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समाज

कोरोना के शिकारों पर हमारा दुख कहां है?

आस्ट्रिड प्रांगे
२० जुलाई २०२०

दुनिया कोरोना महामारी को तेजी से फैलते और लोगों को मरते देख रही है, फिर भी सामान्य जीवन में लौटने की कोशिश कर रही है. डीडब्ल्यू की आस्ट्रिड प्रांगे कहती हैं कि सामूहिक शोक की संस्कृति के बिना यह काम नहीं करेगा.

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Trauerfeier zu Ehren der Coronatoten in Madrid
तस्वीर: Getty Images/C. Alvarez

स्पेन ने दिखाया है कि यह कैसे किया जाता है. पिछले गुरुवार को पूरे देश ने उन 29,000 लोगों के लिए राजकीय शोक का समारोह में हिस्सा लिया, जिन्होंने कोविड​​-19 के कारण अपनी जान गंवाई, और अक्सर परिवार और दोस्त उन्हें अंतिम विदा भी नहीं कर पाए. इस समारोह में न केवल स्पैनिश शाही परिवार के सदस्य और देश के शीर्ष राजनेताओं ने भाग लिया, बल्कि डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रोस एडनॉम गेब्रेयसुस, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन और नाटो के महासचिव येंस स्टॉल्टेनबर्ग ने भी हिस्सा लिया.

लेकिन अफसोस, स्पेन एक सराहनीय अपवाद ही रहा. इस तथ्य के बावजूद कि दुनिया भर में अधिक से अधिक लोग कोविड-19 से मरने वाले अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए शोक मना रहे हैं, समाज के शीर्ष पर बैठे लोग अभी भी अक्सर यह दिखावा कर रहे हैं कि महामारी मौजूद ही नहीं है. खासकर ऐसे देशों में जहां मौत का आंकड़ा तेजी से ऊपर की ओर बढ़ रहा है.

सामान्य होती जिंदगी

हालांकि ब्राजील और अमेरिका में अभी भी कोरोनोवायरस से मरने वालों के लिए सामूहिक कब्रें खोदी जा रही हैं, फिर भी शॉपिंग सेंटर और जिम फिर से खुल रहे हैं. बर्लिन में, पार्टीबाजों ने एक अस्पताल के सामने "रबर नौका पार्टियों" का आयोजन किया है. ब्रिटेन में छुट्टियां मनाने वाले लोग भीड़भाड़ वाले समुद्र तटों पर शारीरिक दूरी के नियमों को नजरअंदाज कर दिया है.

दुनिया को बस एक पल के लिए ठहरना असंभव क्यों लग रहा है? जब शोक कर रहे लोगों को समर्थन और मानवीय स्नेह की सबसे अधिक जरूरत है, तो इतनी कम सहानुभूति क्यों दिखाई जा रही है? स्पेन के अलावा किसी और देश को राष्ट्रीय स्मृति दिवस या शोक मनाने की क्यों नहीं सूझी जबकि दुनिया भर में महामारी में 5,00,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं?

जवाब यह है कि सामान्य होती जिंदगी ने सामूहिक शोक से पैदा हो सकने वाले डर पर घूंघट का साया खींच दिया है. दुख और शोक अपार ताकत पैदा कर सकता है. यह लोगों को एक साथ जोड़ता है और आपसी सम्मान की मांग करता है. यह रोष और विरोध की भावना पैदा करता है और सत्ता के सामाजिक संतुलन पर सवाल उठाता है.

खामोश ताकत

अगर अमेरिका या ब्राजील में लाखों लोगों का दुख सतह पर आ जाए तो क्या होगा? अगर लोगों को कब्रिस्तान की बजाए घंटों सोशल मीडिया पर बिताना हो? क्या होगा यदि एक घंटे के लिए सारे घोटालों, कथित महत्वपूर्ण राजनीतिक बहसों और दूसरी तबाहियों से संवेदना और सहानुभूति ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाए?

यह असंभव नहीं कि ठहर कर सोचने का ऐसा एक सामूहिक फैसला ये दिखाए कि उच्च राजनीतिक पदों पर बैठे लोग लफ्फाजी तो कर सकते हैं लेकिन लेकिन संवेदनशील कार्रवाई करने में असमर्थ हैं. आखिरकार, "अमेरिका पहले" या "ब्राजील पहले" जैसे नारे गमगीन रिश्तेदारों को आराम नहीं दे सकते, न ही वे वास्तविक राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं को हल करेंगे.

जब महामारी की लहर कम होगी, तो केवल कोविड​​-19 में मरने वालों की संख्या ही महत्वपूर्ण नहीं होगी, बल्कि उन लोगों की तादाद भी जो महामारी के चंगुल से बच निकले हैं. सिर्फ ये अहम नहीं होगा कि महामारी से लड़ने में कई गलतियां हुई हैं, बल्कि उन गलतियों को उनके होने के साथ ही सुधारते जाने की क्षमता भी. यह भी महत्वपूर्ण होगा कि किसने मृतकों की गरिमा को बरकरार रखा और जो सीख वे देते हैं, उसके सबक सीखे.

कोरोना पीड़ितों के रिश्तेदार और दोस्त अपने दुख के लिए अधिक सम्मान और सहानुभूति के पात्र हैं. उन्हें इस दर्द के साथ अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए. सामूहिक स्मृति समारोह और प्रतीकात्मक कदम एकमात्र ऐसे उपाय हैं, अगर उन्हें उपाय कहा जा सके, जो हमें लाखों इंसानों की मौत का सामना करने की शक्ति देंगे.

सामूहिक कब्रों और अस्पताल के गलियारों में मरते मरीजों की तस्वीरें ने दुनिया भर में लोगों की सामूहिक स्मृति पर छप गई हैं. हमारे अनवरत साथी के रूप में, मौत और अधिक दृश्यमान हो गई है. सामूहिक शोक के बिना, कोरोना महामारी से पहुंचे आघात को सहना आसान नहीं होगा.

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