन वाली बातें कर रहे थे और टीवी एंकर ने उन्हें "गंदी बातें" करने के लिए उकसाया. क्या किसी के साथ जोर जबरदस्ती करना लड़कपन वाली बातें हैं? क्या माइक बंद होने पर इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल गलत नहीं कहलाएगा?

रुतबे वाले पुरुष

वही डॉनल्ड ट्रंप आज मर्दों के लिए बेहद खतरनाक वक्त की बात कर रहे हैं. कह रहे हैं कि प्रतिष्ठित पुरुषों का करियर आज खतरे में है. अमेरिका में #MeToo मूवमेंट के बाद से जितने "प्रतिष्ठित पुरुषों" के नाम सामने आए हैं, उन्हें देखते हुए क्या यौन पीड़ितों का समर्थन करना और भी ज्यादा जरूरी नहीं हो जाता?

बिल कॉस्बी, हार्वी वाइनस्टीन, वुडी एलन, केविन स्पेसी, मॉर्गन फ्रीमैन, अजीज अंसारी, रोमान पोलांस्की.. सूची काफी लंबी है. इन सब पर यौन उत्पीड़न के आरोप हैं. क्या इनका रुतबा इनकी हरकतों को उचित ठहरा सकता है?

तो फिर ट्रंप के शब्दों का क्या मतलब हुआ? क्या वे अतीत में किए गए अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिए ऐसा कह रहे हैं? क्योंकि यौन उत्पीड़न के आरोप तो उन पर भी खूब लगे हैं. ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि अमेरिका के लिए जितना काम उन्होंने किया है, इतिहास में शायद ही किसी राष्ट्रपति ने किया हो. उनके इस दावे पर लोग ठहाके लगा कर हंसे भी थे. इसकी जगह अगर वे कहते कि अमेरिका में जितनी महिलाओं का उत्पीड़न उन्होंने किया है, उतना इतिहास में शायद ही किसी और अमेरिकी राष्ट्रपति ने किया हो, तो शायद लोग उन पर हंसते नहीं.

अमेरिका हो या भारत, लड़ाई वही है. कहीं तनुश्री दत्ता से पूछा जाता है कि दस साल तक कहां थीं, तो कहीं क्रिस्टीन फोर्ड से, कि 35 साल बाद क्यों नींद से जगीं. कहीं भी उन्हें इस काम के लिए सराहा नहीं जाता. टीवी पर पूरी दुनिया के सामने खुद के साथ हुई घटनाओं को दोहराने की हिम्मत जुटाने के लिए उन्हें शाबाशी नहीं दी जाती, बल्कि उन्हीं के चरित्र पर सवाल किए जाते हैं. और इस बीच कुछ लोगों को ये डर सताने लगता है कि अगर महिलाएं यूं ही गड़े मुर्दे उखाड़ने लगीं, तो फिर पुरुषों का क्या होगा. इसी घबराहट में वे कह डालते हैं कि मर्दों के लिए बेहद खतरनाक वक्त चल रहा है.

 

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