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किस बात का नया मीडिया

१६ दिसम्बर २०१३

नया मीडिया जितना त्वरित और प्रभाव में जितना तीव्र है उतना ही नाजुक और संवेदना में निस्पृह और निष्ठुर भी. वो नया जरूर है लेकिन उस पर कब्जे रूढ़िवादियों के हैं. लेखिका तस्लीमा नसरीन के मामले में तो कुछ ऐसा ही दिखता है.

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Symbolbild Twitter und Facebook
तस्वीर: Reuters

इस मामले में अहम ये है कि तस्लीमा ने भारत के आईटी एक्ट के सेक्शन 66ए के औचित्य पर सवाल उठाए हैं जिसे लेकर राजनैतिक दल बचते रहे हैं और ये सवाल बाल ठाकरे के निधन के समय दो लड़कियों के फेसबुक कमेंट्स के आदान प्रदान और कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी के मामले में भी उठ चुके हैं. हो सकता है देश में इस धारा को लेकर नई बहस छिड़े लेकिन लगता नहीं कि राजनैतिक दलों को इस समय ये फुर्सत होगी. इसलिए सुप्रीम कोर्ट की ओर निगाहें जाना लाजिमी है.

होना तो ये चाहिए था कि तस्लीमा के खिलाफ ये मामला अदालत में जाता ही नहीं. लेकिन हिंदुस्तान की राजनीति इन दिनों जिस किस्म के आग्रहों और हमलों से संचालित है, उसमें बहुत कम गुंजाइश है कि कोई किसी के विरोध में कुछ लिख दे. और अगर लिखने की जगह न्यू मीडिया हो जैसे कि ट्विटर या फेसबुक आदि तो जान की मुसीबत बन जाती है. ये सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि आखिर अरविंद केजरीवाल जैसे राजनैतिक शुचिता के इन दिनों के नायक की एक कथित अटपटी मुलाकात पर किसी ने अगर सवालिया निशान खड़ा किया है तो उसे ही क्यों कटघरे पर खड़ा करने पर आमादा हुए जा रहे हैं. कौन ताकतें हैं इसके पीछे. और कौन ताक झांक में हैं उन आवाजों की, जो अपना एक अलग प्रतिरोध दर्ज कर रही हैं और अगर लोकतंत्र है तो बेशक उन्हें भी जगह मिलनी ही चाहिए. इसमें किसी को क्यों एतराज हो गया.

Taslima Nasreen
तस्लीमा के ट्वीट पर बवालतस्वीर: picture-alliance/ dpa

क्या बुरा है सवाल

तस्लीमा नसरीन ने यही सवाल तो उठाया कि केजरीवाल को एक ऐसे शख्स के पास जाने की नौबत क्यों आई, जो उनके मुताबिक वितंडावादी और फतवावादी है. अगले दिन तो आप ये भी कह देंगे कि जो तस्लीमा के पक्ष में या इस मुलाकात के विरोध में या तस्लीमा के इस मुलाकात के विरोध में दिए गए ट्वीट के पक्ष में आता है तो वो भी कानून का उल्लंघन करता है, सेक्शन 66ए का दोषी है. किस किस को और कब तक और कहां कहां गिरफ्तार करेंगे. कितने मामले चलाए जाएंगे. ये हो क्या रहा है. क्या केंद्र इस अजीबोगरीब तमाशे को देखेगा या यही कहेगा कि सब चुप हो जाओ. जो पहले से निर्धारित खिलाड़ी है वही बोलेंगे, वे ही आएंगे जाएंगे. बाकी लोग अपने घर जाएं.

क्यों भाई. क्या नये मीडिया में लोकतंत्र का अभाव है. क्या नया मीडिया इस धरती से इतर किसी और जगह से आया है. जिन बातों का विरोध करना होता है और जिन विचारों का विरोध करना होता है, उनमें तो विरोध की ऐसी फुर्ती नहीं दिखती. तस्लीमा ही क्यों आखिरकार निशाने पर हैं. क्या इसलिए कि उनका जाना पहचाना विरोध उस कठमुल्लेपन और उस धर्मांधता और उस वैचारिक नगण्यता से रहा है, जो उपनिवेशी पूंजीवाद के साथ उस कौम को निगलने के लिए उत्सुक है, जो यूं भी भारत जैसे सेक्युलर गणतंत्र में एक सवाल और कई पेचीदगियों के घेरे में रहने को विवश की गई है.

कितना बढ़े हम

असल में समस्या ये है कि सच्चे प्रगतिशीलों से, सच्चे आधुनिकतावादियों से ये धर्म और समाज के रूढ़िवादी तबके खौफ खाते हैं. उनसे नफरत करते हैं, फिर वे चाहे हिंदू हों या मुसलमान. आप दाभोलकर हत्याकांड में देखिए. क्या हुआ. क्या हम अभी तक जान पाए कि कौन थे उस अंधविश्वास विरोधी, तर्कवादी विद्वान के हत्यारे. और महाराष्ट्र सरकार ने जो बिल पास किया है वो आपने देखा. कितना डाइल्यूट करेंगे. कितना उन ताकतों को प्रश्रय देते रहेंगे, जिन्हें आज के दौर में समाज से बेदखल हो जाना चाहिए था. हम देखते क्या हैं, वे ताकतें लौट लौट के आती हैं. आज अति राष्ट्रवादी और सांप्रदायिक शक्तियों का मुकाबला करने के लिए आधुनिकतावादी, तर्कवादी और गैर दक्षिणपंथी ताकतें अल्पमत में हैं. ऐसा बोलबाला बना दिया गया है. नये मीडिया को भी झांसे में ले लिया गया है. वो मीडिया जिसे इस समय एक वाजिब और न्यायसंगत रोल अदा करना था, पिछड़े मूल्यों और तमाम तरह के खतरों से आगाह करते हुए आगे जाना था. हम देखते हैं कि नये मीडिया पर तो उन्हीं मताग्रहियों और उन्हीं मतावलम्बियों का कब्जा है जिनकी एक आधुनिक समाज में जगह नहीं होनी थी.

नये मीडिया में ये प्रतिरोध भी दर्ज हो रहा है लेकिन इसे खाने के लिए एक बहुत बड़ा पॉप्युलिस्ट मिजाज का नया मीडिया है जो नए दुष्चक्र में फंसाता है. नया मीडिया इस तरह से पहले से पीड़ित और मजलूम जनता के लिए एक नई फांस बन जाएगा, किसने सोचा था. वो तो इन बाजार, धर्म, समाज, विचार, और राजनीति के खुराफातियों के हाथों में महज एक नया औजार भर हो गया है. ऐसे नये का क्या करना. जहां तस्लीमा नसरीन जैसी लेखिका कुछ सवाल पूछे और उन पर मामला गिर जाए. महज इसलिए कि कानून की एक धारा ऐसा कहती है.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी

संपादन: अनवर जे अशरफ

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