1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कुत्तों का है जमाना !

२३ जुलाई २०१२

ब्रांडेड खाना, डिजाइनर एक्सेसरीज, पार्लर में बनाव सिंगार, होटल और क्लब में मस्ती कुछ साल पहले तक मध्यमवर्गीय परिवारों का यह सपना था. बदलते भारत में अब कुत्ते ये मजा ले रहे हैं.

https://p.dw.com/p/15dMR
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दिल्ली की पॉश कालोनी में ओरियो के जन्मदिन के मौके पर पूल पार्टी हो रही है. 2 साल की ओरियो अपने 20 दोस्तों के साथ स्वीमिंग पूल में छपाकें मार रही है. यहां आम जन्मदिन की पार्टी से कुछ भी अलग नहीं सिवा इसके कि जन्मदिन मनाने वाली ओरियो एक कुतिया है. मुमकिन है कि यह सुनना उसकी मालकिन प्रियंवदा शर्मा को पसंद न आए क्योंकि उनके लिए तो ओरियो उनकी बेटी है.

ओरियो के दोस्तों के लिए मैदा, चीज और चिकन टिक्के से बने केक पर हड्डी की आकृति वाले बिस्किट सजे हैं और मस्ती का पूरा सामान है. धूमधाम से ओरियो का जन्मदिन मना रहीं प्रियंवदा कहती हैं, "ऐसा ही है जैसे कि मेरी बेटी का जन्मदिन हो. हम यहां की दुकानों में मिलने वाले हर तरह के बिस्किट और हड्डियां ले कर आए हैं."

Die besten dpa-Bilder 2001 bis 2007 im Museum für Kommunikation Frankfurt Wartezeit im Cafe
तस्वीर: picture-alliance/dpa

ओरियो तेजी से बढ़ते पालतू जानवरों की उस जमात का हिस्सा है, जिन पर बदलते भारत की मेहरबानियों की बारिश हैं. कहां तो दूध रोटी, मांस के टुकड़ों और बचे हुए खाने पर पलते थे. अब बाजार में कई ब्रांड के बिस्किट और खाने पीने की चीजें खास उनकी जरूरत, सेहत और पसंद के हिसाब से मौजूद हैं. मध्यवर्ग की मोटी हुई पर्स उनकी खुशियों का सामान जुटाने में भी हल्की हो रही है.

अब ओरियो को ही देखिये, खास उसके लिए रखी गई नौकरानी 24 घंटे उसकी सेवा करती है. उसकी खूबसूरती निखारने के लिए नियमित रूप से पार्लर ले जाने का इंतजाम किया गया है साथ ही खेलने के लिए पर्याप्त जगह और तैरने के लिए स्वीमिंग पूल भी है.

भारत में पालतू जानवरों के शौक ने कई तरह की नौकरियों की गुंजाइश बना दी है. उनका ख्याल रखने के लिए अलग क्लिनिक, पार्लर और सेवक तो हैं ही, उन्हें घुमाने ले जाने वाले, मालिश करने वाले लोगों की भी मांग बड़ी तेजी से बढ़ रही है.

Messe "Heim, Tier und Pflanze 2007"
तस्वीर: AP

कुछ होटलों ने पालतू कुत्तों के लिए दोस्ताना माहौल बनाने का भी बीड़ा उठाया है और अब उनके रहने के लिए खास एयरकंडीशन घर भी मिलने लगे हैं. कोई 20 साल पहले मारा साबिन जब अपनी दो बिल्लियों के साथ भारत आई थीं, तब स्थिति बहुत अलग थी. वह कहती हैं, "20 साल पहले ऐसा नहीं था. तब तो लोग पालतू जानवर के रूप में घोड़े और कुत्ते को ही जानते थे बस."

कुत्तों का बहुमत

यूरोमॉनिटर की एक रिसर्च रिपोर्ट बताती है कि भारत में पालतू जानवरों से जुड़े उद्योग में सालाना 22 फीसदी का इजाफा हो रहा है. करीब 87 हजार प्रति व्यक्ति आय वाले देश में फिलहाल यह उद्योग 4.5 अरब रूपये तक जा पहुंचा है. यहां पालतू जानवरों में सबसे बड़ी 80 फीसदी हिस्सेदारी कुत्तों की है. हालांकि मछली और बिल्लियां भी लोगों को खूब भाती हैं.

प्रीति कुमारी ने 2007 में टीचर की नौकरी छोड़ कर अपने पति के साथ पालतू जानवरो का एक सैलून खोल लिया. तब दिल्ली में यह पहला सैलून था अब शहर में उनके सात सैलून चल रहे हैं जहां कुत्तों को खास तरीके से खुशबूदार स्नान कराने के अलावा हर्बल मालिश और उनके बालो को रंगने जैसी सेवाएं दी जाती हैं.

Pudel Nico
तस्वीर: picture-alliance/dpa

सिर्फ रखरखाव ही नहीं कुत्तों की नस्ल भी शानो शौकत से जुड़ी है. प्रीति बताती हैं, "ऐसे लोग भी हैं जो सेंट बर्नार्ड जैसी नस्लों के कुत्ते खरीद लेते हैं जो दिल्ली के मौसम के हिसाब से ठीक नहीं हैं क्योंकि उनके शरीर पर बहुत ज्यादा बाल होते हैं." प्रीति के पास 13 कुत्ते हैं जिनमें बॉक्स, पोडल्स, पग के अलावा बेडलिंगटन टेरियर और केयर्न टेरियर जैसी विदेशी नस्लें भी हैं. प्रीति ने बताया कि इन दिनों वोडाफोन के विज्ञापनों की वजह से पग नस्ल का कुत्ता मध्यमवर्गीय परिवारों का चहेता बना हुआ है. वैसे तो कई बार ऐसा भी होता है कि लोग इस तरह के कुत्तों से चाहत का बुखार उतर जाए तो उन्हें छोड़ देते हैं लेकिन उन्हें परिवार का हिस्सा मानने वाले लोगों की तादाद बड़ी तेजी से बढ़ रही है.

कुत्तों के हिसाब से फैसले

कुत्ते लोगों के अहम फैसलों में भी बदलाव की वजह बन रहे हैं. स्वतंत्र रूप से लेखन करने वाली नताशा अदलखा के पास गोल्डेन रिट्रीवर है, जिसे वो गूगल बुलाती हैं. हर महीने करीब 20,000 रुपये यानी अपनी कमाई का 20 फीसदी हिस्सा कुत्ते पर खर्च करने वाली नताशा बताती हैं, "मैं छोटी कार खरीदना चाहती थी लेकन मेरे कुत्ते की वजह से मुझे बड़ी गाड़ी खरीदनी पड़ी."

कुछ साल पहले तक कुत्तों का घर के बाहर, गैरेज में या ऐसी किसी जगह पर सुलाना आम बात थी लेकिन अब उनके लिए छोटे खूबसबूरत घर बनाए जा रहे हैं जिनमें 24 घंटे एयरकंडीशन चलता है. इन घरों में बढ़िया बिस्तर, खूबसूरत गद्दे और मखमल की आयरन की हुई चादरों के साथ तकिये भी हैं.

धार्मिक नियम कायदों को भी ताक पर रख कर लोग कुत्तों पर प्यार लुटा रहे हैं. प्रियंवदा शर्मा के घर में न तो मांस बनता है न ही खाया जाता है. पर जब बात उनकी "बेटियों" की हो, तो कोई नियम नहीं. उनकी नौकरानी ओरियो के लिए मौसमी सब्जियों और हल्दी के साथ चिकन स्टू बनाती है. 25 साल की प्रियंवदा कहती हैं वो तो शादी भी उसी से करेंगी जो उनके पालतू जीवों को अपने साथ रखेगा, उन्हें उनकी तरह ही प्यार करेगा.

एनआर/एजेए (रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें