कोरोना काल में लोगों का पेट भरते दिल्ली के गुरुद्वारे
भारत में करीब दो करोड़ सिख रहते हैं. पंजाब के बाद इनकी सबसे बड़ी तादाद दिल्ली में है. यहां गुरुद्वारे कोरोना संकट के बीच गरीब लोगों तक खाना पहुंचा रहे हैं. सिख धर्म में "सेवा" को बड़ी अहमियत दी जाती है.
खाली पड़े रहे गुरुद्वारे
कोरोना लॉकडाउन के बीच सभी धार्मिक स्थल बंद पड़े थे. इस दौरान श्रद्धालुओं के बिना भी दिल्ली के गुरुद्वारों में पूजा अर्चना जारी रही. साथ ही ये गुरुद्वारे जरूरतमंद लोगों के लिए लंगर सेवा भी आयोजित करते रहे.
जगह जगह सैनिटाइजर
अब जब मंदिर-गुरुद्वारों को दोबारा खुलने की अनुमति मिली है, तो दिल्ली के बंगला साहिब गुरद्वारे में जगह जगह सैनिटाइजर लगे नजर आ रहे हैं. गुरुद्वारे के दर्शन के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है. यहां लोगों का तापमान भी चेक किया जा रहा है.
लंगर की तैयारी
सुबह तीन बजे से लंगर की तैयारी शुरू हो जाती है. यहां करीब एक लाख लोगों के लिए खाना पकाया जाता है. हर रोज दाल, रोटी और चावल तैयार किया जाता है. इसके लिए पैसे दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी और लोगों के चढ़ावे से आते हैं.
खाली हाथ नहीं
सिख धर्म में माना जाता है कि श्रद्धालुओं को गुरु के द्वार से खाली हाथ नहीं लौटाया जा सकता. वह अपने साथ तीन चीजें ले जाता है: गुरु की सीख, गुरु का प्रसाद और लंगर.
बांटने की तैयारी
दिल्ली और एनसीआर में बीस अलग अलग जगहों पर यह लंगर बांटा जा रहा है. गुरुद्वारे के सेवक (वॉलंटियर) पता लगाते हैं कि किन इलाकों में इसकी ज्यादा जरूरत है. कई बार स्थानीय एनजीओ और सरकार भी जानकारी देते हैं.
जरूरतमंदों के लिए
ट्रकों के आने से पहले ही लंबी कतारें लगने लगती हैं. इनमें महिला, पुरुष, बच्चे, वृद्ध सब शामिल होते हैं. खास कर गरीब और विकलांगों को इससे फायदा मिलता है. कोरोना संकट के दौर में कुछ लोगों को राशन भी मुहैया कराया जा रहा है.
दो तरह की कतारें
एक कतार उन लोगों की जिन्हें किसी अतिरिक्त मदद की जरूरत ना हो और दूसरी वृद्ध, विकलांग और महिलाओं की. सोशल डिस्टेंसिंग की कोशिश जरूर की जाती है लेकिन भीड़ के बीच अक्सर यह मुमकिन नहीं हो पाता.
गुरुद्वारों से उम्मीद
इन ट्रकों से खाना ले रहे कई लोगों के लिए यह दिन भर में खाना खाने का एकमात्र मौका है. कुछ लोग प्लास्टिक की थैलियों में खाना भर कर परिवार वालों के लिए ले जाते हैं, तो कुछ शाम के लिए बचा लेते हैं.