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क्या धर्म से हो सकेगी धरती की रक्षा?

१ नवम्बर २०१७

ज्यादातर लोग किसी ना किसी धर्म से या तो जुड़े हैं या फिर उससे प्रभावित हैं. ऐसे में, सवाल पूछा जा रहा है कि क्या धार्मिक संगठन पर्यावरण की रक्षा में अहम भूमिका निभा सकते हैं. राजनीति अब तक ऐसा करने में नाकाम रही है.

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Sikh Tempel in Indien World Food Day
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

दुनिया भर के गुरुद्वारों में चलने वाले लंगर हर किसी को बिना उसकी धर्म या जाति पूछे मुफ्त में खाना खिलाते हैं. लेकिन इन लंगरों में जो खाना परोसा जाता है उनमें अकसर वे चीजें होती हैं जिन्हें उगाने में कीटनाशकों का इस्तेमाल होता है. ऐसे में ये कीटनाशक नदियों और नालों में मिल कर उसे प्रदूषित करते हैं.

Sikh Tempel in Indien
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

2015 में सिख पर्यावरणवादी समूहों के आग्रह पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर ने अपने लंगर के लिए जैविक अनाज का इस्तेमाल शुरू किया ताकि पर्यावरण पर उसका असर कम से कम हो. स्वर्ण मंदिर में रोजाना एक लाख लोगों को खाना खिलाया जाता है. सिख पर्यावरणवादी गुट इको सिख के दक्षिण एशिया प्रबंधक रवनीत सिंह कहते हैं, "हमारे धर्मग्रंथ में ऐसे कई संकेत मिलते हैं जिनमें हमारी धरती की रक्षा करने और समाज में हर किसी की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए काम करने की बात कही गयी है. धरती पर सबसे असुरक्षित खुद धरती है, यहां के जंगल, हवा, पानी मिट्टी सब असुरक्षित हैं."

दुनिया के ज्यादातर धर्म प्रकृति को पवित्र मानते हैं और धार्मिक नेता अब अकसर इसकी रक्षा के लिए सामने आ रहे हैं. इनमें से कई तो पर्यावरण में बदलाव को रोकने के लिए भी काम कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि धर्म लोगों की भावनाओं और निजी जिंदगी को जोड़ता है, ऐसे में इसकी मदद से लोगों को पर्यावरण में बदलाव रोकने के लिए एकजुट किया जा सकता है. इस काम में राजनीति अब तक असफल रही है.

धार्मिक समूहों के पास अरबों खरबों की संपत्ति भी है जो पर्यावरण के लिए उनके प्रयासों में काम आ सकती है. दुनिया भर में 6 अरब से ज्यादा लोग किसी ना किसी धर्म से जुड़े हैं और उनमें ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है जो किसी ना किसी जरिये से पृथ्वी के बेहतरी के लिए काम करना चाहते हैं. ब्रिटेन में जहां इकोफ्रेंडली मस्जिद बनायी गयी है, वहीं भारत में नदियों की सफाई हो रही है और अफ्रीकी देशों में धार्मिक स्थलों पर पेड़ लगाये जा रहे हैं.

पहले भावना

2015 में पेरिस क्लाइमेट चेंज डील पर सहमत हुए करीब 200 देशों ने धरती के औसत तापमान में बढ़ोत्तरी को औद्योगिक युग से पहले की तुलना में 2 डिग्री से नीचे रखने पर सहमति जतायी थी. विश्व मौसम संगठन के मुताबिक धरती की सतह का तापमान पहले से ही औद्योगिक युग के तापमान से औसतन 1.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है. इसके बाद लगातार आती बाढ़, तूफान और दूसरी प्राकृतिक आपदाओं ने कई धार्मिक संगठनों को इस बात के लिए प्रेरित किया है कि वे पर्यावरण की रक्षा के बारे में आवाज उठायें. पोप फ्रांसिस और ऑर्थोडॉक्स चर्च के नेता पैट्रियार्क ब्रोथोलोमेव ने दुनिया के नेताओं से जलवायु परिवर्तन पर सामूहिक प्रयास करने का आग्रह किया. उन्होने कहा कि धरती की दशा बिगड़ रही है और कमजोर लोगों पर इसका सबसे पहले असर होगा.

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की पर्यावरण टीम में शामिल सिंथिया शार्फ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "वास्तव में लोगों को प्रेरणा तथ्यों से नहीं बल्कि भावनाओं से मिलती है. यह बहुत सामान्य बात है जो सब जगह लागू होती है. धार्मिक समुदाय जलवायु परिवर्तन से जुड़े कुछ सवालों का हल निकाल सकते हैं, जैसे कि न्याय." कई धर्म पहले से ही पर्यावरण से जुड़ी आदतों को अपने प्रमुख मूल्यों के रूप में बताते आ रहे हैं जैसे कि कम से कम सामान के साथ जीवन गुजारना, पानी बचाना या फिर मांस से दूर रहना.

उदाहरण के लिए भारत में जैन धर्म को मानने वाले चार करोड़ लोग हैं. जैन धर्म जानवरों को मारने से रोकता है और शाकाहारी जीवनशैली का प्रचार करता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने में यह बहुत कारगर हो सकता है.

पवित्र निवेश

Clean India Campaign
तस्वीर: UNI

दुनिया भर में धार्मिक संस्थाएं हर साल खरबों डॉलर के निवेश फंड का संचालन करती हैं. ऐतिहासिक रूप से धार्मिक संस्थाएं शराब, हथियार और तंबाकू जैसी चीजों में अपना धन डालने से परहेज करती हैं और अब इसमें जीवाश्म ईँधन भी शामिल हो गया है जो पर्यावण में बदलाव का एक बड़ा कारण है. पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका जैसे देशों के 40 रोमन कैथलिक गुटों ने कहा कि वे अपना निवेश जीवाश्म ईंधन से हटा कर हरित ऊर्जा में लगा रहे हैं. इसके अलावा धार्मिक समूह अक्षय ऊर्जा, टिकाऊ कृषि और वन की रक्षा की परियोजनाओं को निवेश के लिए ढूंढ रहे हैं. चर्च ऑफ स्वीडन के सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के प्रमुख गुनेला हाह्न कहते हैं, "जंगलों की कटाई जीवाश्म ईंधन में निवेश हटाने से नहीं रुक रही है, आपके शेयर कोई और खरीद लेगा. हम समाधान में निवेश करना चाहते हैं."

स्विट्जरलैंड के एक छोटे से शहर जुग में दुनिया की आठ बड़े धर्मों के नेता और निवेशक जमा हो रहे हैं. इन धर्मों में बौद्ध, ईसाई और इस्लाम भी शामिल है और इन लोगों ने अपनी प्राथमिकताओं की सूची तैयार की है जिसके आधार पर वे निवेश करेंगे. इन दिशानिर्देशों में रिसाइकिल परियोजनाओं और कचरा घटाने की परियोजनाओं को समर्थन, स्वच्छ जल की उपलब्धता और शिक्षा के लिए काम करने वाली कंपनियों में निवेश करना शामिल है. इसके साथ ही उन कंपनियों को निवेश के लिए चुनने की बात है जिनका पर्यावरण के लिहाज से रिकॉर्ड अच्छा है.

दुनिया भर में जमीनी स्तर पर काम कर रहे धार्मिक संगठन भी हजारों परियोजनाओं में धार्मिक शिक्षा को शामिल करा रहे हैं ताकि लोगों और प्रकृति को जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से बचाया जा सके. कई हिंदू समूह भारत में गंगा और यमुना नदी की सफाई के लिए काम कर रहे हैं. इसी तरह अफ्रीकी देशों में कम उर्वर जमीन पर खेती करने वाले मुसलमानों का ऐसी तकनीकों से परिचय कराया जा रहा है जिससे कि यहां खेती होती रह सके. बड़ी संख्या में मंदिर, मस्जिद और सिनोगॉग अक्षय उर्जा को अपना रहे हैं और प्लास्टिक की चीजों से मुक्ति पा रहे हैं. चीन में ताओ धर्म के आधे से ज्यादा मंदिरों ने अक्षय ऊर्जा को अपना लिया है. धार्मिक संगठनों के पास पर्यावरण का ख्याल रखने के लिए बड़ी संख्या में स्कूल, अस्पताल, यूनिवर्सिटी, लाखों इमारतें, पर्वत, नदियां और शहर हैं. इन संगठनों का लोगों पर प्रभाव है और इसका इस्तेमाल से अच्छे नतीजों की उम्मीद की जा सकती है.

एनआर/एके (रॉयटर्स)