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कहीं आपके बच्चे को एडीएचस तो नहीं

५ अप्रैल २०१६

एडीएचस बच्चों में होने वाला एक मनोरोग है और हर क्लासरूम में इसकी एक मिसाल जरूर मिलती है. इस बीमारी से गुजर रहे बच्चे क्लास में ठीक से मन नहीं लगा पाते और माता पिता को भी अक्सर उनकी दिक्कत समझ नहीं आती.

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तस्वीर: Chris Hondros/Getty Images

शुरुआत एक साल पहले हुई. निकलास को स्कूल में मुश्किल होने लगी और मुश्किलें लगातार बढ़ती गई. वह स्कूल में ध्यान नहीं दे पाता, उसकी सोच हमेशा कहीं और होती और वह इतना बेकल रहता कि अक्सर अपनी कुर्सी से नीचे गिर जाता. शिक्षकों के लिए वह पढ़ाई में बाधा डालने वाला छात्र था. उनकी प्रतिक्रिया थी, उसे सजा देना. यह तब तक चलता रहा है जब एक दिन अचानक निकलास बेहोश हो गया और स्कूल को मेडिकल मदद लेनी पड़ी. वह बताता है, "मेरे स्कूल के शिक्षकों ने मेरे साथ कतई अच्छा बर्ताव नहीं किया. हर दिन मेरी नोटबुक में कुछ न कुछ बुरी टिप्पणी लिखी होती कि निकलास ने पढ़ाई में बाधा डाली, कि वह पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता है और ये हर दिन. मेरी स्कूल डायरी सिर्फ लाल इंक की टिप्पणियों से भरी है."

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एडीएचएस पीड़ित व्यक्ति एक अलग ही सपनों की दुनिया में जीता है.तस्वीर: Fotolia

बच्चों की सपनों की दुनिया

समस्या की जड़ थी एडीएचएस यानि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी सिंड्रोम. इससे पीड़ित छात्रों को अपने विचारों को सिलसिलेवार ढंग से सजाने में कठिनाई होती है. निकलास भी हमेशा अपनी सपनों की दुनिया में खोया रहता. क्लास में टीजर क्या बोल रहे हैं, इस पर ध्यान देने के बदले वह रोमांचक अनुभवों और रहस्यात्मक कथाओं में खोया रहता. एडीएचएस से पीड़ित बच्चों के लिए हकीकत से ज्यादा दिलचस्प कल्पनालोक होता है. निकलास बताता है, "ज्यादातर मैं अपनी सोच के साथ कहीं और होता हूं, जहां मैं आग उगल सकूं या दूसरे चमत्कार कर सकूं. असली दुनिया तो कतई नहीं."

माता-पिता और टीचरों की जिम्मेदारी

बाल और किशोर मनोचिकित्सक प्रोफेसर मिषाएल शुल्टे मार्कवोर्ट ने निकलास का इलाज किया. वे मरीजों के दिमाग के अंदर झांकते हैं. वे बताते हैं, "मेरे विचार में एडीएचएस से पीड़ित मरीज के नजरिए से दुनिया अत्यंत रोमांचक और दिलचस्प उत्तेजना से भरी है. वे एकदम चौकन्ने होते हैं और एक आग से दूसरी आग में कूदते रहते हैं, वे कुछ भी पूरा नहीं कर सकते और किसी काम को शांति में अंत तक नहीं कर सकते."

एडीएचएस सिर्फ इससे पीड़ित बच्चों के लिए ही बोझ नहीं होता. उनके माता-पिता और टीचर भी बच्चे के दिखने वाले व्यवहार से परेशान रहते हैं. लेकिन इस पर काबू पाने के रास्ते भी हैं. प्रोफेसर मार्कवोर्ट का कहना है, "एडीएचएस को डील करने का पहला कदम है उसके बारे जानना. माता-पिता को पता होना चाहिए कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है. शिक्षकों को भी. जरूरत होती है कि बच्चों को गाइड किया जाए, उसके दिन को एक संरचना दी जाए."

दवाओं से इलाज मुमकिन

अपने खाली समय में निकलास अपनी अतिरिक्त ऊर्जा से छुटकारा पा सकता है, खेलकूद के जरिए उसका इस्तेमाल कर सकता है. हरकत में रहने के उतावलेपन को रोक कर वह स्कूल में शांत रहता है. दवाएं विचारों को सजाने में उसकी मदद करती हैं जिससे वह अपना ध्यान क्लास में पढ़ाई पर लगा सकता है. चिकित्सीय देखभाल और स्कूल बदलने से वह अपनी मुश्किलों से बेहतर तरीके से निबट पा रहा है, "ऐसी चीजें भी हैं जो मैं पूरे मन के साथ करता हूं. मसलन फुटबॉल के खेल के दौरान मुझे पूरी तरह एकाग्र रहना होता है. वियोला बजाते समय या फिर फिल्म देखते समय भी."

पहली नजर में कुछ भी ऐसा नहीं है जिससे लगे कि निकोलास एडीएचएस से पीड़ित है. वह संगीत बजाता है, अच्छा स्टोरीटेलर है और उसमें कई और प्रतिभाएं भी हैं. एक युवा हीरो जो सपनों की दुनिया से असली दुनिया में लौटने में कामयाब रहा है. एक दुनिया जो उसके लिए अभिशाप भी थी और आसरा भी.

एमजे/आईबी