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कृत्रिम कोर्निया से आंखों में नया प्रकाश

१० नवम्बर २०१०

अगर आपकी कार की सामने वाली खिडकी में खरोंचें हों, तो आपको देखने में दिक्कत होती है और आप ठीक से कार नहीं चला पाते. इसी तरह कोर्निया भी आंखों की बाहर देखने के लिए जरूरी खिडकी मानी जा सकती है.

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कृत्रिम कोर्नियातस्वीर: AP

कोर्निया आंख के सामने का पारदर्शी भाग होता है जो पुतली, पुतली के केंद्रीय हिस्से और दूसरे आंतरिक हिस्से को ढक देता है. लेंस के साथ कोर्निया प्रकाश को परावर्तित करता है, जो आंख की दृश्य क्षमता का लगभग दो तिहाई हिस्सा है. कोर्निया को अगर किसी चोट से नुकसान हो जाए, तो दिखना बंद हो जाता है. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक बायोसिंथेटिक यानी कृत्रिम कोर्निया का आविष्कार किया है.

स्वीडन के 10 मरीज़ों पर इस कृत्रिम कोर्निया का प्रयोग किया गया. सभी मरीज़ों की देखने की क्षमता बहुत कम हो गई थी. कइयों का कोर्निया बहुत ही पतला हो गया था, जबकि दूसरे लोगों के कोर्निया पर जख्म के निशान थे. वैसे, कोर्निया का प्रत्यर्पण यानी ट्रैंसप्लैंटेशन किया जा सकता है. प्रॉफेसर पेर फागरहोल्म स्वीडन के लिंकोएपिंग शहर के विश्वविद्यालय के क्लिनिक में नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं. वो बताते हैं.

सबसे बडी समस्या कोर्निया का दान है. दान देने वालों की मात्रा दुनिया भर में बहुत कम है. अनुमान यह लगाया जा रहा है कि दुनिया भर में एक करोड़ लोग सिर्फ इसलिए दृष्टहीन हैं क्योंकि उनका कोर्निया दान नहीं हो सका. - पेर फागरहोल्म

स्वीडन के 10 मरीज़ों ने इसलिए खुद प्रयोग में शामिल होने का फैसला लिया और प्रोफेसर फागरहोल्म ने उनके आंख में कृत्रिम कोर्निया लगाया. फागरहोल्म और उनकी टीम ने सालों तक कृत्रिम कोर्निया का परीक्षण किया. छोटे खरगोशों और सूअरों और कुत्तों के आंखों में उन्होंने बायो सिंथेटिक कोर्निया लगाया. कृत्रिम कोर्निया का अविष्कार 1990 के दशक में कनाडा के कुछ वैज्ञानिकों ने किया. लेकिन फागरहोल्म पहले वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने 2007 में इस तरह के कोर्निया को असली मरीज़ों में लगाया. फागरहोल्म बताते हैं कि जिस तरह मनुष्य का कोर्निया कोलाजीन नामक प्रोटीन से बना है, उसी तरह कृत्रिम कोर्निया भी कोलाजीन से बनाया गया है. कोलाजीन बनाने में फागरहोल्म और उनकी टीम अपनी लैब में सफल हो पाए हैं.

28.07.2010 DW-TV Fit und Gesund Hornhaut 01

कृत्रिम कोर्निया पारदर्शी है, कॉन्टैक्ट लैंस की तरह दिखता है. उसे बनाने के लिए हमने कोलाजीन नामक प्रोटीन का इस्तेमाल किया. हमने उससे टिश्यू बनाया और उसे फिर मरीज़ के आंख में लगाया गया. - पेर फागरहोल्म

वैसे वैज्ञानिक फागरहोल्म ने कृत्रिम कोर्निया को सबसे पहले सिर्फ एक आंख में लगाया क्योंकि वह देखना चाह रहे थे कि मरीज़ों में देखने की क्षमता वापस आती है या नहीं. फागरहोल्म ने हैरानी हुई कि सिर्फ छह हफ्तों के बाद कृत्रिम कोर्निया आंख के साथ जुड़ गया था और धागा निकाला जा सका. आम तौर पर कोर्निया दान के बाद एक साल तक लग सकता है, जब तक कोर्निया आंख के साथ जुड़ जाता है.

विशेष तरह के माइक्रोस्कोपों के साथ हम देख सकते थे कि आंख के अंदर ऑपरेशन के बाद कैसे इलाज हो रहा था. हमने देखा कि सैल और नर्व कैसे कोर्निया के अंदर पहुंचे और वह कैसे कोलाजीन के टिश्यू के साथ जुड़े. इसी तरह एक नए और स्वस्थ कोर्निया का विकास हुआ. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आंख के अंदर आम तौर पर किसी दूसरे मरीज़ के कोर्निया का ट्रैंसप्लैंटेशन करने के बाद उस मरीज के सेल यानी अजनबी सेल मौजूद होते हैं. लेकिन हमारे मामले में ऐसा नहीं होता है. - पेर फागरहोल्म

प्रॉफेसर फागरहोलम बताते हैं कि कृत्रिम कोर्निया को कोलाजीन से बनाए जाने की वजह से शरीर उसे अजनबी न समझकर अस्वीकार नहीं करता है. फागरहोल्म पिछले दो सालों में अपने मरीज़ों के आंखों की जांच करते रहे. वो बताते हैं कि ऑपरेशन के बाद मरीज़ों की आंखें सूजी हुई थीं और लाल हो गई थीं. लेकिन छह मरीज़ों में देखने की क्षमता बेहद बेहतर हुई है.

यदि आप अपने आंखों का टेस्ट करवाने जाते हैं तब आपको दूर लगे बोर्ड पर अक्षरों को पढ़ना पड़ता है. ऑपरेशन के पहले मरीज़ अक्षरों की पहली लाइन तक नहीं बता पा रहे थे. लेकिन ऑपरेशन के बाद वे चश्मा पहनकर दूसरी लाइन के अक्षर सही बता पा रहे थे. लैंस पहनकर वह कई और अक्षरों की लाइनों को भी बता पा रहे थे. यानी ऐसे में उन्हें स्वीडन में कार चलाने की अनुमति है. - पेर फागरहोल्म

प्रयोग की सफलता के बाद अब अनुमान लगाया जा रहा है कि कृत्रिम कोर्निया 5 से 6 सालों के अंदर बड़े पैमाने पर मरीज़ों को उपलब्ध करवाया जा सकता है.

रिपोर्ट: प्रिया एसेलबोर्न

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य