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कैसे बनती है वोटिंग वाली अमिट स्याही?

ऋषभ कुमार शर्मा
१९ मार्च २०१९

भारत में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनाव में वोट देने वाले सभी मतदाताओं की अंगुली में बैंगनी अमिट स्याही लगाई जाती है. कैसे और कहां बनती है ये स्याही और क्या यह मिट सकती है?

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Wahlen in Indien 17.04.2014
तस्वीर: Reuters

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा कर दी गई है. इस चुनाव में कई सारी पार्टियां हिस्सा ले रही हैं. इन सब पार्टियों का अपना-अपना वोट बैंक है. भारत के मतदाता अपनी समझ के मुताबिक अपनी पसंद के प्रत्याशियों को वोट देंगे. लेकिन इन सबमें एक बात कॉमन होगी.

ये है वोट डालने के बाद अंगुली पर लगने वाला स्याही का निशान. यह निशान बताता है कि किसने वोट डाला है और किसने नहीं. यह निशान 15 दिनों से पहले नहीं मिट सकता. ऐसा क्या होता है इस स्याही में और क्या है इसका इतिहास, आइए जानते हैं.

दुनिया के सबसे अमीर राजघराने से जुड़ा है इतिहास

कर्नाटक में एक जगह है मैसूर. इस जगह पर पहले वाडियार राजवंश का राज चलता था. आजादी से पहले इसके शासक महाराजा कृष्णराज वाडियार थे. वाडियार राजवंश विश्व के सबसे अमीर राजघरानों में से एक था. इस राजघराने के पास खुद की सोने की खान (गोल्ड माइन) थी. 1937 में कृष्णराज वाडियार ने मैसूर लैक एंड पेंट्स नाम की एक फैक्ट्री लगाई. इस फैक्ट्री में पेंट और वार्निश बनाने का काम होता था.

भारत के आजाद होने के बाद इस फैक्ट्री पर कर्नाटक सरकार का अधिकार हो गया. अभी इस फैक्ट्री में 91 प्रतिशत हिस्सेदारी कर्नाटक सरकार की है. 1989 में इस फैक्ट्री का नाम बदल मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड कर दिया गया. 

Indien Landtagswahlen Maharashtra 15.10.2014
तस्वीर: Reuters/Danish Siddiqui

कहां से आया स्याही का आइडिया

भारत में पहली बार चुनाव 1951-52 में हुए थे. इन चुनावों में मतदाताओं की अंगुली में स्याही लगाने का कोई नियम नहीं था. चुनाव आयोग को किसी दूसरे की जगह वोट डालने और दो बार वोट डालने की शिकायतें मिलीं. इन शिकायतों के बाद चुनाव आयोग ने इसे रोकने के लिए कई विकल्पों पर विचार किया. इनमें सबसे अच्छा तरीका एक अमिट स्याही का इस्तेमाल करने का था.

चुनाव आयोग ने नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) से ऐसी एक स्याही बनाने के बारे में बात की. एनपीएल ने ऐसी स्याही ईजाद की जो पानी या किसी रसायन से भी मिट नहीं सकती थी. एनपीएल ने मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी को इस स्याही को बनाने का ऑर्डर दिया. साल 1962 में हुए चुनावों में पहली बार इस स्याही का इस्तेमाल किया गया. और तब से अब तक यह स्याही ही हर चुनाव में इस्तेमाल की जाती है.

कैसे बनाई जाती है यह अमिट स्याही

एनपीएल या मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड ने कभी भी इस स्याही को बनाने के तरीके को सार्वजनिक नहीं किया. इसका कारण बताया गया कि अगर इस गुप्त फॉर्मूले को सार्वजनिक किया गया तो लोग इसको मिटाने का तरीका खोज लेंगे और इसका उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा. जानकारों के मुताबिक इस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट मिला होता है जो इस स्याही को फोटोसेंसिटिव नेचर का बनाता है. इससे धूप के संपर्क में आते ही यह और ज्यादा पक्की हो जाती है.

जब यह स्याही नाखून पर लगाई जाती है तो भूरे रंग की होती है. लेकिन लगाने के बाद गहरे बैंगनी रंग में बदल जाती है. सोशल मीडिया पर एक अफवाह चली थी कि इस स्याही को बनाने में सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन इन अफवाहों को बकवास करार दिया गया. यह स्याही अलग-अलग रसायनों का इस्तेमाल कर बनाई जाती है.

Indien Wahlen 2014 10.04.2014 Bodhgaya
तस्वीर: UNI

कोई और देश भी करता है इसका इस्तेमाल

जी हां, कई सारे देश करते हैं. मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड के मुताबिक 28 देशों को इस स्याही की आपूर्ति की जाती है. इनमें अफगानिस्तान, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, नेपाल, घाना, पापुआ न्यू गिनी, बुर्कीना फासो, बुरुंडी, कनाडा, टोगो, सिएरा लियोन, मलेशिया, मालदीव और कंबोडिया शामिल हैं.

भारत इस स्याही का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. भारत में अंगुली पर एक लकड़ी से यह स्याही लगाई जाती है वहीं कंबोडिया और मालदीव में अंगुली को ही स्याही में डुबोया जाता है. अफगानिस्तान में पेन से, तुर्की में नोजल से, बुर्कीना फासो और बुरुंडी में ब्रश से यह स्याही लगाई जाती है.

कितने दिन में मिटती है यह स्याही

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार ने कहा था कि उनके समर्थक एक बार वोट डालने के बाद स्याही मिटाकर फिर वोट डालने जाएं. इस बयान के बाद मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी ने कहा था कि इस स्याही को किसी भी तरह 15 दिन से पहले मिटाना संभव ही नहीं है.

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