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कोरोना से निपटने में अब जर्मनी नहीं रहा रोल मॉडल

८ दिसम्बर २०२०

जर्मनी ने सोचा था कि आंशिक लॉकडाउन लगाना कोरोना महामारी से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कोरोना संक्रमण और इससे मरने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

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जर्मनी में कोरोना
जर्मनी में यह समय क्रिसमस का है, लेकिन कोरोना के बढ़ते मामले चिंता बढ़ा रहे हैंतस्वीर: Martin Meissner/AP Photo/picture alliance

जब कोरोना के मामले लगातार बढ़ने लगे तो नवंबर में जर्मन राज्यों ने कोरोना पाबंदियों का एलान किया. इससे उम्मीद थी कि कोरोना के मामले घटकर स्वीकार्य स्तर पर आ जाएंगे. नवंबर की शुरुआत में रेस्त्रां, कैफे और बार बंद कर दिए गए. थिएटर, सिनेमा, जिम और बहुत से दूसरे छोटे व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भी अपने दरवाजे बंद करने पड़े. दूसरी तरफ बाजार, दुकानें और स्कूल खुले रहे. आइडिया यह था कि मनोरंजन गतिविधियां बंद रहे और अर्थव्यवस्था का पहिया चलता रहे. 

बंधे हैं मैर्केल के हाथ

जर्मन संविधान में देश के 16 राज्यों को बहुत ज्यादा शक्तियां दी गई हैं. यह तय करने का अधिकार उन्हीं के पास है कि किसी संक्रामक बीमारी के साथ किस तरह निपटना है. किसी चीज की अनुमति देनी है और किस चीज की नहीं, यह बर्लिन में बैठी संघीय सरकार नहीं, बल्कि राज्य सरकारें तय करती हैं.

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल तो महामारी को रोकने के लिए कड़े उपायों की समर्थक रही हैं. इस मुद्दे पर कई बार उनकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से झड़प भी हुई है. ऐसे में, चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटना थोड़ा जटिल हो जाता है.

सोमवार को जर्मन सरकार के प्रवक्ता स्टेफान जाइबर्ट ने बताया कि जर्मनी में संक्रमण की दर चिंता का कारण है. उन्होंने कहा, "विपत्ति को टालने के लिए हमें लंबा रास्ता तय करना है... आंशिक लॉकडाउन को पहले ही दो बार बढ़ा दिया गया है और अब यह 10 जनवरी तक लागू रहेगा. हालांकि ज्यादातर लोगों को लग रहा है कि इसे और आगे बढ़ाया जाएगा."

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मुश्किल चुनाव

महामारी के पहले चरण में जर्मनी की बहुत तारीफ हुई थी कि वह प्रभावी तरीके से स्थिति से निपटा है. वसंत के मौसम में प्रति दिन कोरोना के अधिकतम 6000 तक मामले सामने आए थे. लेकिन अब उनकी संख्या चार गुनी हो गई है.

अभी देश भर में चार हजार कोविड-19 के मरीजों का आईसीयू में इलाज हो रहा है. वसंत के मौसम में यह संख्या 2,850 थी. जर्मनी में आपात स्थिति और आईसीयू में काम करने वाले डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था डीआईवीआई का कहना है कि वेंटीलेटर पर रखे गए हर दूसरे व्यक्ति की मौत हो रही है.

ऐसे में सवाल है कि क्या सख्त लॉकडाउन बेहतर होगा? कुछ लोगों का मानना है कि इससे कुछ परेशानियां होंगी, लेकिन फिर जिंदगी जल्दी "सामान्य" हो सकती है. कई यूरोपीय देशों में यह रणनीति कारगर रही है. मसलन बेल्जियम और फ्रांस में, जहां संक्रमण के मामले कम हो गए हैं. इस्राएल में भी इसका असर देखने को मिला है.

लेकिन पूर्ण रूप से लॉकडाउन अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है. ऐसी स्थिति आती है तो फिर राज्य सरकारों को छोटे और बड़े उद्योगों को मदद देनी पड़ेगी. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए लिया गया कर्ज पहले ही 160 अरब यूरो तक पहुंच गया है. अगले साल इसका और बढ़ना तय है.

रिपोर्ट: जाबिने किनकार्त्स

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