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कौन हैं जूतों की लड़ाई करने वाले सांसद और विधायक

समीरात्मज मिश्र
८ मार्च २०१९

शरद त्रिपाठी और राकेश बघेल दोनों ही कारोबारी हैं. शरद त्रिपाठी अपने पिता की वजह से पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में उतर आए जबकि राकेश बघेल राजनीति से पहले ठेकेदारी करते थे.

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तस्वीर: DW/A. Anil Chatterjee

उत्तर प्रदेश के संतकबीरनगर जिले में शिलापट्ट पर नाम को लेकर सांसद और विधायक के बीच विवाद इतना बढ़ा कि विधायक जूता निकालने की धमकी देने लगे और सांसद उस धमकी के जवाब में उन पर तड़ातड़ जूते बरसाने लगे.

फिर दोनों में मल्लयुद्ध जैसी नौबत आ गई. लेकिन किसी तरह सुरक्षाकर्मियों ने दोनों को छुड़ाया, बावजूद इसके गालियों का सिलसिला चलता रहा. ये सब उस समय हो रहा था जब जिले के प्रभारी मंत्री आशुतोष टंडन योजना समिति की बैठक कर रहे थे, सांसद और विधायक दोनों उनके पास ही बैठे थे और जिले के डीएम-एसपी समेत सभी विभागों के आला अधिकारी वहां मौजूद थे.

घटना का वीडियो देखते ही देखते वायरल हो गया और फिर पार्टी आलाकमान ने दोनों नेताओं को लखनऊ तलब किया. हालांकि विधायक सारी रात कलेक्ट्रेट परिसर में समर्थकों के साथ धरने पर बैठे रहे और सुबह लखनऊ के लिए कूच कर गए.

दरअसल, जिला कार्य योजना की बैठक के दौरान प्रभारी मंत्री आशुतोष टंडन की मौजूदगी में स्थानीय सांसद शरद त्रिपाठी ने शिकायत की कि जिले के विकास कार्यों की गवाही देने वाले शिलापट्टों में उनका नाम नहीं लिखा जा रहा है.

इसी दौरान मेंहदावल के बीजेपी विधायक राकेश बघेल उस पर आपत्ति जताने लगे. यह विवाद इतना बढ़ गया कि विधायक ने जूता मारने की धमकी दे डाली और तब तक सांसद ने विधायक पर जूते बरसाने शुरू कर दिए. 

घटना के बाद विधायक और सांसद दोनों के समर्थक कलेक्ट्रेट परिसर में इकट्ठे हो गए और नारेबाजी करने लगे. विधायक राकेश बघेल फिलहाल कलेक्ट्रेट में अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठे रहे. उनकी मांग थी कि सांसद शरद त्रिपाठी के खिलाफ प्रशासन तत्काल कार्रवाई करे और उन्हें गिरफ्तार करे. हालांकि अभी तक किसी के खिलाफ कोई लिखित शिकायत नहीं दी गई है.

घटना की शुरुआत भले ही एक बेहद सामान्य सी बात से हुई लेकिन उसके पीछे सांसद शरद त्रिपाठी और विधायक राकेश बघेल के बीच वर्चस्व की लड़ाई ही है. बताया जा रहा है कि जो सड़क शरद त्रिपाठी के सांसद कोटे से पीडब्ल्यूडी ने बनवाई, उसी सड़क के उद्घाटन वाली पट्टिका पर उनका नाम नहीं था, जबकि विधायक राकेश बघेल का नाम था.

ये दोनों नेता भले ही भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हों लेकिन दोनों के बीच टकराव के मामले कई बार सामने आए हैं. शरद त्रिपाठी बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के बेटे हैं और खलीलाबाद सीट से उन्हें साल 2009 का लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद 2014 में दोबारा टिकट दे दिया गया और वो जीत भी गए.

पिछले साल जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मगहर गए थे तो उस कार्यक्रम के आयोजक सांसद शरद त्रिपाठी थे. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने शरद त्रिपाठी की कबीर पर लिखी एक किताब का विमोचन भी किया था लेकिन शरद त्रिपाठी पर विधायकों को उचित सम्मान न देने का आरोप भी लगा था.

शरद त्रिपाठी और राकेश बघेल दोनों ही कारोबारी हैं. बताया जा रहा है कि शरद त्रिपाठी अपने पिता की वजह से पढ़ाई के दौरान ही राजनीति में उतर आए जबकि राकेश बघेल राजनीति से पहले ठेकेदारी करते थे. उनके भाई अभी भी ठेकेदारी करते हैं. शरद त्रिपाठी पर किसी तरह का आपराधिक मामला नहीं है, जबकि पचास वर्षीय बघेल पर कुछ मुकदमे चल रहे हैं. हालांकि उनका कहना है कि ये सारे मुकदमे राजनीतिक हैं. 

वहीं इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर जिस तरह की चर्चाएं चल रही हैं उसे देखते हुए राजनीतिक रूप से भी ये घटना काफी महत्व रखती है. दरअसल, यूपी के पूर्वांचल का ये इलाका ब्राह्मण और ठाकुर के बीज विवाद और टकराव के लिए बहुत पहले से जाना जाता रहा है. ये विवाद राजनीति में भी दिखता रहा है और निजी तौर पर भी.

अब चूंकि विवाद करने वाले दोनों ही लोग राजनीति से भी जुड़े हैं और एक ही पार्टी, यानी भारतीय जनता पार्टी से, तो ये घटना और महत्वपूर्ण हो जाती है. स्थानीय लोगों की मानें तो शरद त्रिपाठी मौजूदा सांसद होने के बावजूद इस बार टिकट को लेकर आशंकित थे. इस घटना से अब पार्टी में उनकी छवि और खराब हुई है लेकिन जातीय समीकरणों के चलते पार्टी उनके खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई कर पाएगी, ऐसा मुश्किल दिख रहा है.

वहीं दूसरी ओर, राकेश बघेल हिन्दू युवा वाहिनी के रास्ते राजनीति में आए हैं और ये संगठन योगी आदित्यनाथ का था जो इस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. ऐसे में उन पर योगी का वरदहस्त होना आश्चर्यजनक है. लेकिन जो घटना हुई है और जिस वजह से हुई है, उसे देखते हुए योगी उनका बचाव कर पाएंगे, इसकी संभावना कम ही है.

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