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क्या गंगा के लिए भगीरथ बन पाएंगे मोदी

७ अप्रैल २०१७

भारत सरकार तीन अरब डॉलर खर्च कर गंगा नदी को साफ करना चाहती है. लेकिन योजना की सुस्त रफ्तार को देख अब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हस्तक्षेप करना पड़ा है.

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Narendra Modi
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Schmidt

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन का ज्यादातर पैसा आवंटित हो चुका है, लेकिन उसका ज्यादातर हिस्सा अभी तक खर्च भी नहीं हुआ है. मिशन से जुड़े अधिकारी भी मानने लगे हैं कि 2018 की पहली समय सीमा तक निर्धारित काम खत्म करना अंसभव सा है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के एक अधिकारी ने कहा कि अभी तक कई जगहों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट कमिशन नहीं हुए हैं.

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत गंगा को तीन सर्किलों में बांटा गया है. जनवरी में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिशन के काम काज की समीक्षा की. इस दौरान पता चला कि उत्तर प्रदेश के कई शहर नदी को बुरी तरह दूषित कर रहे हैं. लेकिन अब तक वहां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स को लेकर कोई ठोस काम नहीं हुआ है. राज्य प्रशासन नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स के लिए जमीन तक नहीं खोज पाया. जटिल टेंडर प्रक्रिया के चलते भी कई ठेकेदार भाग गए.

यूपी में कुल 456 ऐसे उद्योग हैं जो गंगा को दूषित कर रहे हैं. लेकिन अब तक इनमें से सिर्फ 14 को बंद किया गया है. घाटों को आधुनिक बनाने का काम भी समय सीमा से पीछे चल रहा है. योजना के तहत 182 घाटों का पुन: उद्धार करना था, लेकिन सिर्फ 50 पर ही काम शुरू हुआ है. 118 श्मशानों में से सिर्फ 15 को आधुनिक बनाया गया है.

गंगा को साफ करने के लिए सरकार ने 3.06 अरब डॉलर का फंड बनाया है. लेकिन अप्रैल 2015 से लेकर मार्च 2017 तक सिर्फ 20.5 करोड़ डॉलर ही खर्च हुए हैं. रॉयटर्स ने जब जल संसाधन मंत्री उमा भारती से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने टिप्पणी से इनकार कर दिया. गंगा से जुड़े एक छोटे पर्यावरण संगठन के प्रमुख राकेश जायसवाल नाउम्मीद होने लगे हैं. जायसवाल कहते हैं, "जमीन पर कुछ नहीं हुआ है."

मिशन के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक प्रोजेक्ट की सुस्त रफ्तार को देखने के बाद प्रधानमंत्री ने अब इसे अपने हाथ में लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 के चुनावों से पहले इस काम को पूरा करना चाहते है. इसके जरिये वो संदेश देना चाहते हैं कि उनकी सरकार काम के प्रति पूरी तरह समर्पित है और वह बड़े से बड़ा काम कर सकती है. यही वजह है कि प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नृपेंद्र मिश्रा, अब हर महीने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अधिकारियों से मुलाकात कर रहे हैं.

हिमालय से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक जाने वाली गंगा नदी 40 करोड़ भारतीयों के लिए जीवन रेखा जैसी है. लेकिन उसके किनारे बसे 118 शहर हर दिन नदी में 480 करोड़ लीटर सीवेज डालते हैं. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की मौजूदा क्षमता फिलहाल 101 करोड़ लीटर प्रतिदिन है. शहरों के सीवेज से ज्यादा नदी को औद्योगिक कचरा गंदा कर रहा है. मिशन के तहत 760 औद्योगिक फैक्ट्रियों की पहचान की गई है. ये नदी को बड़े पैमाने पर दूषित कर रही हैं. इनमें से ज्यादा फैक्ट्रिया उत्तर प्रदेश में हैं.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मोदी सरकार अब तक 93.3 करोड़ लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स को हरी झंडी दे चुके हैं. इनमें से 16 करोड़ लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले प्लांट तैयार भी हो चुके हैं. लेकिन वे चालू हैं या नहीं, इसकी जानकारी नहीं मिली है.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने के बाद, माना जा रहा है कि गंगा सफाई अभियान में तेजी आएगी. यूपी के नए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद गंगा की सफाई को लेकर अभियान चला चुके हैं. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा अभियान के डिप्टी डायरेक्टर सीवी धर्म राव कहते हैं, "आप बेहतरी देखेंगे. हमने राज्यों से प्रक्रिया को तेज करने को कहा है और पैसे की कोई समस्या नहीं है."

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ओएसजे/आरपी (रॉयटर्स)