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कीड़े बताएंगे दूसरे ग्रह इंसान के काबिल है या नहीं

३० नवम्बर २०११

मंगल या फिर दूसरे ग्रह पर इंसानी बस्तियां बसाने की परिस्थिति का पता लगाने के लिए ऐसे छोटे जीव बड़ी भूमिका निभा सकते हैं जो जैविक रूप से मानव जैसे है. ब्रिटेन के कुछ वैज्ञानिकों का तो यही मानना है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के नाथानियल स्जेव्क्जिक के नेतृत्व में वैज्ञानिक 4,000 कीड़ों को डिस्कवरी यान में बिठा कर अंतरिक्ष में भेज चुके हैं. इन कीड़ों को कायनोरहैबिट्स एलेगन्स या सी एलेगन्स कहते हैं. इसके बाद इन कीड़ों पर क्या बीती इसका अध्ययन किया जा रहा है. मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग्स समेत कई जानकारों का मानना है कि चरम स्थिति में मानवता का अस्तित्व इस बात पर निर्भर करेगा कि दूसरे ग्रहों पर इंसान की बस्तियों का बनना संभव है या नहीं.

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तस्वीर: NASA/JPL-Calech/University of Arizona

स्जेव्क्जिक ने इस रिसर्च के बारे में दिए एक बयान में कहा है, "हालांकि यह विज्ञान से जुड़ी कल्पना की तरह लगता है लेकिन यह सच है कि अगर इंसान लुप्त होने के प्राकृतिक चक्र से बचना चाहता है तो उसे दूसरे ग्रहों पर जिंदा रहने के तरीके ढूंढने होंगे." वैसे एक सच्चाई यह भी है कि लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने की स्थिति में कुछ चुनौतियां भी हैं. इनमें हड्डियों की ताकत का लगातार खत्म होना और उच्च विकिरण के संपर्क में आना शामिल है.

रॉयल सोसायटी के जर्नल इंटरफेस में छपी रिपोर्ट में स्जेव्क्जिक की टीम ने बताया है कि अंतरिक्ष में ये कीड़े अंडे से निकल कर विकास करते गए और व्यस्क कीड़े बन गए. इसके बाद इन्होंने पृथ्वी के जैसे ही वहां प्रजनन भी किया. इस तरह से दूर अंतरिक्ष में मानव जीवन पर पड़ने वाले असर के अध्ययन के लिए एक आसान और सस्ता तरीका मिल गया. वैज्ञानिकों ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के छह महीने की यात्रा के पहले तीन महीनों में सी एलेगन्स की 12 पीढ़ियों पर पड़ने वाले असर का सफल अध्ययन किया.

USA Raumfahrt Raumfähre Discovery in Florida gelandet
तस्वीर: dapd

स्जेव्क्जिक ने बताया, "हालांकि यह हैरान करने वाली बात है लेकिन मानव और इन कीड़ों की अंतरिक्ष यात्रा के दौरान हुए जैविक बदलाव एक ही तरह के थे. हम यह दिखा सकते हैं कि कीड़े अंतरिक्ष दूसरे ग्रह तक जाने के लिए पर्याप्त विकास और प्रजनन कर सकते हैं और हम दूर रह कर भी उनकी सेहत पर निगरानी रख सकते हैं."

सी एलेगन्स पहला बहुकोशिकीय जीव है जिसकी जेनेटिक संरचना का पूरी तरह से नक्शा बनाया गया और इसके 20 हजार जीनों में कई ऐसे हैं जो मानव जीन की तरह काम करते हैं. इनमें से 2,000 जीन ऐसे हैं जो मांसपेशियों की गतिविधि को नियंत्रित करते हैं और इनमें से 50 से 60 फीसदी ऐसे हैं जिनका इंसानी संस्करण होता है. सी एलेगन्स लंबे समय से वैज्ञानिकों को इंसान की जैविक संरचना समझने में मदद करता रहा है. अब स्जेव्क्जिक जैसे वैज्ञानिकों को यह लग रहा है कि यही जीव मंगल और दूसरे ग्रह पर इंसान की अनुकूलता के बारे में जानकारी जुटाने में भी मददगार होगा. स्जेव्क्जिक की टीम कई और देशों के वैज्ञानिकों के साथ काम कर रही है. इनमें अमेरिका की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी और कोलोराडो यूनिवर्सिटी, कनाडा की फ्रेजर यूनिवर्सिटी भी शामिल है. ये लोग सी एलेगन्स का एक सघन और स्वचालित उन्नति तंत्र बनाना चाहते हैं जिसके जरिए दूर रह कर भी पर्यावरण में मौजूद विषैले तत्वों और विकिरण के असर को महसूस किया जा सके.

स्जेव्क्जिक का कहना है, "मंगल ग्रह पर भेजे गए मिशनों की असफलता को देखते हुए इन कीड़ों का इस्तेमाल हमें मानव मिशनों से पहले सुरक्षित तरीके से कम खर्च में स्पेसक्राफ्ट तंत्र को परखने में मदद करेगा."

रिपोर्टः रॉयटर्स/ एन रंजन

संपादनः ओ सिंह