क्या फिर से छपेगी हिटलर की आत्मकथा
१४ दिसम्बर २०१३नाजी काल में यहूदियों के साथ हुए अत्याचारों को दुनिया कभी भी भुला नहीं सकेगी. कहते हैं हिटलर की यहूदी विरोधी सोच को समझना हो तो उसकी लिखी किताब 'माइन कांप्फ' (मेरा संघर्ष) को पढ़ा जा सकता है. 1920 के दशक में हिटलर ने म्यूनिख की एक जेल में अपनी आत्मकथा के रूप में इसे लिखा. यहूदियों के सम्मान में जर्मन सरकार ने इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन 2015 में इस प्रतिबंध की सीमा खत्म हो रही है.
सरकार का रुख
ऐसे में ये अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या जर्मनी में एक बार फिर हिटलर की लिखी किताब छपा करेगी. लेकिन दक्षिणी प्रांत बवेरिया ने अपना रुख साफ करते हुए कहा है कि 2015 के बाद भी किताब पर रोक जारी रहेगी. क्योंकि किताब म्यूनिख में लिखी गयी और यह बवेरिया प्रांत का हिस्सा है, इसलिए किताब का कॉपीराइट भी बवेरिया सरकार के ही पास है. सरकार ने कहा है कि हिटलर की यहूदी विरोधी किताब छापना अपराध है और यदि देश में कोई भी ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ कदम उठाया जाएगा.
विदेशों में 'माइन कांप्फ' पर कोई रोक नहीं है, लेकिन किताब के शुरुआती पन्नों में यहूदियों के साथ हुई त्रासदियों का ब्योरा भी दिया जाता है ताकि इस संवेदनशील मुद्दे को समझा जा सके. रोक के बावजूद जर्मनी में भी किताब की कई प्रतियां और अनुवाद मौजूद हैं.
नई किताब पर बवाल
म्यूनिख का इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्परेरी हिस्टरी 2016 तक किताब की एक नई प्रति पूरी करना चाहता है, जिसमें नीचे फुटनोट में चीजों को समझाया जाएगा. मिसाल के तौर पर यदि किताब में किसी जगह हिटलर ने अपनी किसी एक नीति को समझाया है, तो नीचे यह विस्तार में बताया जाएगा कि इस नीति के लागू होने से यहूदियों को कितना नुकसान उठाना पड़ा.
इंस्टीट्यूट का मकसद है लोगों तक यह संदेश पहुंचाना कि नाजी काल में कितना कुछ गलत हुआ. लेकिन सरकार को डर है कि इससे हिटलर का प्रचार भी हो सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए बवेरिया सरकार ने इस किताब के लिए फंड देने से इनकार कर दिया है. हालांकि इंस्टीट्यूट का कहना है कि सरकार से राशि मिले बगैर भी वह प्रोजेक्ट पूरा करेगा.
कानूनी दावपेंच
इस पर बवेरिया के गृह मंत्री ने कार्रवाई करने की चेतावनी देते हुए कहा है, "हम राजद्रोह का मुकदमा करेंगे और सबूत के तौर पर उनके काम को जब्त कर लेंगे."
वहीं कानून मामलों के जानकार मिषाएल रोजेनथाल का मानना है कि ऐसा नहीं किया जा सकता, खासतौर से अगर किताब के शुरू में नोट दिया गया हो." उनका मानना है कि किताब छापने का मतलब यह नहीं समझा जा सकता कि हिंसक भावनाओं का प्रचार किया जा रहा है.
दरअसल जर्मनी में लेखक की मृत्यु के 70 साल बाद किताब का कॉपीराइट खत्म हो जाता है और किसी के भी पास उसे छापने का हक होता है. हिटलर ने अप्रैल 1945 में आत्महत्या की थी.
एसएफ/आईबी (डीपीए/रॉयटर्स)