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क्या अमेरिका अब भी एक लोकतंत्र है?

४ नवम्बर २०१८

जिन देशों में लोकतंत्र है वहां मुद्दों पर और जहां लोकतंत्र नहीं वहां लोकतंत्र के लिए लोग चुनाव में वोट डालते हैं. दुनिया में लोकतंत्र का डंका पीटने वाले अमेरिका के मध्यावधि चुनाव में देश के लोकतंत्र पर ही बहस छिड़ी है.

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USA Flüchtlinge auf dem Weg in die USA l Präsident Trump
तस्वीर: picture alliance/newscom/K. Dietsch

जिन देशों में कम आजादी है, वहां चिंता उम्मीदवार या मुद्दे की नहीं बल्कि मुक्त और निष्पक्ष चुनाव की होती है और कई बार वोट के अधिकार की भी. क्या अमेरिका में भी ऐसा है? 

अमेरिकी लोग इन दिनों संसद के मध्यावधि चुनाव में अपनी पसंद तय करने में जुटे हैं. उनके सामने जलवायु परिवर्तन और प्रवासन नीति जैसे मुद्दे हैं जो दोनों प्रमुख पार्टियों को अलग करते हैं. हालांकि नागरिक अधिकार युग (सिविल राइट्स एरा) के बाद के दौर में लोकतंत्र का मुद्दा भी अमेरिकी चुनाव में कुछ हद तक बना हुआ है.

यूरोप और उत्तर अमेरिका के कई देशों समेत स्थापित लोकतांत्रिक देशों में लोकतंत्र का मतलब एक आर्थिक कार्यक्रम, विदेश नीति की दिशा और वैवाहिक समानता या पुलिस के रुख जैसे घरेलू मुद्दों पर चुनाव है.

इससे उलट जिन देशों में लोकतंत्र ठीक से जड़ नहीं जमा सका या फिर समय के साथ कमजोर पड़ गया वहां चुनाव का मतलब अलग है. पूर्व सोवियत संघ के देश, एशिया, मध्यपूर्व या फिर दूसरे कई देशों के लिए चुनाव का मतलब कुछ और ही है. इन देशों के ज्यादातर चुनावों में सत्ताधारी पार्टियां अभिव्यक्ति की आजादी और सभाओं को सीमित करने और उस विपक्षी पार्टी या फिर गठबंधन के खिलाफ निष्पक्ष चुनाव को रोकने में जुटी होती जिनका प्राथमिक अभियान खुद लोकतंत्र होता है.

2018 के अमेरिकी चुनाव भी इन्हीं कम लोकतांत्रिक देशों के चुनाव की तरह दिखने लगे हैं. मिसाल के तौर पर जॉर्जिया के गवर्नर की दौड़ में एक उम्मीदवार है, रिपब्लिकन ब्रायन केम्प. केम्प जॉर्जिया के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट हैं और उन्हीं पर राज्य का चुनाव कराने की प्रशासनिक जिम्मेदारी भी है. उन्होंने दसियों हजार ऐसे लोगों को ढूंढ निकाला है जिनसे वोटिंग अधिकार छीने जाएंगे. इनमें ज्यादातर अफ्रीकी अमेरिकी वोटर हैं.

इसी तरह कंसास में क्रिस कोबाख गवर्नर पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. कोबाख तब कुख्यात हो गए जब राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने उन्हें नकली वोटरों की पहचान के लिए बने आयोग का प्रमुख बना दिया. अमेरिका में नकली वोटर की समस्या शायद ही कभी सामने आई है. कोबाख ने अपने करियर का ज्यादा वक्त वोटिंग के अधिकारों पर अंकुश लगाने की वकालत करते हुए बिताया है, खासतौर से उनके लिए जो गोरे नहीं हैं. कई दूसरे राज्यों जैसे आयोवा, मिसौरी और उत्तरी कैरोलाइना में रिपब्लिकन पार्टी ने बीते दो सालों में ऐसे कई कानून बनाए हैं जो लोगों के लिए वोट डालना मुश्किल बनाते हैं.

दोनों पार्टियां में मतदान के अधिकार पर मतभेद तो है. इसके साथ ही रिपब्लिकन शासित राज्यों की सरकारों ने ओकलाहोमा और लुइसियाना में ऐसे कानूनों को मंजूरी दी है जो विरोध प्रदर्शनों, सभाओं या फिर अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाते हैं. इन बातों के संदर्भ में यह भी भूलना नहीं चाहिए कि देश के मौजूदा राष्ट्रपति विरोध के अधिकार को सीमित करने की वकालत करते हैं और मीडिया को "लोगों का दुश्मन" बताते रहे हैं.

हालांकि अमेरिका में लोकतंत्र को लेकर बहस तेज है, यह ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक होती जा रही है, मजबूत है और यह एक बड़ी उम्मीद है. ज्यादा लोकतंत्र के पैरोकार कानूनों को खत्म करने और मतदान में बाधाओं को हटाने की मांग करते हैं. दूसरी तरफ वे लोग हैं जो मानते हैं कि संविधान का मतलब है लोकतंत्र को सीमित करना. उनका कहना है कि संविधान में यह कहीं नहीं लिखा कि लोगों के लिए वोट देना आसान बनाया जाए और अमेरिका एक गणराज्य है लोकतंत्र नहीं.

ट्रंप के चुने जाने के बाद यह बहस और उग्र हो गई है. साल 2000 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश के बाद ट्रंप इस सदी के दूसरे रिपब्लिकन हैं जिन्होंने लोकप्रिय वोट हासिल किए बगैर राष्ट्रपति का चुनाव जीता है. साथ ही ब्रेट केवेनॉ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के फैसले को भी सीनेट से मंजूरी दिलानी पड़ी जो बहुसंख्यक अमेरिकी लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करती. आबादी में अंतर का विचार किए बगैर सभी राज्यों को दो सीनेटर चुनने का अधिकार देना भी अमेरिका की अलोकतांत्रिक प्रकृति का एक संकेत है. यह अमेरिकी सरकार की स्थिरता और वैधता के लिए अच्छा नहीं है, हालांकि धीरे धीरे यह अमेरिका को और लोकतंत्रिक होने में मदद कर सकता है.

ऐसा लगता है कि जब अगली बार केंद्र में डेमोक्रैट सरकार होगी तो वे संरचनात्मक बदलावों के जरिए अमेरिका में कथित लोकतांत्रिक वैधता के संकट को दूर करने की कोशिश करेंगे. इसके लिए ऐसे कुछ प्रस्ताव हैं जिनमें सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या बढ़ाने, वाशिंगटन, डीसी और प्यूर्टो रिको को राज्य का दर्जा देना शामिल है. इस तरह से अलग अलग आबादी को अपने सीनेटर चुनने और जातीय असमानता को कम करने का मौका मिलेगा.

वैसे तो यह पार्टियों की बात है लेकिन डेमोक्रैट पार्टी को संभवत: यह महसूस हो रहा है कि अमेरिका के राजनीतिक ढांचे में लोकतांत्रिक कमियां रिपब्लिकन पार्टी को फायदा पहुंचा रही है. इनमें से ज्यादातर मामले इस मध्यावधि चुनाव से हल नहीं होंगे. सीनेट का गठन कैसे होगा, सुप्रीम कोर्ट के जजों की पुष्टि कैसे होगी और राष्ट्रपति का चुनाव, ये सब इस चुनाव के बैलेट में नहीं है. बावजूद इसके जो लोग सचमुच लोकतांत्रिक अमेरिका चाहते हैं उन्हें यह महसूस हो रहा है कि इन संरचनाओं को बदला जाना जरूरी है और लोकतंत्र पर बहस तेजी से अमेरिका की राजनीति का हिस्सा बनती जा रही है.

(लेखक लिंकन मिचेल कोलंबिया यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाते हैं.)

एनआर/आईबी (रॉयटर्स)

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