1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कोटा में फंसे छात्रों को लेकर नया विवाद

चारु कार्तिकेय
१८ अप्रैल २०२०

उत्तर प्रदेश सरकार ने कोटा में फंसे छात्रों को वापस लाने के लिए करीब 250 बसें भेज दी हैं. लेकिन कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर छात्रों को वापस भेजा जा सकता है तो अत्यंत गरीब प्रवासी श्रमिकों को क्यों नहीं?

https://p.dw.com/p/3b6Cv
Indien Rajasthan | Wegen Corona gestrandete Studenten
तस्वीर: Anshu Maharaj

तालाबंदी में राजस्थान की 'छात्र नगरी' कोटा में फंसे हजारों छात्रों की सोशल मीडिया मुहिम आखिरकार रंग ले आई है. उत्तर प्रदेश सरकार ने कोटा में फंसे छात्रों में से उत्तर प्रदेश के रहने वाले छात्रों को वापस लाने के लिए करीब 250 बसें कोटा भेज दी हैं. बताया जा रहा है कि शहर में उत्तर प्रदेश के रहने वाले लगभग 7,500 छात्र हैं और कोटा प्रशासन इन बसों में उन्हें वापस भेजने में पूरा सहयोग कर रहा है. 

एक मीडिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि यात्रा का खर्च छात्रों से नहीं वसूला जाएगा और कोटा प्रशासन उन्हें मास्क और खाने के पैकेट भी उपलब्ध कराएगा. इसके अलावा, छात्रों को भेजने से पहले कोरोना संक्रमण के लिए उनकी जांच भी की जाएगी. कोटा में अभी तक संक्रमण के 92 मामले सामने आ चुके हैं. कम से कम एक छात्र के भी संक्रमित होने की खबर है, जो कोटा से निकल भरतपुर में अपने घर वापस चला गया था. संभव है कि उत्तर प्रदेश पहुंचने के बाद सभी छात्रों की फिर से वहां भी जांच होगी.

लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के इस कदम के साथ एक नया विवाद खड़ा हो गया है. कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि ऐसे समय में जब लाखों अत्यंत गरीब प्रवासी श्रमिकों को तालाबंदी के बीच उनके गृह राज्य जाने नहीं दिया जा रहा है, ऐसे में इन छात्रों की वापस जाने में सहायता करना कहीं श्रमिकों के साथ अन्याय तो नहीं. कोटा में बिहार के रहने वाले भी हजारों छात्र हैं लेकिन बिहार सरकार उन्हें वापस लाने के पक्ष में नहीं है.

बिहार सरकार का विरोध

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बाकी राज्य सरकारों से कहा है कि वे भी उत्तर प्रदेश सरकार की तरह अगर अपने राज्यों के रहने वाले छात्रों को वापस लेने की इजाजत दे दें तो राजस्थान सरकार सभी छात्रों को वापस भेज देगी.

लेकिन बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि छात्रों को वापस भेजना लॉकडाउन के पूरे मकसद के साथ अन्याय होगा क्योंकि इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है हर तरह की आवाजाही को बंद करने की.

बिहार विधान सभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने बिहार सरकार के इस रवैये की आलोचना की है. 

लेकिन बिहार ही नहीं, बिहार के बाहर भी लोग ये कह रहे हैं कि इन छात्रों की तरह प्रवासी श्रमिकों को भी उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था होनी चाहिए. अशोक गहलोत ने भी इस प्रस्ताव से सहमति जताते हुए कहा है कि वह इस विषय में लगातार केंद्र सरकार से बात कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और केंद्रीय मंत्री रह चुके कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने भी यह मुद्दा उठाया है.

श्रमिकों का बुरा हाल

तालाबंदी में प्रवासी श्रमिकों का बुरा हाल है. अभी भी देश के कई हिस्सों से उनके अपने गांवों की तरफ पैदल ही निकल जाने की खबरें आ रही हैं. जो अपने घरों से दूर शहरों में ही में डटे हुए हैं वे बुरे हाल में हैं. कुछ शिक्षकों और एक्टिविस्ट के एक समूह द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि इनमें से 89 प्रतिशत श्रमिकों को तालाबंदी के दौरान उनके नियोक्ताओं ने एक पैसा भी नहीं दिया है.

इसके अलावा सर्वेक्षण से पता चला है कि 96 प्रतिशत लोगों को सरकार से राशन नहीं मिला है, 98 प्रतिशत लोगों को सरकार से नकद या किसी भी किस्म की आर्थिक मदद भी नहीं मिली है, कई राज्यों में 80 प्रतिशत लोगों को सरकारी या निजी किसी भी संस्था द्वारा खाना नहीं मिला है और जिन राज्यों में मिला है वहां खाने की कतारें लंबी हैं और कई बार सबको खाना मिलने से पहले ही खत्म हो जाता है.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी