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किसानों की कमर तोड़ सकती है ये खोज

२३ जनवरी २०१७

चंदन, गुलाब या चमेली की खुशबू, अब बिना पौधों के भी ऐसी हजारों तरह की गंध हासिल की जा सकेंगी. लेकिन इस खोज से दुनिया भर के किसानों को करारी चोट लग सकती है.

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Frankreich Lavendelfeld mit Dorf Banon
तस्वीर: picture alliance/blickwinkel/P. Frischknecht

नए प्रयोग की सफलता के बाद कृषि विशेषज्ञों के चेहरे पर घबराहट नजर आने लगी है. अब तक सुगंध पाने के लिए फूलों के तेल का इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन अब पौधे के डीएनए से ही सुगंध हासिल करने की तकनीक खोज ली गई है. वैज्ञानिकों ने डीएनए को खमीर, बैक्टीरिया या फंगस में बदलकर खुशबू पाने का रास्ता खोज लिया है. इसका मतलब यह है कि लैब में कुछ ही दिनों के भीतर मनचाही खुशबू तैयार की जा सकेगी.

कुछ जगहों पर इसकी शुरुआत हो चुकी है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक जल्द ही बड़ी कंपनियां भी इस क्षेत्र में दाखिल हो जाएंगी और यह तरीका दुनिया भर में फैल जाएगा. फिलहाल बायोटेक इवोल्वा कंपनी ऐसी सुगंध तैयार कर रही है. कंपनी के अधिकारी स्टेफान हेरेरा चंदन और अगर का हवाला देते हुए कहते हैं, "पौधों और पशुओं से ऐसे कई खास तत्व मिलते हैं जो दुर्लभ हैं या फिर तेजी से लुप्त हो रहे हैं या फिर भविष्य में शायद न मिलें." नई खोज इसी मुश्किल को खत्म करेगी.

Gesundheit Lavendel und Lavendelöl Heilmittel
क्या होगा फूलों की खेती कातस्वीर: Fotolia/Elenathewise

बायोटेक इवोल्वा कंपनी संतरे, कीनू, अलास्का येलो सेडर और कई अन्य पौधों की खुशबू लैब में तैयार कर चुकी है. अब चंदन, अगर, केवड़े समेत अन्य पौधों की सुगंध तैयार की जा रही है.

लेकिन कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस खोज से किसान मुश्किल में पड़ जाएंगे. यूएन फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेश के बीज और जेनेटिक्स एक्सपर्ट चिकेलु मबा कहते हैं, "विकासशील देशों में ऐसी फसलें उगाने वाले किसानों का क्या होगा? क्या उन्हें इस नए उद्योग में काम मिलेगा? शायद नहीं."

फोकस ऑन द ग्लोबल साउथ की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर शालमाली गुट्टल भी चिंता जाहिर कर रही हैं, "स्वाद और सुगंध अब तक पौधों से मिलती रही हैं, जिन्हें दुनिया भर में ग्रामीण इलाकों में लोग कई पीढ़ियों से उगा रहे हैं, शायद सदियों से." गुट्टल के मुताबिक नए उद्योग के सामने किसान लाचार हो जाएंगे.

वहीं इवोल्वा कंपनी का दावा है कि उसकी खोज का किसानों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. कंपनी कहती है कि उसका मुकाबला उन कंपनियों से है जो पेट्रोकेमिकल्स की मदद से सुगंध के बाजार को नियंत्रित कर रही हैं.

लेकिन संयुक्त राष्ट्र के लिए काम कर रहे विशेषज्ञ चिकेलु मबा इवोल्वा के तर्क से सहमत नहीं हैं. वह कहते हैं, यकीनन इस खोज की मार किसानों पर पड़ेगी, "अगर लैब में बड़े पैमाने पर तैयार खुशबू और पौधे से निकाले गए तेल की सुगंध में कोई फर्क न रह जाए तो आप परफ्यूम तैयार करने का सस्ता रास्ता क्यों नहीं खोजेंगे?"​​​​​​​

(कितनी नौकरियां रोबोट को जाएंगी​​​​​​​)

ओएसजे/वीके (रॉयटर्स)