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किन चुनौतियों से सामना है कांग्रेस की तीन सरकारों का

शिवप्रसाद जोशी
१७ दिसम्बर २०१८

कांग्रेस ने चंद दिनों में ही मुख्यमंत्री के नामों पर चर्चा, दावे और विवाद सुलझाकर तीन राज्यों में सरकार बना ली. लेकिन कांग्रेस आलाकमान के लिए तीनों राज्यों में सबसे बड़ी चुनौती अब भी अंदरूनी खींचतान से निपटने की होगी.

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Indien Gujarat -  Rahul Gandhi
तस्वीर: IANS

दिसंबर की शीत लहरें जहां बीजेपी को हार से सिहरा गईं तो कांग्रेस के लिए मानो ये उल्लास की बयार बन गईं. ‘हिंदी का हृदयस्थल' कहलाने वाले तीन प्रमुख हिंदीभाषी राज्यों में कांग्रेस ने बीजेपी को पराजित कर लंबे समय की हताशा को नई उम्मीद में बदला. चुनावी नतीजों के बाद हर ओर यही शोर उठा कि अब राहुल गांधी, 2019 के चुनावों के लिए बीजेपी के कद्दावर मोदी-शाह द्वय से टकराने को तैयार हैं.

उनके भाषणों और गतिविधियों की कवरेज पर कतराता हुआ सा मीडिया भी विजय पश्चात राहुल राग में डूबा नजर आया. राहुल गांधी की राजनीतिक सामर्थ्य और कांग्रेस के रिवाइवल पर टीवी चैनलों की बहसें और रिपोर्टें केंद्रित हुईं. विपक्षी महागठबंधन के इधर-उधर छिटके हुए सूत्र भी एक जगह एकत्र से दिखने लगे. राहुल गांधी ने भी एक मंझे हुए नेता की तरह पिछले कुछ दिनों में मीडिया और अन्य लोलुपताओं का सामना किया.

उन्होंने मुख्यमंत्री के नाम को लेकर अटकलों को विराम देने में जरा भी देर नहीं की. और तो और जब नाम फाइनल हो गये तो राहुल गांधी ने बाकायदा तीन अलग अलग ट्वीट कर, मुख्यमंत्री पद के चयनित नेताओं और उनके प्रतिस्पर्धियों के साथ तस्वीरें जारी कीं. राजस्थान के अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ, मध्यप्रदेश के कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ और छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल और दावेदारों के साथ.

इससे पहले राहुल ने कार्यकर्ताओं को एसएमएस भेजकर अपनी पसंद बताने की अपील भी की थी. तो ये एक तरह से कांग्रेस में ‘राहुल-प्रबंधन' का अगला चरण है. संदेश यही गया कि 2019 के लिए अनुभवी नेताओं और युवा शक्ति के सामंजस्य के साथ पार्टी तैयार है, राहुल का फैसला निर्विवाद है और असंतुष्टों को संतुष्ट करने की एक कुशल तत्पर नीति भी उनके पास है. सरकार गठन की कवायदों के बीच राहुल गांधी रफाएल मुद्दे पर आक्रामक होना नहीं भूले. वो और जोर से प्रधानमंत्री और सरकार पर गरजे.

यहां तक तो ठीक लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं. तीनों राज्यों में सबसे बड़ी चुनौती, कांग्रेस आलाकमान के लिए अंदरूनी खींचतान से निपटने की होगी. उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि चंद महीनों बाद जब लोकसभा चुनाव हों तो आंतरिक उठापटक की आवाजें बाहर न जाएं.

दूसरी प्रमुख चुनौती, चुनावी घोषणापत्रों पर जल्द से जल्द अमल की होगी. किसानों की कर्ज-माफी, सबसे पहला काम होगा. वैसे इस मामले पर अर्थशास्त्रियों और वित्त विशेषज्ञों की बंटी हुई राय है. लेकिन नवनिर्मित सरकारों को ये काम इस सूझबूझ और पारदर्शिता से करना होगा कि खजाने पर इसका बोझ न बढ़े और अन्य इलाकों के विकास कार्यक्रमों की गति भी न धीमी हो. किसानों की लागत, बीज, सामाजिक सुरक्षा, उत्पादन मूल्य और अन्य दुश्वारियों को भी कर्ज-माफी के साथ साथ नोटिस में लेना चाहिए और उनका समाधान जल्द से जल्द करना चाहिए.

तीसरी चुनौती बेरोजगारी से निपटने की है. राजस्थान में बेरोजगारी भत्ते का भी वादा किया गया है. ये काम किस तरह होगा. राज्य अपने संसाधनों को किस तरह विकसित करेगा और वित्त सृजन के उपायों पर कितनी तेजी से अमल करेगा- इसी पर उसके ज्यादातर वायदे टिके हैं. उसी तरह मध्यप्रदेश में भीमकाय और रक्तरंजित व्यापम घोटाले की जांच पर भी नई सरकार का रुख देखना होगा.

चौथी चुनौती जीएसटी और नोटबंदी के अत्यंत छोटे, लघु और मझौले व्यापारियों की तकलीफों को दूर करने की होगी. अखिल भारतीय उत्पादक संघ के एक ताजा सर्वे के मुताबिक इन छोटे कारोबार पर जीएसटी और नोटबंदी की भीषण मार पड़ी- उन्हें बुरे हालात से निकालना होगा.

पांचवी और शायद सबसे बड़ी चुनौती सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने में सरकारी मशीनरी को मुस्तैद करने की होगी. राजस्थान में मॉब लिंचिंग की भयानक घटनाएं हुई हैं. दोषियों और हमलावरों पर कठोरतम कार्रवाई की जरूरत है. हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी, चुनावों में मुसलमानों पर बढ़ते हमलों, गोरक्षा और कथित लव जेहाद की आड़ में हिंसा और उत्पात पर लगभग चुप्पी लगाए, हिंदूवादी बहुसंख्यकवादी राजनीति का ही एक सिरा पकड़े हुए नजर आए हैं, लेकिन अगर उनकी सरकारों को अपनी विश्वसनीयता और पार्टी की नैतिक साख बनाए रखनी है तो चुनावी मोड से और अल्पसंख्यकों से पिंड छुड़ाने जैसी प्रवृत्ति से बाहर आना होगा.

इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी नक्सली हिंसा और पुलिसिया दमन के बीच पिस रहे आदिवासियों को इंसाफ दिलाने, उनका सम्मान बहाल करने और जीवन दशाएं सुधारने की जरूरत है. ‘अर्बन नक्सली' की आड़ में छत्तीसगढ़ से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सार्वजनिक बुद्धिजीवियों के कथित संबंधों पर कांग्रेस सरकार को चाहिए की वो नये सिरे से छानबीन करे और ज्यादतियों के शिकार लोगों को न्याय दिलाए. ये कुछ फौरी चुनौतियां कांग्रेस की इन तीन राज्यों की नई सरकारों के सामने हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन सरकारों को हर कदम फूंकफूंक कर रखना होगा ताकि विपक्षी पार्टी बीजेपी किसी भी नाजुक मुद्दे को हवा देकर जनमत को प्रभावित करने की कोशिश ना कर पाए. इन तीन राज्यों की 65 लोकसभा सीटें जीतने के लिए पहले दिन से ही लोकसभा क्षेत्रवार रणनीति पर काम शुरू कर देने की चुनौती भी कांग्रेस के सामने है. और इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है नागरिकों में भरोसे का निर्माण. जाहिर है राजनीतिक दल के रूप में चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी या कोई अन्य दल, सब इस बात को जानते तो हैं लेकिन किसी न किसी रूप में चूक जाते हैं. 

 

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