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आतंकवाद

कितने सक्रिय हैं भारतीय जिहादी अफगानिस्तान में?

२१ अप्रैल २०१७

अफगान अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका के मदर ऑफ ऑल बॉम्ब्स हमले में 13 भारतीय जेहादी भी मारे गए. दक्षिण एशिया एक्सपर्ट माइकल कुगेलमन का कहना है कि भारतीय नागरिक अफगानिस्तान में अल कायदा और आईएस में शामिल हो रहे हैं.

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Taliban Kämpfer Symbolbild
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Noorullah Shirzada

13 अप्रैल को अमेरिका ने पूर्वी अफगानिस्तान में आईएस के एक ठिकाने पर सबसे बड़ा गैर परमाणु बम गिराया. अफगान अधिकारियों के अनुसार इसमें आईएस के 96 लड़ाके मारे गये, जिनमें 13 भारतीय भी थे. अफगानिस्तान में आईएस ने सैकड़ों स्थानीय लोगों की भर्ती की ही है, उन्होंने पाकिस्तान, बांग्लादेश और मध्य एशिया के कट्टरपंथी भी हैं. आईएस के अफगानिस्तान ऑपरेशन में भारतीय जिहादियों के योगदान पर ज्यादा जानकारी नहीं है. वाशिंगटन के वूड्रो विल्सन सेंटर के दक्षिण एशिया एक्सपर्ट माइकल कुगेलमन का कहना है कि यह मानने की अच्छी वजहें हैं कि अफगानिस्तान में भारतीय उग्रपंथी भी हैं.

डॉयचे वेले: अफगानिस्तान में भारतीय उग्रपंथियों की गतिविधियों के बारे में ज्यादा मालूम नहीं है. आपको इसके बारे में क्या जानकारी है?

माइकल कुगेलमन: मैं समझता हूं कि व्यापक सवाल यह है कि अफगानिस्तान उग्रपंथियों के लिए आकर्षक क्यों होता जा रहा है. पिछले कुछ सालों में इलाके से चरमपंथियों का बड़े पैमाने पर आना हुआ है. अफगानिस्तान का चरमपंथी नेटवर्क तालिबान और अल कायदा से कहीं अधिक व्यापक और अंतरराष्ट्रीय है. उन्हें अफगानिस्तान की जो बात लुभाती है वह इसका कानूनविहीन होना है, जो छुपने की आदर्श शर्तें देता है. ये ऐसा माहौल है जो हर प्रकार के उग्रपंथियों को अपील करता है, वे चाहे भारत के उग्रवादी हों, मध्य एशिया के जिहादी हों, या मध्यपूर्व के अरब लड़ाके हों.

Michael Kugelman
माइकल कुगेलमनतस्वीर: C. David Owen Hawxhurst / WWICS

ये यदि पहला नहीं तो कुछेक मामलों में शामिल है जब भारत के चरमपंथी अफगानिस्तान में मारे गये हों. क्या भारतीय चरमपंथी पूरे अफगानिस्तान में सक्रिय हैं?

इस बात को मानने के कारण हैं कि अल कायदा और खासकर इसके दक्षिण एशियाई ईकाई आकिस में भारतीय भी हैं. इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि आकिस के कमांडर के भारतीय होने की बात है. दावों के विपरीत अल कायदा अफगानिस्तान और आसपास के इलाके में गंभीर खतरा बना हुआ है. हाल के इतिहास को देखते हुए यह मानने की अच्छी वजहें हैं कि अफगानिस्तान में भारतीय चरमपंथी हो सकते हैं. लश्कर ए तैयबा की अफगानिस्तान में उपस्थिति थी और काफी समय से वह इंडियन मुजाहिदीन के साथ सहयोग कर रहा था जो अल कायदा से जुड़ा भारतीय आतंकवादी गुट है, जो इस बीच खत्म हो चुका है.

भारत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी नीतियां कुछ भारतीय मुसलमानों को अफगानिस्तान में चरमपंथी गुटों की ओर धकेल रही हैं?

यह सही है कि भारतीय मुसलमानों ने भेदभाव की नई और बढ़ती चुनौतियों का सामना किया है, लेकिन इसमें संदेह है कि इसका उन्हें रैडिकल बनाने वाला असर हुआ है और उनमें से कुछ ने आईएस ज्वाइन कर लिया है. मेरी राय में इसकी संभावना बहुत कम है कि रैडिकल बने युवा भारतीय मुसलमान बड़ी संख्या में आईएस की ओर आकर्षित हो रहे हैं.. हालांकि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि यदि मौजूदा हालात बने रहे तो ये छोटे स्तर पर संभव होगा. सारी चुनौतियों और समस्याओं के बावजूद भारतीय मुसलमानों के साथ उससे बेहतर सलूक हो रहा है जैसा बहुत से देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ होता है.

अफगान रक्षा मंत्रालय ने इस बात की भी पुष्टि की है कि अमेरिकी हमले में मरने वालों में पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और फिलीपीनी नागरिक भी थे. क्या अफगानिस्तान आईएस में शामिल होने वाले जिहादियों में लोकप्रिय हो गया है?

पिछले सालों में जब हम ग्लोबल आतंकवाद की मंजिल के बारे में सोचते थे तो पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर होता था. लेकिन पाकिस्तान सेना द्वारा कबायली इलाकों में की कई आतंकवाद विरोधी कार्रवाईयों ने स्थिति बदल दी है. एक तो आतंकवाद विरोधी ऑपरेशंस के चलते पाकिस्तान स्थित आतंकवादी सीमा पार कर अफगानिस्तान चले गये हैं. दूसरे इन ऑपरेशंस की वजह से इलाके और इलाके से बाहर के आतंकवादी अफगानिस्तान को आकर्षक मुकाम समझने लगे हैं क्योंकि वहां कानून और व्यवस्था की स्थिति बहुत ही खराब है. इस्लामी चरमपंथी अफगानिस्तान को पाकिस्तान से बेहतर जगह के रूप में देखने लगे हैं क्योंकि वह ज्यादा आकर्षक है और वहां सुरक्षित पनाह बनाना ज्यादा आसान है.

अफगानिस्तान में आईएस का क्या भविष्य है?

मैं समझता हूं कि अफगानिस्तान में आईएस का सितारा नीचे जा रहा है. कुछ साल पहले उसका विकास हो रहा है, उस समय वह पूरी दुनिया में हमले कर रहा था और मध्यपूर्व के खिलाफत पर उसका कड़ा शिकंजा था. लेकिन पिछले साल आईएस ने मध्यपूर्व में अपनी काफी जमीन खो दी है और अमेरिका ने अफगानिस्तान के साथ मिलकर उसकी संगठनात्मक ढांचे और ताकत को कमजोर कर दिया है. खासकर पूर्वी अफगानिस्तान में अपनी बर्बर नीतियों के साथ आईएस दोस्त बनाने में नाकाम रहा है, जिससे कि स्थानीय समुदायों में तालिबान नरमपंथी लगने लगा है. मैं नहीं कहता कि अफगानिस्तान में आईएस आखिरी सांसें ले रहा है, लेकिन वह जीवन के लिए संघर्ष कर रहा है. तालिबान हमेशा से वहां सबसे बड़ा खतरा रहा है और जैसे जैसे आईएस कमजोर होगा तालिबान की ताकत और बढ़ेगी.

माइकल कुगेलमन वीशिंगटन के वूड्रो विल्सन सेंटर में सीनियर एसोसिएट हैं.

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