क्या इटली की जनता करेगी संसद को छोटा करने का फैसला
२१ सितम्बर २०२०यूरोप के देशों में काफी समय से प्रशासनिक खर्चों और उन्हें घटाने के उपायों पर चर्चा होती रही है. अब मामला संसद के आकार में कटौती तक पहुंच गया है. इटली में इस समय संसद के दोनों सदनों के आकार को घटाने पर मतदाताओं की राय ली जा रही है. भारत सहित कई दूसरी संसदों की तरह इटली के संसद के भी दो सदन है. प्रतिनिधि सभा में 630 सदस्य हैं और ऊपरी सदन सीनेट में 315 सदस्य. इसके अलावा सारे पूर्व राष्ट्रपति सीनेट के सदस्य होते हैं और वे पांच गणमान्यों को आजीवन सीनेटर मनोनीत कर सकते हैं.
इटली की मौजूदा गठबंधन सरकार में समाजवादी पार्टी पीडी और हाल ही में बनी पॉपुलिस्ट पांच सितारा पार्टी शामिल हैं. संसद को छोटा और प्रभावकारी बनाना पांच सितारा पार्टी की मांग रही है. इससे पहले पीडी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2016 में संवैधानिक सुधारों का मसौदा पेश किया था जिसमें संसद का आकार घटाने के साथ सीनेट के अधिकारों में कटौती का भी प्रावधान था. लेकिन एक जनमत संग्रह में 60 फीसदी मतदाताओं ने उसे नकार दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री मातेयो रेंसी को इस्तीफा देना पड़ा था.
एक तिहाई सांसद कम
2019 में पीडी और पांच सितारा पार्टी के गठबंधन ने सिर्फ संसद के आकार में एक तिहाई की कमी का प्रस्ताव दिया. यह प्रस्ताव कुछ दूसरी प्रमुख पार्टियों के समर्थन से पास हो गया. इस प्रस्ताव के जरिए प्रति 100,000 निवासियों पर सांसदों की संख्या 1.6 से घटाकर 1 कर दी गई. जर्मनी में ये अनुपात 0.9, फ्रांस में 1.4 और ब्रिटेन में 2.1 है. अब इटली के मतदाता जनमत संग्रह के माध्यम से अपनी राय जाहिर कर रहे हैं.
जिस विधेयक पर फैसला हो रहा है, उसमें प्रतिनिधि सभा के सदस्यों की संख्या 630 के बदले 400 और सीनेट की सदस्य संख्या 315 से 200 करने का प्रस्ताव है. प्रस्ताव के समर्थकों का कहना है कि इससे संसद के काम में बेहतरी होगी और धन की बचत भी होगी. पांच सितारा पार्टी का कहना है कि अगले दस साल में संसद को छोटा करने से 1 अरब यूरो की बचत होगी यानि हर साल करीब 10 करोड़ यूरो. प्रस्ताव के विरोधियों का मानना है कि बचत तो होगी लेकिन 10 करोड़ यूरो नहीं बल्कि अधिकतम 5 करोड़ यूरो.
सुधारों की प्रक्रिया पर मतभेद
बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो संसद का आकार घटाने का समर्थन तो कर रहे हैं लेकिन उसके लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है उसका समर्थन नहीं करते. वे इटली की संसदीय व्यवस्था में आमूल सुधार चाहते हैं. आलोचकों के अनुसार दोनों सदनों के निर्वाचन की प्रक्रिया और उनके अधिकारों में बदलाव किया जाना चाहिए. सचमुच इटली में दोनों सदनों को चुनने की प्रक्रिया और उनके अधिकार एक जैसे हैं. फर्क सिर्फ ये है कि दोनों सदनों का सदस्य बनने और मतदान करने की आयु अलग अलग है.
इटली की संसद के दोनों सदनों के अधिकार एक जैसे हैं. विधेयक तभी पास हो सकते हैं जब दूसरे सदन ने पहले सदन के प्रस्ताव को उसी रूप में पास किया हो. अगर कोई विधेयक एक सदन में संशोधनों के साथ पास किया जाता है और दूसरे सदन में उसमें नए संशोधन किए जाएं तो उसे फिर से पहले सदन का अनुमोदन जरूरी होता है. और इस प्रक्रिया में विधेयकों को कानून बनने में काफी समय लगता है. इसलिए सरकारें आम तौर पर अध्यादेशों से काम चलाती हैं.
जर्मनी में भी बहस
जर्मनी में भी संसद को छोटा करने पर बहस हो रही है. लेकिन जर्मनी की समस्या दूसरी है. संसद की सीटें तो तय हैं. 299 सदस्यों का चुनाव भारत की तरह चुनाव क्षेत्रों में सीधे मतदान से होता है. इतनी ही सीटें पार्टियों को मिलने वाले दूसरे वोट से तय होती है, लेकिन संसद की संरचना दूसरे वोट में पार्टियों को मिले प्रतिशत पर निर्भर करती है. चुनाव को प्रतिनिधित्व वाला बनाने के लिए यहां सीधे जीती गई सीटों के अलावा अतिरिक्त सीटें देने का प्रावधान है. लेकिन पिछले सालों में नई पार्टियों के आने से अतिरिक्त सीटों की संख्या बढ़ती गई है और इस समय जर्मन संसद में 598 के बदले 709 सीटें हैं.
चुनाव की इस प्रक्रिया की दिक्कत ये है कि मतदान से पहले किसी को पता नहीं होता कि संसद के कुल कितने सदस्य होंगे. ये सब देश के हर प्रांत में भाग लेने वाली पार्टियों, उन्हें मिलने वाले वोटों और उस राज्य में सीधे जीतने वाले सीटों पर निर्भर करता है. यहां हर संसद के चुने जाने के साथ न सिर्फ खर्च बढ़ जाता है बल्कि नए सांसदों के लिए दफ्तर, सहायक कर्मी और सुरक्षा जैसी पूरी व्यवस्था करने का बोझ भी होता है. लेकिन यही अतिरिक्त सीटें कई बार ये तय करती हैं कि सरकार किस पार्टी की बनेगी, इसलिए राजनीतिक दलों का इसे बदलने पर सहमत होना आसान नहीं है.
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